विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की कमान अब जगत प्रकाश नड्डा के हाथ सौंप दी गई है। पार्टी ने सर्वसम्मति से अगले तीन साल के लिए उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया है। महज तीस साल के संघर्ष में सामान्य कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष नेतृत्व तक की यात्रा जहां बड़ी उपलब्धि है वहीं अब तक के सबसे सफलतम पूर्व अध्यक्ष अमित शाह की उपलब्धियों को संभालना और बढ़ाना एक बड़ी चुनौती भी है।यह रोचक इसलिए है क्योंकि नड्डा की पहली परीक्षा अगले एक पखवाड़े में ही शुरू हो जाएगी और अगले तीन साल तक डेढ़ दर्जन राज्यों में परखी जाएगी। चुनौती इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इनमें से 11 राज्य भाजपा और राजग के पास ही है जिसे दोहराने का दबाव होगा। जबकि आधे दर्जन राज्यों में संभावनाओं की तलाश लंबे समय से चल रही है।
सोमवार को अध्यक्ष पद पर चुनाव के साथ ही नड्डा ने भाजपा की उस परंपरा को जीवित रखा है जिसके तहत किसी खास परिवार से जुदा एक कार्यकर्ता ही अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन हुआ है। औपचारिक चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी समेत कई केंद्रीय मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों ने नड्डा के नामांकन के पक्ष में समर्थन किया था। कोई दूसरा दावेदार न होने की स्थिति में नामांकन का वक्त खत्म होने के साथ ही वह अध्यक्ष चुन लिए गए। जोशीले कार्यकर्ताओं के नारों, हिमाचल प्रदेश से आए नर्तकों, ढ़ोल नगाड़ो के बीच केंद्रीय चुनाव अधिकारी राधामोहन सिंह ने सभी नेताओं की मौजूदगी में नड्डा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर चुनाव की घोषणा की। अमित शाह ने पीठ थपथपाकर उनका उत्साहवर्द्धन किया।
हालांकि कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नड्डा ने पिछले छह महीने में महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड चुनाव को भी नजदीक से देखा है लेकिन बतौर अध्यक्ष दिल्ली चुनाव उनका पहला संग्राम होगा। उसके बाद साल के अंत में बिहार सामने होगा जहां नड्डा ने जीवन का लंबा वक्त गुजारा है। पर उसके बाद का साल सही मायनों में चुनौती भरा होगा।दरअसल 2021 में जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं उसमें असम भी शामिल है जहां 2016 में पहली बार भाजपा की सरकार बनी थी। ध्यान रहे कि असम ही वह राज्य है जहां पहला एनआरसी भी हुआ और सीएए पर विरोध की पहली आंधी भी उठी। हालांकि उसे थाम लिया गया है। इसी साल पश्चिम बंगाल और केरल में भी चुनाव होने हैं। पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से भाजपा उत्साहित है और नड्डा के नेतृत्व से बड़ी अपेक्षा होगी।जबकि केरल और तमिलनाडु में 2021 में पहला चुनाव एम करुणानिधि और जे जयललिता की गैर मौजूदगी में होगा। ऐसे में नड्डा की रणनीति अहम होगी। वैसे नड्डा की सांगठनिक क्षमता से सभी वाकिफ हैं। यही कारण है कि नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में मंत्री बनने के बावजूद शाह उनसे सांगठनिक कार्य लेते रहे थे। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, नड्डा के गृह प्रदेश हिमाचल प्रदेश समेत लगभग पूरे उत्तर पूर्व में भी इनके कार्यकाल में ही चुनाव होंगे। ऐसे में अपने राज्यों को संभालते हुए पंजाब, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में सत्ता हासिल करना बड़ी चुनौती होगी।गौरतलब है कि भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह कई बार कह चुके हैं कि अभी भाजपा का स्वर्णिम काल नहीं आया है। नड्डा कर्नाटक से दक्षिण यानी केरल और तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अगर भाजपा का केसरिया फहराने में कामयाब हुए तो पार्टी इतिहास में उनका नाम हमेशा के लिए स्थापित हो जाएगा। लेकिन फिलहाल यह सच है कि उन्हें बार बार अमित शाह की खींची गई लंबी लकीर से जूझना होगा। जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर राजनाथ सिंह तक ने शाह की सफलता का उल्लेख किया वह इसका साफ संकेत है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जेपी नड्डा के हाथ भाजपा की कमान जेपी नड्डा के नेतृत्व में भाजपा नई उंचाइयों को प्राप्त करेगा। वह पार्टी से जो चाहेंगे हम वह करेंगे।केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन और नड्डा जी के नेतृत्व में भाजपा और मजबूत भी होगी और इसका विस्तार भी होगा।
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