हाल के दिनों में,देश के उन क्षेत्रों में, जहां वामपंथी और वहाबी इस्लामी विचारों की चाशनी में डूबी नेहरूवियन रूपी वृक्ष की उखड़ी जड़ की सूखी तनो पर पर जब राष्ट्रीयता के पांव पड़ रहे तो उन तनो के टूटने की आवाज आती है, उस आवाज को जिसे देश के कुछ स्वनामधन्य परजीवी की भांति जीवन यापन करने वाले बुद्धिजीवी आंदोलन कहते नही थक रहे जबकि यह आंदोलन नही बल्कि यह सेमेटिक सोच से कुंठित समाज का वीभत्स रूप है।अब यह भारत वैश्विक शैक्षिक व आर्थिक भीख के सहारे जीनेवाला नही, बल्कि स्वाभिमान से प्राचीन भारत पर गर्व करनेवाला युवा भारत है।युवा भारत के युवा अपने बौद्धिक कुशलता से नया भारत गढ़ रहा।आज के युवा,भारत के उस महान परम्परा वसुधैव कुटुम्बकम को आत्मसात तो करता है लेकिन उसमें अपने संस्कार और संस्कृति को भी स्थापित करना चाहता है।भारत कोई जमीन का टुकड़ा नही बल्कि यह हमारी मातृभूमि, पितृभूमि औऱ पुण्यभूमि है,यह भारत के खासकर युवावर्ग में रचबस गयी।भारत के युवाओं में रचा यही भाव मार्क्स,मैकाले,वहाबी औऱ नेहरूवियन को हजम नही हो रही है।
जब भारत को गुलाम बनाने की कोशिशों में साम्राज्यवाद व्यस्त था,तब उनके बुद्धिजीवी यह प्रश्न किया करते थे-"क्या भारत के लोगों की कोई एक कौम है?क्या भारत मे रहनेवाले तरह-तरह की नस्लें औऱ धर्मों के लोगों को, जिनको जांत-पांत की दीवारों ने अनेक टुकड़े में बांट रखा है,जिनमे भाषा के और अन्य प्रकार के भेद पाए जाते हैंऔर जिनके अलग-अलग हिस्सों का सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्तर अलग-अलग है, क्या इस पंचमेल खिचड़ी को एक राष्ट्र या एक जाति कहा जा सकता है?क्या ये लोग कभी एक कौम बन सकते है?सोचिये उस समय भी भारत के महान चिंतकों ने ऐसे सोच पर कालिख पोत पूरी दृढ़ता से साबित किया कि भारत सदियो पूर्व से एक कौम,एक जाति एक राष्ट्र के रूप में था है और रहेगा।भले राजकीय स्वतंत्रता के समय नेहरूजी की सत्तालोलुपता ने भारत को खंडित धर्म के नाम पर कर भारत के लोगो के साथ छल किया, किन्तु सांस्कृतिक भारत को उनका पूरा गिरोह कुछ नही कर सका?इसी सांस्कृतिक भाव की ओर मुड़कर भारत का युवा एकबार फिर अपनी पहचान विश्व मे स्थापित कर रहा है।जैसे जैसे सांस्कृतिक भाव की लहर उठ रही वैसे वैसे परकीय वैचारिक समूहों के पेट मे ऐंठन शुरू हो रहा।आज ग़ैरहिन्दू वैचारिक समूहों के गिरोह स्यापा मचा रहे है।
भारत की महान संसद ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पारित किया ।यह कानून भारत के नागरिकों से किसी भी तरह से जुड़ा नही है,फिर इसका विरोध क्यों? भारत कभी भी किसी दूसरे धर्म को सताया या भक्षण किया हो ऐसा न कभी हुआ न होगा,किन्तु गैर भारतीय मत,मजहब इसके विपरीत रहा है।ऐसे में धर्म के आधार पर सत्ता के लिए भारत को खंडित करनेवाले नेहरूजी औऱ उनके ज़मात की अदूरदर्शी नीति का खामियाजा आज भी पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे घोर इस्लामी देश के सनातनी हिन्दू भुगत रहे। आज उनके अस्तित्व पर संकट है। ऐसे में भारत के सिवा कोई इस्लामी या ईसाई देश क्यों उन निरीह हिन्दुओ की बात करेगा ?