झाबुआ (मध्यप्रदेश) की खबर 18 फ़रवरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

झाबुआ (मध्यप्रदेश) की खबर 18 फ़रवरी

प्रतिभा से प्रेरणा : किसान का बेटा जज बनना चाहता है करता है खूब मेहनत
झाबुआ जिलें में बच्चों को प्रेरणा देने प्रशासन बनाये आइकॉन
jhabua news
थांदला। आज के समय में बच्चा पैदा होने के साथ ही मोबाइल की जिद करने लग जाता है। खेल -कूद, नाच - गाना व शरारत करना बच्चों को खूब भाता है, वही पढ़ाई - लिखाई से वह दूर भागता है। आज सभी सुविधाओं के होने के बावजूद भी जहाँ बच्चें पढ़ना नही चाहते है वही वनांचल में ग्राम झापादरा में रहने वाले ग्रामीण भगत किसान मल्ला चरपोटा का छोटा बेटा 9 वर्ष का नन्हा गोलू जज बनना चाहता है। झापादरा के मिशन स्कूल में कक्षा पाँचवीं में पढ़ने वाला गोलू बच्चों के लिये एक प्रेरणा है। सुबह उठकर पढ़ना फिर स्कूल जाना व आकर अपने पापा के काम मे हाथ बटाना व फुटकर दुकान चलाना उसके लिए सहज है। यही नही साइकिल से आस-पास के गाँव जाकर फल आदि बेचकर आना भी उसे पसंद है। बचपन खेल-कूद का समय है लेकिन गोलू के पिता बताते है कि उसे खेल-कूद व मौज-मस्ती व उत्सव आदि में ज्यादा रुचि नही है वह तो पढ़ने में व दुकान चलाने में रुचि रखता है। इतना काम करने के बाद भी वह कभी स्कूल से छुट्टी नही लेता है। अपनी आगे की पढ़ाई के लिए स्वयं पैसों का इंतजाम करने के लिये गोलू खुद ही माल की खरीदी करता है व उसे थांदला - लिमड़ी मार्ग पर परवलिया फंटे पर किराये की दुकान लगाकर बेचता है, फिर सीजनल फल आदि लेकर पहले साइकिल से तो अब छोटी मोपेड टीवीएस एक्सल गाड़ी से आसपास के गाँव में जाकर बेचता है। उसके बड़े भाई व पिता की यही निकट में जमीन भी है वे खेती करते है, गोलू उनके काम में भी खूब हाथ बंटाता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं महिला बाल विकास आयोग की सम्भागीय अध्यक्ष सुमित्रा राजू मेड़ा की नजर जब इस नन्हे बालक पर पड़ी तो पहले बाल श्रमिक का मामला समझा लेकिन बच्चे से बात करने पर जब उसके काम करने व उसके जज बनने की महत्वाकांक्षी सपने को सुना तो निश्चित यह बालक जिले का ही नही अपितु प्रदेश का आइकॉन लगा। उन्होंने उनके पिता से बात कर उसे आगे पढाते हुए उच्च शिक्षा के लिये प्रेरित कर शासन - प्रशासन व संगठन से हर मदद का आश्वासन दिया। जब मैंने बच्चे को देखा तो मुझे लगा कि वह पढ़ाई नही करता है और बाल श्रमिक है लेकिन जब उससे बात की तब पता चला कि वह तो होशियार भी है। शासन प्रशासन को ऐसे बालक को शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये अपना आइकॉन बनाना चाहिए। सामजिक सेवा करने वालों को भी ऐसे बालक - बालिकाओं को शिक्षित करने में मदद करना चाहिए।

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