----जिला पदाधिकारी ने हरी झंडी दिखाकर मत्स्यपालकों के वाहनों को किया रवाना
मधुबनी (आर्यावर्त संवाददाता) : श्री शीर्षत कपिल अशोक, जिला पदाधिकारी, मधुबनी के द्वारा सोमवार को जिला अतिथिगृह, मधुबनी के समीप मत्स्यपालन भ्रमण दर्शन कार्यक्रम के तहत मत्स्यपालन के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों की जानकारी हेतु जिले के 90 मत्स्यपालकों को सुपौल लेकर जा रहे दो वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया। इस अवसर पर जिला मत्स्य पदाधिकारी, मधुबनी, श्री सूर्य प्रकाश राम, मत्स्य प्रसार पदाधिकारी, मधुबनी, सुश्री साध्वी प्रिया, श्री सर्वोतम कुमार, श्री सुजीत कुमार, श्री चंदन कुमार, श्री नवीन कुमार, श्री अशोक कुमार, सुश्री स्वाति कुमारी, श्री राहुल कुमार समेत अन्य पदाधिकारीगण एवं कर्मी उपस्थित थे। इस अवसर पर जिला पदाधिकारी, मधुबनी ने बताया कि मत्स्यपालन भ्रमण दर्शन कार्यक्रम के तहत मधुबनी जिले से 150 मत्स्यपालकों को एक दिवसीय प्रशिक्षण-सह-दर्शन हेतु भेजा जाना है। जिसके तहत दिनांक 20.01.20 को 90 किसानों को दो बसों के माध्यम से सुपौल भेजा गया है। ये सभी मत्स्यपालक दिनांक 21.01.20 को एक दिवसीय प्रशिक्षण-सह-दर्शन कार्यक्रम में सुपौल में शामिल होंगें। उन्होंने कहा कि राज्य के विभिन्न जिलों में कई प्रगतिशील मत्स्य कृषकों के द्वारा मत्स्यिकी के क्षेत्र में विभिन्न तकनीक का प्रयोग कर मत्स्यपालन के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किया जा रहा है। मत्स्यपालन भ्रमण दर्शन कार्यक्रम का उदेश्य मत्स्यपालकों को मत्स्यपालन के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों की जानकारी देना तथा प्रगतिशील मत्स्य कृषकों के द्वारा मत्स्यपालन तकनीक तथा व्यावहारिक ज्ञान का आदान-प्रदान कराना है। इससे मधुबनी जिले के मत्स्पालक भी मत्स्पालन के क्षेत्र में किये जा रहे विभिन्न नवीनतम जानकारियों से अवगत होकर लाभान्वित हो सकते है। इससे मत्स्य उत्पादन में आशातीत वृद्धि होगी। मत्स्यपालन के क्षेत्र में इन मत्स्पालकों को बायोफ्लाॅक के बारें में भी जानकारी दी जायेगी। यह मत्स्य उत्पादन का नवीनतम तकनीक है। बायोफ्लाॅक तकनीक से मत्स्य पालन सीमित एवं नियमित क्षेत्र में कम-से-कम मत्स्य आहार एवं पानी का उपयोग कर कम समय में अत्यधिक मत्स्य उत्पादन किया जा सकता है। बायोफ्लाॅक तकनीक से जमीन की उपरी सतह को बिना रूपान्तरित किये मछली उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। कम-से-कम जगह में फायदेमंद मत्सपालन किया जा सकता है। सही प्रशिक्षण देने से बायोफ्लाॅक तकनीक द्वारा रोजगार में सृजन किया जा सकता है। बायोफ्लाॅक से राजस्व कोष भंडार पर कम भार पड़ेगा साथ ही व्यक्तिगत आमदनी के साथ-साथ राजकीय कोष में बढ़ोतरी की जायेगी। बायोफ्लाॅक तकनीक के तहत टैंक में बचा हुआ भोजन, मछली का मल आपस में ऑक्सीजन तथा लाभकारी वैक्ट्रिया के साथ मिलकर प्रोटीन का निर्माण होता है। इसी प्रोटीन को मछली भोजन के रूप में लेती है। राज्य के विभिन्न जिलों में चौर, मन आर्द्रभूमि के रूप में तालाब निर्माण करने का विशाल क्षेत्र है, जिसका विकास करने से मत्स्यपालक मत्स्य उत्पादन कर अपना आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करेंगे तथा सरकार के राजस्व में भी इजाफा होगा। साथ ही यह तकनीक सरकार के महत्वाकांक्षी योजना जल-जीवन हरयाली अभियान को सफल बनाने में भी सहयोगी साबित होगी।
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