नयी दिल्ली, 21 जनवरी, जम्मू कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान निरस्त किये जाने की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को दलील दी कि भारतीय संविधान के तहत ‘जम्मू कश्मीर के संविधान’ को निरस्त करने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी ने न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई एवं न्यायमूर्ति सूर्यकांत की संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी था और यह जम्मू कश्मीर के संविधान के अस्तित्व में आने तक ही प्रभावी था। उन्होंने दलील दी कि जम्मू कश्मीर के संविधान के लागू होने के बाद राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 के तहत प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। श्री द्विवेदी ने जम्मू कश्मीर के भारत में विलय संबंधी दस्तावेज (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन ऑफ जम्मू-कश्मीर) के अनुच्छेद छह का हवाला देते हुए कहा कि इस अनुच्छेद के तहत जम्मू कश्मीर को संप्रभुता प्रदान की गयी है। उन्होंने दलील दी कि केंद्र सरकार को जम्मू कश्मीर के मामले में कानून बनाने का अधिकार सीमित है। अनुच्छेद 370 केंद्र और जम्मू कश्मीर के बीच एक सम्पर्क सूत्र था। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर का शासन केवल इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन और राज्य के पृथक संविधान के जरिये ही किया जा सकता था। सुनवाई के शुरुआत में इन याचिकाओं को वृहद पीठ के सुपुर्द किये जाने का मामला शीर्ष अदालत में उठा। श्री द्विवेदी और वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने याचिकाओं को वृहद पीठ के सुपुर्द करने का न्यायालय से अनुरोध किया, जिसका एटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पुरजोर विरोध किया। श्री वेणुगोपाल ने कहा कि याचिकाओं को बड़ी पीठ को भेजने की आवश्यकता नहीं है। एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वह श्री द्विवेदी और श्री पारिख की दलीलें सुनने के बाद ही कुछ बोलेंगे। इसके बाद न्यायालय ने मामले को वृहद पीठ के सुपुर्द करने के मसले पर ही बहस करने की इजाजत श्री द्विवेदी को दी। मामले की सुनवाई कल भी जारी रहेगी।
बुधवार, 22 जनवरी 2020
‘केंद्र को जम्मू कश्मीर का संविधान निरस्त करने का अधिकार नहीं’
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