बिहार में भाजपा नेताओं द्वारा आए दिन कुछ न कुछ बयान दिया जा रहा है जिसका जदयू जवाब तो दे रहा है। मगर इस तरह से नीतीश पर उठ रहे सवालों से एनडीए के रिश्तों में खटास बढ़ने की काफी संभावनाएं बढ़ सकती है। भाजपा नेता केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, रामेश्वर चौरसिया, मिथिलेश तिवारी, सच्चिदानंद राय और विधान पार्षद संजय पासवान ने मुख्यमंत्री के चेहरे पर सवाल उठाकर अपनी राजनीति तो चमका रहे हैं मगर इस तरह के पार्टी नेताओं के बयान उनके शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर रहा है। या फिर इनके बयानों से इतना तो जरुर कहा जा सकता है कि भाजपा के मन में कुछ और बयानों में जरुर चल रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर एनडीए बार-बार चुनाव लड़ने की बात तो कर रही है मगर इस तरह से दिए जा रहे इन नेताओं के बयान और राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह के बयानों को अगर एक करके देखा जाए तो यह भी हो सकता है कि भाजपा अपने अति विश्वास में कहीं जदयू को बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही न खो दे और इसका फायदा विपक्षी उठा ले, इस बात पर भी भाजपा को गौर करना चाहिए। बिहार में नीतीश कुमार के चेहरे पर जो विकास का पोस्टर चस्पा है उससे इंकार नहीं किया जा सकता है। इस बात में बहुत सच्चाई भी है कि सूबे में विकास की रौशनी को नीतीश कुमार ने गांव से लेकर शहरों तक जरुर पहुंचाया है। हां, ये भी बात सही है कि हर किसी को समाज में खुश नहीं किया जा सकता है और ना ही हर काम कर पाना संभव है। मगर बिहार के जातिय समीकरण वाले हालात में अगर भाजपा चुकती है तो राजद और जदयू को साथ लाने में कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ेगी और उसका बड़ा खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। जिस प्रकार महाराष्ट्र में महज एक कुर्सी का त्याग नहीं करना हाथ से महाराष्ट्र छिटक गया तो झारखंड में अपनी मजबूत सरकार को सरयू राय सहित 20 लोगों को चुनाव से कुछ दिन पहले बाहर का रास्ता दिखाना उसके गले की फांस बन गई और वहां मुख्यमंत्री अपनी विधायकी को भी बरकरार नहीं रख पाए।
देश में एनआरसी, सीएए और एनआरपी के मुद्दे पर केंद्रीय सरकार लगातार फजीहत झेल रही है। इस बात से पूरी तरह वाकिफ भी है, उसने जिस प्रकार तीन तालाक, धारा-370, सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को तो भुनाने में सफल रही, मगर इस बार उसकी चाल उसी के पांव की बेड़ियां बनती जा रही हैं। इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि अटल जी की सरकार में मात्र एक माह प्याज की कीमत क्या बढ़ी भाजपा की सत्ता हाथ से चली गई थी। इस बार फिर भाजपा की सरकार है और पिछले तीन माह से प्याज का रेट सेव और अनार को भी पीछे छोड़ दिया है। इस बात को भाजपा को गौर करनी चाहिए। हलांकि नीतीश कुमार के 15 वर्षों के कार्यकाल में इन पांच सालों में बढ़े अपराध, लूट जैसी कई अन्य बातों को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है। ये वही बिहार है जिसने लालू के 15 वर्षों के राज को उखाड़ फेंका था, तो नीतीश कुमार को भी इस बार कदम फूंक फूंककर ही उठाना चाहिए। साथ ही किसी भी नेता या कार्यकर्ता की अहमियत को अच्छे तरीके से समझना होगा। भारत गांव का देश है और यहां की 80 फीसदी आबादी गांवों में बसती है। यहां जाति-धर्म का ऐसा बंधन है कि एक-दूसरे के वगैर कुछ भी संभव नहीं है। चाहे वो होली-दीपावली हो या ईद-बकरीद हो यहां की आबोहवा में दोनों जातियों का बांड बहुत ही खुबसूरत तरीके से बना हुआ है। इसलिए कानून लागू हो, आरोपियों को सजा मिले, मगर किसी भी चीज को पहले समझाकर ही कदम उठाया जाना चाहिए। क्योंकि यह देश धर्मनिर्पेक्ष कंट्री है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
बिहार में नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से सत्ता पर काबिज हैं। यहां की जनता अभी आगे उनके नेतृत्व को स्वीकार करना चाहती है। भले ही नीतीश कुमार के नेतृत्व पर छिटाकसी हो मगर यह सरकार काम करती है जो देश दुनिया में दिख रहा है। एक बात और नीतीश कुमार बेवजह के बयानों से हमेशा दूर रहते हैं। लेकिन उनके सहयोगी दलों में जहां अमित शाह ने नीतीश के नेतृत्व पर भरोसा जताते हैं। वहीं जदयू के केसी त्यागी ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा है कि अमित शाह ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि बिहार में विधानसभा का चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए लड़ेगा। एनडीए के घटक दल लोजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान और वर्तमान अध्यक्ष चिराग पासवान ने संयुक्त रूप से कहा है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बिहार में हमलोग चुनाव लड़ेंगे। वहीं भाजपा के इन नेताओं का बयान देना और केंद्रीय नेताओं का चुप्पी साधना कई सवाल खड़ा कर रहा है। इस बात को भी भाजपा को नहीं भूलना चाहिए कि पिछले चुनाव में राजद-जदयू-कांग्रेस से साथ चुनाव लड़े थे तो भाजपा को सत्ता से बाहर ही छोड़ रखा था और 20 माह तक सरकार चली बेहतर तरीके से, ये तो महज एक संयोग है कि फिर से बांड टूटा और भाजपा नीतीश के साथ सत्ता पर काबिज हो गई। इन सारी बातों को मनन करने के बाद भाजपा को अपने रिश्तों पर विचार करनी चाहिए। इस प्रकार अमित शाह के बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, रामेश्वर चौरसिया, मिथिलेश तिवारी, सच्चिदानंद राय और विधान पार्षद संजय पासवान जैसे नेताओं के बयान बिहार चुनाव पर आ रहे हैं तो यह बयान या तो अपने ही पार्टी के नेता को झूठा साबित करती है या फिर अंदरखाने में जरुर कुछ चल रहा है। बात चाहे जो भी हो मगर इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि अपने अतीत और वर्तमान का आकलन करते हुए ही किसी भी दल को कदम उठाना चाहिए अन्यथा जनता की अदालत में कुछ फैसले सोच से परे भी हो जाते हैं। जिसका अफसोस बाद में करने से कोई फायदा नहीं होगा।
-मुरली मनोहर श्रीवास्तव-
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