सिर्फ़ स्वास्थ्य क्षेत्र में ही प्रगति से स्वास्थ्य-सुरक्षा नहीं मिल सकती, विशेषकर कि उनको, जो सबसे अधिक ज़रूरतमंद हैं. स्वास्थ्य सेवा में सुधार के साथ-साथ, अन्य क्षेत्र में भी सुधार आवश्यक है जिससे कि समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए जीवन बेहतर हो सके. मूलभूत सेवाएँ, आर्थिक प्रगति, गरीबी उन्मूलन आदि से भी, हमारा स्वास्थ्य और संभावित जीवन-काल दोनों ही प्रभावित होता है, जिसमें प्रजनन और यौन स्वास्थ्य भी शामिल है. इसीलिए, दुनिया के 193 देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में, 2030 तक समाज के हर समुदाय के लिए, सतत विकास लक्ष्य (SDGs) पूरा करने का वादा किया.
एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में इस साल मई 2020 में, सियाम रीप कंबोडिया में, प्रजनन और यौन स्वास्थ्य और अधिकार पर, सबसे बड़ा अधिवेशन हो रहा है (10वां एशिया पसिफ़िक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ एंड राइट्स - APCRSHR10). इस अधिवेशन के संयोजक डॉ शिवोर्ण वार ने कहा कि प्रजनन और यौन स्वास्थ्य और अधिकार के लिए ज़रूरी है कि हर प्रकार की और हर स्तर पर लिंग-जनित असमानता समाप्त हो, हर इंसान को बिना किसी भी भेदभाव के सब आवश्यक प्रजनन और यौन स्वास्थ्य जानकारी एवं सेवाएँ मिलें, मातृत्व और शिशु स्वास्थ्य संतोषजनक हो और मातृत्व (और शिशु) मृत्यु दर में वांछित गिरावट आये, आदि ज़रूरी कदम हैं जो न सिर्फ प्रजनन और यौन स्वास्थ्य एवं अधिकार बल्कि सतत विकास लक्ष्य की ओर भी प्रगति में रफ़्तार लायेंगे. डॉ शिवोर्ण वार ने कहा कि, एशिया पसिफ़िक के कुछ अन्य देशों की तुलना में, प्रजनन और यौन स्वास्थ्य एवं अधिकार के मामले में, कंबोडिया अधिक प्रगतिशील है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रजनन और यौन स्वास्थ्य एवं अधिकार, मूलत: मौलिक मानवाधिकार में शामिल हैं, और गरीबी उन्मूलन और अन्य सतत विकास लक्ष्य पर प्रगति के लिए आवश्यक कड़ी हैं.
प्रजनन स्वास्थ्य पर प्रगति तो हुई पर क्या सतत-विकास के लिए ज़रूरी रफ़्तार से हुई?
एशिया पसिफ़िक के देशों में प्रजनन और यौन स्वास्थ्य, पर प्रगति तो हुई है पर सतत विकास के लिए आवश्यक सब मानकों पर जिस रफ़्तार से प्रगति होनी चाहिए, नहीं हुई है. कंबोडिया में भी चिकित्सकीय सुविधाओं में विस्तार और सामाजिक स्वास्थ्य सुरक्षा के कार्यक्रम के कारणवश, प्रजनन स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर हुआ. पिछले पांच सालों में, कंबोडिया ने 100 नए स्वास्थ्य केंद्र और 30 अस्पताल खोले जिसके फलस्वरूप स्वास्थ्य सेवा, जिसमें प्रजनन और यौन स्वास्थ्य सेवा भी शामिल हैं, वह लोगों की पहुँच के भीतर पहुंची. मातृत्व मृत्यु दर जो 2005 में हर 1 लाख शिशु जन्म पर 470 था, वह कम हो कर 2017 तक 160 हो गया (सतत विकास लक्ष्य के लिए इसको 2030 तक 70 से कम करना है). कंबोडिया में अन्य सुधार भी हुए जिनमें संस्थानिक प्रसूति, प्रशिक्षित प्रजनन स्वास्थ्यकर्मी और शिशु जन्म से 2 दिन के भीतर ही 90% माताओं को स्वास्थ्य सेवा प्राप्त होना शामिल हैं.
सतत विकास लक्ष्य में 2030 तक एड्स उन्मूलन भी शामिल है. एड्स उन्मूलन का तात्पर्य है कि, हर एक एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति, जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी दवा प्राप्त कर रहा हो और उसका वायरल लोड नगण्य हो, जिससे कि नए एचआईवी संक्रमण दर, शून्य रहे, और सभी एचआईवी के साथ जीवित लोग सामान्य जीवनकाल तक स्वस्थ रहें. इसीलिए सरकारों ने 2020 तक (11 माह शेष), 90% एचआईवी से संक्रमित लोगों को चिन्हित कर, 90% को एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी दवा देने और 90% का वायरल लोड नगण्य करने का वादा किया था. दुनिया में सिर्फ 7 देश ऐसे हैं जिन्होंने 2020 के यह 90-90-90 लक्ष्य पूरे कर लिए हैं और इनमें कंबोडिया शामिल है.
