विशेष : पुत्र प्रदान तथा संतान की रक्षा करने वाली पुत्रदा एकादशी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 5 जनवरी 2020

विशेष : पुत्र प्रदान तथा संतान की रक्षा करने वाली पुत्रदा एकादशी

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पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रतिवर्ष पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। जैसा कि नाम से ही विदित है इस एकादशी का फल पुत्र प्रदान करने वाली मानी जाती है और मान्यता है कि इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसीलिए संतान उत्पति में बाधाएं आने वाले व्यक्तियों अथवा पुत्र प्राप्ति की कामना करने वाले व्यक्तियों को पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस व्रत को बहुत ही शुभ फलदायक माना गया है और यह पुत्रदा एकादशी व्रत संतान प्राप्ति के इच्छुक भक्तों के लिए मनोवांछित फल की प्राप्ति का उत्तम शास्त्रीय विधान माना गया है । इसके प्रभाव से पुत्र प्राप्ति के साथ ही संतान की रक्षा भी होती है। एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्तियों को पुत्रदा एकादशी के एक दिन पहले ही अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करके शुद्ध व स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण कर श्रीहरि विष्णु का ध्यान करना चाहिए। अगर गंगाजल है तो पानी में गंगा जल डालकर नहाना चाहिए। पुत्रदा एकादशी को नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा श्रीहरि का पूजन करना चाहिए । नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा नींबू, जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषतः आम के फलों से देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए । इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करना चाहिए । पुत्रदा एकादशी को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता । यह सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है । चराचर जगत सहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है । समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं ।

महाराज युधिष्ठिर के द्वारा पूछे जाने पर पौष शुक्ल एकादशी का नाम, विधि, उसके देवता और पूजन पूजन विधि और उससे सम्बन्धित पौराणिक कथा का वर्णन करते हुए भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि पौष शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इस व्रत में नारायण भगवान की पूजा विधि - विधान से किये जाने के पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। इससे सम्बन्धित एक कथा सुनाते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि प्राचीन काल में भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नामक एक राजा अपनी प्रिय पत्नी शैव्या के साथ राज्य करता था। राजा का कोई पुत्र नहीं था। राजा की पत्नी शैव्या निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि सुकेतुमान के बाद हमको कौन पिंड देगा? राजा को भाई, बाँधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री सब कुछ प्राप्त थे, परन्तु उसे इन सबमें से किसी से भी संतोष प्राप्त नहीं होता था, और वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मृत्योपरान्त मुझको कौन पिंडदान करेगा? बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका पाऊँगा? 

कहा गया है कि पुत्रविहीन घर में सदैव अँधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। पुत्र का मुख देखने वाले को इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार की सोच में रात-दिन चिंतातुर राजा ने एक समय तो अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा इन्हीं विचार में मग्न अपने घोड़े पर चढ़कर वन विहार को निकला और वन में पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है। वन में कहीं गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के सुन्दर दृश्यों को देख सोच-विचार में निमग्न राजा का आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों? इस बीच राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया। राजा के द्वारा अपना परिचय देने पर मुनियों ने राजा से कहा- राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। राजा के द्वारा मुनि का परिचय और इस क्षेत्र में आने का उद्देश्य पूछे जाने पर मुनि ने अपना परिचय दे बताया कि आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं। मुनियों का परिचय जान राजा ने उनसे कहा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले- आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का ‍व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ। यह कथा सुनकर श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर से कहा कि पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

पौष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। वर्ष 2020 में पुत्रदा एकादशी व्रत 6 जनवरी को मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यतानुसार पौष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति और इसके प्रभाव से संतान की रक्षा होती है। मान्यता है कि संतान प्राप्ति में बाधा आने या पुत्र प्राप्ति की कामना करने वाले लोगों के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत शुभफलदायक होता है। इस दिन बाल गोपाल की पूजा करनी चाहिए। पूरे दिन उपवास रहकर शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार किया जाता है। इस दिन दीप दान करने का भी महत्व है। पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को व्रत से पूर्व यानी दशमी के दिन एक ही वक्त सात्विक भोजन कर संयमित और ब्रह्मचर्य के नियम का पालन करना चाहिए। सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल और पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। संतान की इच्छा के लिए पति-पत्नी को सुबह के वक्त संयुक्त रूप से भगवान श्री कृष्ण की उपासना करनी चाहिए।संतान गोपाल मंत्र का जाप करने के बाद प्रसाद ग्रहण कर गरीबों और जरुरतमंदों को भोजन कराना और दक्षिणा देना उत्तम माना गया है । उल्लेखनीय यह भी है कि श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम भी पुत्रदा है, जिसकी कथा पृथक है । उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।




---अशोक “प्रवृद्ध”---

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