दोनो सेमेटिक वर्ग किसी भी दशा में उन हिन्दुओ का भक्षण करने को उतावले है। विश्व मे मानवता के लिए ढोल पीटने वाले समूह हिन्दुओ की इस दुर्दशा पर मौन हो जाते हैं क्योंकि उनके हलक में जो टुकड़े गिरते वह उन्ही सेमेटिक वर्गों द्वारा फेंके जाते है ।इसलिए जो गिरोह यह कहता है कि इस कानून की जरूरत क्या थी? तो वह गिरोह सेमेटिक परम्परा में बंध अपनी गिरोह के हित मे खड़ा है। शेष गैर सेमेटिक गिरोह जोगेंद्र मण्डल फोबिया से ग्रसित है इस कारण CAA का गैर संवैधानिक विरोध कर रहा है ?इस कानून के विरुद्ध हुए प्रदर्शन में जीतने अराजकता को संरक्षण मिला वह चिन्तनीय है।
लोकतंत्र में हिंसा अराजकता और अधिनायकवादी का परिचायक है और प्रायः ऐसे हिंसक प्रदर्शन के लिए ही सेमेटिक वर्ग विश्व मे कुख्यात भी रहा है? प्रदर्शन की आड़ में हिंसक उग्रवादियों के साथ नरमी क्यों?ऐसे अराजक तत्व जो इसके विरोध की आड़ में सरकारी सम्पति फूंक रहे, सुरक्षा वलो पर पेट्रोल बम ,गोली,घातक हथियारों से हमला कर उनके खून के प्यासे हो रहे , उन आतातायी पर सुरक्षाकर्मियों को फूल बरसाने की कल्पना करनेवाले किस दुनिया मे जी रहा है? वैश्विक स्तर पर भारत की साख में बट्टा लगाने में लगे यह गिरोह पाकिस्तानी सह पर यूरोपियन यूनियन के सांसदों के पैर पकड़े लेकिन 751 सांसदों में से 600 सांसदों ने दुलत्ती मारी फिर भी यह गिरोह अपनी करनी से बाज नही आती।वास्तव में CAA भारत के लिए हितकारी तथा गहन निंद्रा में सोए गैर सेमेटिक लोगो को जगाने का कार्य किया है।इतिहासकार रामचन्द्र गुहा भारत:गांधी के बाद में लिखते है-"कम्युनिस्टों ने भारतीय राज्य के खिलाफ जंग का एलान कर दिया था।"ऐसे समूह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में देश के टुकड़े टुकड़े करने की बात करता है ।आज़ादी के बाद से ही बर्बर मार्क्स लेनिन और स्टालिन के सपनो में जीनेवाला यह गिरोह नेहरूवियन को अपने गिरफत में रखा तभी तो 1962 की भारत चीन संघर्ष पर हार के कारणों को खोजने के लिए बने हेंडरसन-ब्रुक्स-भगत आयोग की रिपोर्ट जब 1963 में आई तो नेहरूजी इसे दवाकर अपने कुकृत्यों पर पर्दा डाल दिया?ऐसे ज़मात आज CAA पर एकसाथ खड़े है क्योंकि दोनों पाप के बराबर भागीदार है।
संसद में व्यापक बहस भी इस कानून के लिए हुए, तब जाकर यह कानून का अमलीजामा पहना, फिर विरोध क्यों?संसद से पारित संवैधानिक व्यवस्था पर फिर बात अब क्यों? क्या, एक अर्धविक्षिप्त जिसकी ज़मात देश के संविधान का हत्यारा है या फिर साम्राज्यवादी सेमेटिक ज़मात को जो इस मुगालते में जीता है की हमने सैकडों बर्षो तक इस भूमि पर शासन किया?उसकी बात मान ले ?क्या उस सेमेटिक ज़मात जो सड़कों पर हिंसा का पक्ष लेता है या उस उन्मत टीवी पत्रकार को जो विचारों की अभिव्यक्ति के नाम पर गला फाड़ फाड़ देश को टुकड़े टुकड़े करने वाले को प्रश्रय देता है या उन पेशेवरों को जो आतंकी गिरोहों के पैसे से अपना पेट पालता जिसके लिए देश कोई मायने नही रखता उसकी बात लोकतंत्र के नाम पर सुनी जाए।ऐसे ज़मात को निराशा ही नही, उसके अस्तित्व पर संकट है , क्योंकि वर्तमान भारत की सरकार न वामपंथी है, न दक्षिणपंथी, यह विशुद्ध भारतपंथी है।यह सरकार देश की आन वान और शान में गुस्ताख़ करने वाला कोई भी हो चाहे विद्यार्थी हो चाहे शोधार्थी, चाहे अर्थशास्त्री हो या कलाकार,पत्रकार हो या अन्य पेशेवर चाहे वह कितना उच्च रसूख क्यों नही रखता हो उसके लिए सुई की नोक बराबर भी रहम नही रखती है। जो ज़मात इस मुगालते में जी रहा कि कायरों की तरह कुछ बच्चों और औरतों को आगे कर विश्व मे भारत सरकार को बदनाम करेंगे उनको यह स्मरण रखना चाहिए जिस गिरोह ने देश मे आपातकाल थोपा, जम्मू कश्मीर में धारा 370 थोपा,अपने सिख बन्धुओ का नरसंहार करवाया,जम्मूकश्मीर से हिन्दुओ को सफाया करवाया, अवैध बंगलादेशियो औऱ रोहिंग्यो को वोटवैंक बनाया ऐसे बदनामी से वर्तमान सरकार देश को निजात दिला रही है।आज विश्व पटल पर भारतीय नागरिक को जो मानसम्मान मिला वह सेमेटिक सोच से नियंत्रित सरकार के दिनो में नही बल्कि वर्तमान सरकार के वैश्विक नीति और भारत की भारतीय सोच पर चलनेवाली मज़बूत सरकार के कारण बनी है।आज का भारत विश्व का पथप्रदर्शक बन रहा है।
आज देश के नागरिकों को दिग्भ्रमित करने में राजनीतिज्ञों की ज़मात से ज़्यादा स्वनामधन्य परजीवी बुद्धिजीवियों की है।ऐसे गिरोहों की दुकानदारी पर लगते ताले, इनके मानसिक असन्तुलन का कारण बनता जा रहा।मनुष्य पुत्र दुख सह लेता किन्तु धनसंपदा दुख नही सह पाता,यही स्थिति आज भारत मे सेमेटिक समर्थक गिरोहों का है।नित्य नए हथकंडे लेकर आते, भद्द पीट जाते, फिर भी अपनी उज्ज्डता से बाज नही आते।आज देश मे यह सेमेटिक गिरोह घृणा,विभाजन,अपशब्दों,हिंसा जैसे अराजकता के सहारे जो इंद्रजाल फैलाने की कोशिश कर रहा उसमे वह खुद फंसते जा रहा है। आज देश का सामान्य नागरिक विशेषकर युवा ऐसे विभाजनकारी सेमेटिक तत्वों की चेहरे को पहचान रहा है और पूरी मज़बूती से केंद्र सरकार के पीछे खड़ा है।देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री के वक्तव्यों के बाद भी, जो अभी आया नही, हुआ नही,उसकी आशंका समाज मे फैलाकर जो राजनीतिक रोटी सेकने का प्रयास किया जा रहा, उसे जनता समझने लगी है।आज केंद्र की नीतिओ पर राज्यों का गैर संवैधानिक कृत्य लोकतंत्र के लिए घातक है। संघीय ढांचे पर राज्यों के द्वारा किये जा रहे प्रहार लोकतंत्र को कमजोर कर रही है। वैचारिक दरिद्रता ने इन राज्यों को उस स्थिति में खड़ा कर दिया है जैसे खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे की उक्ति चरितार्थ करती हो।अब भी समय है सेमेटिक सोच से संकुचित व कुंठित CAA के नाम पर विरोध के करनेवाले ऊपर उठ सकारात्मक सोच को अपना इस भारतभूमि के लिए आगे बढ़े सबका साथ लेकर हमसब नए भारत को और भी मज़बूत कर कुंठित सेमेटिक सोच को ध्वस्त करें।
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