डॉ शिवोर्ण ने बताया कि कंबोडिया वर्त्तमान में आगामी 5 साल के लिए प्रजनन और यौन स्वास्थ्य सम्बंधित राष्ट्रीय नीति पर कार्यरत है जिसमें अनेक कार्यक्रम जैसे कि, परिवार नियोजन, लिंग और यौनिक हिंसा पर कानून द्वारा अंकुश लगाना, युवाओं के लिए विशेष सेवाएँ पहुँचाना, और मातृत्व और शिशु मृत्यु दर में वांछित गिरावट लाना, शामिल हैं. 1997 में कंबोडिया में एचआईवी/एड्स की चुनौती विकराल रूप धारण किये हुए थी. डॉ शिवोर्ण ने बताया कि सरकार ने इसी दौरान, युवाओं में, प्रजनन और यौन स्वास्थ्य सम्बंधित जागरूकता बढ़ाने का बीड़ा उठाया. समय के साथ, अनेक विषय इसी प्रयास में शामिल हो गए जैसे कि प्रसूति, यौन रोग, सुरक्षित यौन आदि. आरंभ में, अभिभावकों की ओर से कुछ आपत्ति आई पर समय के साथ संवाद आदि से सोच बदली और यह कार्यक्रम प्रभावकारी भी होने लगे.
2019 में, कंबोडिया के शिक्षा विभाग ने, व्यापक यौनिक शिक्षा (कॉम्प्रेहेंसिव सेक्सुअल एजुकेशन) को ज़रुरी विषय के रूप में शामिल करने की अनुमति दे दी है जो निश्चित तौर पर प्रगतिशील कदम है. स्वास्थ्य मंत्रालय की मदद से, 1-12 कक्षा के लिए इसके पाठ्यक्रम और विषय-सम्बंधित पुस्तक आदि बनाए जा रहे हैं और 2022 तक यह विषय शिक्षा में शामिल हो जायेगा. प्रगति तो हुई है पर यह सतत विकास के लिए कदापि काफ़ी नहीं है. डॉ शिवोर्ण का मानना है कि, पैसे का अभाव भी एक बड़ी चुनौती है. अमरीकी सरकार ने सुरक्षित गर्भपात के कार्यक्रमों में आर्थिक निवेश बंद कर के भी, समस्या को अधिक जटिल बना दिया है. न सिर्फ एशिया पसिफ़िक के देशों में बल्कि दुनिया में कई जगह सुरक्षित गर्भपात और अन्य कार्यक्रम समस्याओं से जूझ रहे हैं. यूरोप के कुछ देशों ने मदद ज़रूर की परन्तु हमें यह समझ गहरानी होगी कि सतत विकास के लिए, स्वास्थ्य सुरक्षा अति-आवश्यक है - और प्रजनन और यौन स्वास्थ्य इससे अविभाज्य है. सभी देशों की सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वास्थ्य और विकास के कार्यक्रम पूर्ण रूप से लागू हों.
सर्वाइकल कैंसर से प्राथमिक बचाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कंबोडिया में महिलाओं में सबसे अधिक जानलेवा कैंसर है सर्वाइकल कैंसर. सर्वाइकल कैंसर से बचाव मुमकिन है यदि महिलाओं की समयानुसार जांच होती रहे और ज़रूरत पड़ने पर बिना विलम्ब उपचार हो. बच्चियों को विश्व स्वास्थ्य संगठन की मार्गनिर्देशिका के अनुसार, वैक्सीन लगनी चाहिए जो अनेक देशों में धन के अभाव में, ज़रूरतमंद नवयुवतियों को नहीं मिल पा रही है. कंबोडिया में भी वैक्सीन अभी शामिल नहीं है और उम्मीद है कि सर्वाइकल कैंसर के बचाव और रोकधाम के लिये सभी ज़रूरी कार्यक्रम पूरी तरह से लागू होंगे.
शोभा शुक्ला - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
(शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-संपादिका हैं, और लोरेटो कान्वेंट से सेवा-निवृत्त शिक्षिका हैं. एएसआई के प्रेसिडेंट अवार्ड 2019 से सम्मानित वह जन स्वास्थ्य और समानता से जुड़े मुद्दों पर लिखती रही हैं. उनसे ट्विटर पर जुड़ें @shobha1shukla, वेबसाइट http://www.citizen-news.org)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें