सबरीमला मामले में नौ-सदस्यीय संविधान पीठ गठित - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 7 जनवरी 2020

सबरीमला मामले में नौ-सदस्यीय संविधान पीठ गठित

9-member-bech-for-sabrimala
नयी दिल्ली, 07 जनवरी, सबरीमला स्थित अयप्पा मंदिर सहित देश के विभिन्न मंदिरों, मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश सहित विभिन्न संवैधानिक बिंदुओं की सुनवाई के लिए मंगलवार को उच्चतम न्यायालय की नौ-सदस्यीय संविधान पीठ का गठन कर दिया गया। सबरीमला विवाद में दायर पुनर्विचार याचिकाओं को वृहद पीठ के सुपुर्द करने वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के किसी भी सदस्य को नौ-सदस्यीय संविधान पीठ में शामिल नहीं किया गया है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को एक नोटिस जारी करके सबरीमला मामले में पुनर्विचार याचिकाओं एवं अन्य संवैधानिक पहलुओं की सुनवाई के लिए 13 जनवरी की तारीख मुकर्रर की थी, लेकिन पीठ के सदस्यों का खुलासा नहीं किया गया था। अब पीठ का गठन कर दिया गया है। मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली इस पीठ में न्यायमूर्ति आर. भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतनगौदर, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल होंगे। गौरतलब है कि गत वर्ष 14 नवम्बर को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत का फैसला सुनाया था, जिसके तहत सबरीमला सहित विभिन्न धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश जैसे व्यापक मसले को वृहद पीठ के सुपुर्द कर दिया गया था। पीठ ने कहा था कि सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के संबंध में पूर्व का फैसला वृहद पीठ का अंतिम निर्णय आने तक बरकरार रहेगा। इस मामले में न्यायमूर्ति नरीमन और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसले से असहमति जताई थी और अलग से अपना फैसला सुनाया था। ये दोनों न्यायाधीश पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज करने के पक्ष में थे। उनका मानना था कि शीर्ष अदालत का फैसला मानने के लिए सभी बाध्य हैं और इसका कोई विकल्प नहीं है। दोनों न्यायाधीशों की राय थी कि संवैधानिक मूल्यों के आधार पर फैसला दिया गया है और सरकार को इसके लिए उचित कदम उठाने चाहिए। बहुमत के फैसले में न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा था कि इस केस का असर सिर्फ सबरीमला मंदिर ही नहीं, बल्कि मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं और अग्यारी में पारसी महिलाओं के प्रवेश पर भी पड़ेगा। संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि परंपराएं धर्म के सर्वोच्च सर्वमान्य नियमों के मुताबिक होनी चाहिए। अब नौ-सदस्यीय पीठ मुस्लिम महिलाओं के दरगाह-मस्जिदों में प्रवेश पर भी सुनवाई करेगी और ऐसी सभी तरह की पाबंदियों को दायरे में रखकर समग्र रूप से फैसला लिया जाएगा। न्यायमूर्ति गोगोई की सेवानिवृत्ति के बाद पीठ के बचे चार अन्य सदस्यों को वृहद पीठ में शामिल नहीं किया गया है।  

कोई टिप्पणी नहीं: