आज के समय में देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है और अत्यधिक बेरोजगारी, बढ़ती मंहगाई के समय में देश को यह उम्मीद की थी कि वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट में सभी मुद्दों पर आवश्यक ध्यान दिया जायेगा और इसके साथ ही अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, जरूरतमंदों को सामाजिक सहायता प्रदान करना और रोजगार पैदा करने की उम्मीद इस बजट से की जा रही थी । जन स्वास्थ्य अभियान के अनुसार यह बजट रोजगार, स्वास्थ्य, खाद्य और पोषण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों सहित सभी वृहद आर्थिक और राजकोषीय मोर्चों पर बुरी तरह विफल रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए यह बजट और भी बुरी खबर लाया है और सरकार ने इस बजट में स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में निजी निवेश के प्रावधान को और अधिक मजबूती से साथ प्रस्तुत किया है, जिससे की आम जनता की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच । यह बजट सभी के लिए स्वास्थ्य के प्रति इस सरकार की गंभीर प्रतिबद्धता की निरंतर कमी को भी दर्शाता है। इस बजट ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और आयुष मंत्रालय को कम बजट आवंटन कर लोगों के स्वास्थ्य के प्रति इस सरकार की उदासीनता को स्पष्ट रूप से स्थापित किया है । हालाँकि बजट आवंटन में मामूली वृद्धि हुई है, 2020-21 में 69234 करोड़ का आवंटन स्वास्थ्य के क्षेत्र में किया था जो कि पिछले बजट 66466 करोड़ से थोड़ा ही ज्यादा 2768 करोड़ है जो कि कीमतों में वृद्धि की भरपाई नहीं करता है। इस प्रकार, वास्तविक रूप से, आवंटन में 4.3 प्रतिशत की कमी आई है। इसके अलावा, सकल घरेलू उत्पाद की हिस्सेदारी के मामले में, स्वास्थ्य पर केंद्रीय सरकार का आवंटन 0.33 प्रतिशत से घटकर 0.31 प्रतिशत हो गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में सरकार ने 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च को जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने का वादा किया गया है। इसके लिए आवश्यक है कि स्वास्थ्य के प्रति केंद्र सरकार के आवंटन में हर साल कम से कम 30 प्रतिशत की वृद्धि हो। इस बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) की लगातार उपेक्षा की गई है। एनएचएम के तहत 2020-21 में आवंटन 390 करोड़ से नीचे चला गया है ।
आयुष्मान भारत के तहत एक अन्य प्रमुख घटक हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (HWCs) है जिसमे कि गैर-संचारी रोगों सहित 12 अतिरिक्त चुनिन्दा सेवाओं का विस्तार करके प्राथमिक देखभाल को अधिक व्यापक बनाना था, के लिए 1600 करोड़ का आवंटन प्राप्त हुआ है जो की पिछले साल के बजट के बराबर ही है । इसी प्रकार एड्स और एचआईवी कार्यक्रम, आरसीएच कार्यक्रमों के लिए भी आवंटन में कोई बढ़ोतरी नही हुई है । राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन के लिए पूरा बजट भी स्थिर है जिसका वास्तविक अर्थ है कि इन सभी आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं के लिए वित्त पोषण में गिरावट है। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के प्रति सरकार की उदासीनता को देखते हुए यह स्पष्ट है कि इस बजट में एनएचएम के स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को मजबूत करने वाले घटकों पर आवंटन को कम कर दिया है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए। चिंता का एक प्रमुख मुद्दा पूंजीगत व्यय में तेज कमी है, जो अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं के निर्माण और उपकरणों की खरीद के लिए हैं। वर्ष 2019-20 की तुलना में चालू बजट में 45% में कटौती की गई है और वर्ष 2018-19 के लिए वास्तविक व्यय की तुलना में 58% की कमी की गयी है। यह बजट निजी क्षेत्र के लाभ को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक व्यय के उपयोग को प्राथमिकता देता है । हमारी वित्त मंत्री ने भाषण में कहा है कि घोषणा जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज निजी संस्थाओं को पीपीपी के तहत दिए जायेंगे । कुछ राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, केरल और मध्यप्रदेश पहले ही नीति आयोग के इस प्रस्ताव को खारिज कर चुके है। इसी प्रकार प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY), जो एक सरकार द्वारा वित्त पोषित योजना है, में बजट बढ़ाया गया है अनुमान है कि PMJAY लगभग 100% की वृद्धि की गयी है, जो की निश्चित ही निजी अस्पतालों के लिए कमाई को बढ़ावा देता है। जन स्वास्थ्य अभियान इस बजट में सार्वजनिक स्वास्थ्य को कमजोर करने और निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के इन प्रयासों का पुरजोर विरोध करता है और जनता के विरोध का आह्वान करता है। यह बजट बीमा क्षेत्र को मजबूत करने की वकालत करता है । जन स्वास्थ्य अभियान बजट खर्च को बढ़ाकर जीडीपी का 2.5% करने की मांग करता है । केंद्र सरकार का आवंटन सभी के लिए स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए, मुफ्त दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल को मजबूत करने के लिए समर्पित होना चाहिए ।
-अमूल्य निधि एस. आर. आज़ाद-
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