बिहार : आंदोलनों को मुख्यमंत्री द्वारा बकवास बताना गरीबों का अपमान : माले - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

बिहार : आंदोलनों को मुख्यमंत्री द्वारा बकवास बताना गरीबों का अपमान : माले

नीतीश कुमार द्वारा गठित भूमि सुधार आयोग ने ही सीलिंग की 21 लाख एकड़ जमीन की शिनाख्त की थी. बजट में ग्रामीण गरीबों की मांगों, शिक्षा, रोजगार आदि सवालों की घोर उपेक्षा
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पटना 26 फरवरी , भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने आज बजट पर वक्तव्य के दरम्यान बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार द्वारा जमीन के सवाल पर बिहार के विभिन्न इलाकों में भाकपा-माले के नेतृत्व में चल रहे आंदोलनों को बकवास बताए जाने की निंदा की है और इसे दलित-गरीबों का अपमान बताया है. नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार में जमीन है ही नहीं लेकिन माले के लोग जमीन वितरण की बकवास करते रहते हैं. माले राज्य सचिव ने माननीय मुख्यमंत्री को याद दिलाते हुए कहा है कि 2008 में उनके ही द्वारा गठित भूमि सुधार आयोग कमिटी ने बिहार में 21 लाख एकड़ से ज्यादा सीलिंग की जमीन की शिनाख्त की थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने उस सिफारिश को लागू करने की बजाए रद्दी की टोकरी में फेंक दिया. भूमि आयोग ने कहा था कि उक्त जमीन से बिहार के न सिर्फ 17 लाख भूमिहीनों को खेती के लायक जमीन मुहैया की जा सकती है, बल्कि वासभूमि विहीन लोगों को 10-10 डिसमिल जमीन भी दी जा सकती है. इसके अलावा भी बहुत सारी जमीन दबंगों के कब्जे में है, लेकिन सरकार उनपर कोई कार्रवाई नहीं करना चाहती है. गैरमजरूरआ जमीन तो अलग है ही. मुख्यमंत्री जिस जल-जीवन-हरियाली योजना का प्रचार कर रहे हैं, उसकी आड़ में वे भूमि चोरों को नहीं बल्कि गरीबों को निशाना बना रहे हैं. कई जगहों पर दलितों-गरीबों के घर ढाह दिए गए हैं और लाखों लोगों को जमीन खाली करने की नोटिस थमा दी गई है. भोजपुर के तिलाठ में इस योजना के नाम पर लगभग 200 साल से रह रहे परिवारों को जमीन का पर्चा देने की बजाए उजाड़ने की नोटिस थमा दी गई है. इसी जिले के तरारी प्रखंड के सेदहां में 18 परिवारों तथा पूर्वी चंपारण के छौड़ादानो के एकडरी पोखरा में भी 22 भूमिहीन परिवार व बनजरिया प्रखंड के सुखीडीह पोखर में भी दर्जन भर घरों को ढाह दिया गया है. वहीं, अरवल के बंशी प्रखंड के महादेव बिगहा के 40 परिवारांे को नोटिस दी गई है तथा कनसुआ मुसहर टोली, मिचाईचक, रतनी के 29 परिवारों का घर ढाह दिया गया है. दरअसल नीतीश जी बिहार में अब भूमि सुधार की प्रक्रिया को उलटने का काम कर रहे हैं और गरीबों से जमीन छीनकर उसे भूस्वामियों के सुपुर्द कर रहे हैं.  उन्होंने आगे कहा कि बजट के बारे में कहा जा रहा है कि इसमें शिक्षा पर सर्वाधिक जोर है. तब, क्या मुख्यमंत्री बताना चाहेंगे कि आज बिहार के हजारों शिक्षक क्यों हड़ताल पर हैं? समान काम के लिए समान वेतन की मांग पर हड़ताली शिक्षकों के प्रति सरकार दमनात्क रूख अपनाए हुए है. सरकार के दावे के विपरीत आज कई जिलों में विद्यालयों का विलोपन किया जा रहा है. विश्वविद्यालयों में शिक्षकों व कर्मचारियों के आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं और राज्य में बेरोजगारी की दर चरम पर पहुंच गई है. बेरोजगारी के मामले में आज बिहार नंबर एक पर है. यह भी कहा कि सरकार खुद स्वीकार कर रही है कि राज्य की 76 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर आधारित है. लेकिन सरकार यह कहना हर बार भूल जाती हैै कि कृषि का बड़ा हिस्सा बटाईदारों के भरोसे है, जिन्हंे सरकार किसान ही नहीं मानती. बटाईदारों का पंजीकरण कर पहचान पत्र देने और उन्हें वास्तविक अधिकार दिए बिना बिहार का वास्तविक विकास संभव नहीं है.  लंबे समय से इंद्रपुरी जलाशय के निर्माण की मांग जनता कर रही है. इससे सोन कमांड के 8 जिलों में सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो सकती थी. लेकिन सरकार न तो इसका निर्माण करवा रही है और न ही सोन नहरों के आधुनिकीकरण के प्रति कोई चिंता दिखती है. इस कारण आज धान का कटोरा कहलाने वाले दक्षिण बिहार के जिलों में भी संकट होेने लगे हैं. किसानों से धान की खरीददारी नहीं हो रही है. औने-पौने दाम में किसान अपने धान को बिचैलिये के हवाले कर रहे हैं. ऐसे में सरकार यह बताए कि 30 लाख मिट्रीक टन धान खरीद की गारंटी कैसे करेगी? इसलिए, भाकपा-माले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आज के उनके वक्तव्य के आलोक में भूमि सुधार आयोग की सिफारिशों को नहीं लागू करने के कारणों को जानना चाहती है. वे बताएं कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि जमीन उपलब्ध रहने के बावजूद वे उसे गरीबों में नहीं बांट रहे हैं, उलटे गरीबों का अपमान कर रहे हैं.

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