दुमका (आर्यावर्त संवाददाता) : झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो सह पूर्व सांसद शिबू सोरेन ने राज्य में पिछली सरकार द्वारा राज्य में स्थानीयता नीति को लेकर तय 1985 के कट ऑफ डेट को गलत माना है। श्री सोरेन ने कहा कि झारखंड में स्थानीय नीति में बदलाव होना चाहिए और पिछली सरकार द्वारा तय कट ऑफ डेट को रद्द कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस राज्य के आदिवासी और मूलवासी के हक व अधिकार के लिए 1932 का कट ऑफ डेट लागू किया जाना जरूरी है। 1985 की डेट से इसे लागू करने से झारखंड की जनता अपने हक से वंचित रह गयी। अब नयी सरकार 1932 का डेट तय करे, ताकि यहां के जंगल-झाड़ में रहनेवाले खातियानी रैयतवाले मूलवासी-आदिवासी को पलायन नहीं करने को विवश नहीं होना पड़े। श्री सोरेन ने दुमका स्थित अपने आवास में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि जो यहां के खतियानी और पुराने वाशिंदे हैं, उनका पहला हक बनता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1985 को आधार बना कर स्थानीय नीति बनाना सही नहीं है। 1932 के खतियान या जहां का जो अंतिम खतियान है, भले ही वह 1934 का हो या 1936 का, उसी के आधार पर स्थानीयता तय की जानी चाहिये। यह पूछे जाने पर कि पार्टी के नेता-कार्यकर्ता चाहते हैं कि वह राज्यसभा में जायें इस सवाल पर शिबू सोरेन ने कहा कि ‘वे कहते हैं, तो ठीक ही कहते हैं, उनके वोट से ही तो राज्यसभा में जाना है। मसानजोर डैम को लेकर शिबू सोरेन ने कहा कि यह आंखों देखी बात है, समझने की बात है। हमारी जमीनें डूबीं, हमारे लोग विस्थापित हुए लेकिन डैम का पूरा लाभ पश्चिम बंगाल के लोगों को मिल रहा है। डैम का पानी और वहां उत्पादित होनेवाली बिजली पश्चिम बंगाल जा रही है। पश्चिम बंगाल मसानजोर डैम को लेकर अन्याय कर रही है। निश्चित रूप से वर्तमान सरकार में इस डैम को लेकर भी बात होगी।
गुरुवार, 16 जनवरी 2020
दुमका : स्थानीय नीति में बदलाव की जरूरत, 1932 का कट ऑफ डेट हो लागू : शिबू सोरेन
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