विशेष आलेख : हस्तकला ने महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

विशेष आलेख : हस्तकला ने महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

rajasthan-handicraft-women-empowermentपश्चिमी राजस्थान के सीमावर्ती जिला जैसलमेर के पोखरण तहसील की पहचान विश्व पटल पर सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ हैं। इसका नाम आते ही हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता हैं, क्योंकि 18 मई 1974 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने और 11 व 13 मई 1998 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने इसी पोखरण में परमाणु परीक्षण कर भारत को विश्व में महाशक्ति के रूप में पहचान दी। जिसका पूरा श्रेय भारत के महान वैज्ञानिक मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम आजाद को जाता है। जिन्होंने भारत में परमाणु की खोज कर उक्त परमाणु परीक्षण में मुख्य भूमिका निभाई। लेकिन यही पोखरण अब महिला सशक्तिकरण के लिए भी विश्व पटल पर तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। हस्तकला के क्षेत्र में यहां की महिलाएं न केवल निपुण हो रही हैं बल्कि आर्थिक रूप से सशक्त भी बन रही हैं। 

विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल जोधपुर से 175 किमी. दूरी पर स्थित पोखरण तहसील की आबादी लगभग तीस हजार है। आर्थिक दृष्टिकोण से यह इलाका काफी पिछड़ा हुआ है। लेकिन बदलते परिदृश्य में यहां के निवासियों विशेषकर महिलाओं ने स्थानीय हस्तकला को आय का महत्वपूर्ण साधन बना लिया है। इससे न केवल आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं बल्कि क्षेत्र को एक नई पहचान भी दे रही हैं। उनके इस काम को जहां एचडीएफसी बैंक का सहयोग मिल रहा है वहीं स्वयंसेवी संस्था उरमूल ट्रस्ट द्वारा दिया जाने वाला प्रशिक्षण उन्हें सक्षम बनाने में विशेष योगदान दे रहा है। एचडीएफसी बैंक का समग्र ग्राम विकास परियोजना परिवर्तन व उरमूल ट्रस्ट बीकानेर द्वारा संचालित मरूगंधा परियोजना के तहत पोखरण के तीन गांव थाट, चाचा और गोमट में पारम्परिक हस्तकला को पुनर्जीवित करने तथा गांव की महिलाओं को स्वरोजगार देने के उद्देश्य से बुनाई और कट वर्क राली का प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं। नवम्बर, दिसम्बर 2019 तथा जनवरी 2020 में चाचा, थाट व गोमट गांवों की कुल 106 महिलाओं को हस्तकला विकास प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा गया। 21 दिनों तक आयोजित इस प्रशिक्षण के दौरान उन महिलाओं को चरखा चलाना, गट्टा भरना, ताना करना, ताना चढाना और हैण्डलूम व खड्डी लूम चला कर कपडा बुनाई करना सिखाया गया। इसी तरह चाचा गांव में 30 थाट गांव में 18 व गोमट गांव में 30 महिलाओं को कट वर्क राली का प्रशिक्षण दिया गया।

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खास बात यह है कि जो महिलाऐं हमेशा ही घूंघट में रहती है उन महिलाओं ने भी अपने पारम्परिक हस्तकला बुनाई व कट वर्क राली का प्रशिक्षण प्राप्त कर इस कला को बढावा दिया। वहीं दूसरी ओर जो ग्रामीण महिलाऐं अब तक अपने पारम्परिक हस्तकला को करने में संकोच करती थी, वह अब उसी को सीख कर घर बैठे स्वरोजगार करने लगी हैं। अब ये महिलायें पुरूषों के समान काम कर अपनी आजीविका कमा कर परिवार का सहयोग कर रही हैं। जो इस क्षेत्र के लिए एक मिसाल है। प्रशिक्षण प्राप्त कर हस्तकला को आय का साधन बनाने वाली थाट गांव की उदया देवी बताती हैं कि इससे पहले उन्होंने कभी भी बुनाई का काम नही किया था। उन्होंने कहा कि मरूगंधा परियोजना के तहत उरमूल ने हमें 21 दिन का बुनाई प्रशिक्षण देकर हमारे लिए स्थाई रोजगार का इंतेजाम कर दिया है। वहीं दूसरी ओर गोमट गांव की अनु देवी बताती हैं कि उरमूल से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद गांव की महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं बल्कि परिवार को चलाने में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला रही हैं। उन्होंने कहा कि इस रोजगार ने न केवल उन्हें सशक्त बनाया है बल्कि समाज में सम्मानपूर्वक स्थान भी दिलाया है।  

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इस संबंध में उरमूल ट्रस्ट, बीकानेर के सचिव अरविन्द ओझा ने बताया कि संस्था का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को घर बैठे रोजगार दिलाना और उनको स्वावलम्बी बनाना है। संस्था के प्रयासों से घूंघट में रहने वाली महिलाओं में हिम्मत पैदा हुई है, और उनका रूझान अपने पारम्परिक हस्तकला की ओर बढ़ने लगा हैं। उन्होंने कहा कि रोजगार के अभाव ग्रस्त क्षेत्रों में आज जरूरत हैं ऐसी संस्थाओं की जो इन पारम्परिक हस्तकला को पुनर्जीवित कर ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का काम करे। आज वे महिलाऐं पुरूषों से कम नहीं हैं। कमी इस बात की हैं कि घुंघट में रहने वाली उन महिलाओं को प्रोत्साहन करने की। ज्ञात हो कि उरमूल ट्रस्ट पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, गंगानगर, हनुमानगढ़ और नागौर जिलों में महिलाओं को उनके पुस्तैनी व्यवसाय और हस्तकला से जोड़ने के लिए प्रयासरत हैं। 

पश्चिमी राजस्थान में लुप्त हो रही कला को पुनःजीवित करने में यह संस्था महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सैकड़ो बुनकर और कशीदा करने वाली महिलाओं को आजीविका से जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। अरविंद ओझा कहते हैं कि उरमूल ट्रस्ट थार के रेगिस्तान में पिछडे और वंचित लोगों के जीवन को सक्षम और सशक्त बनाने के लिए संकल्पित हैं। समाज की पारंपरिक कलाओं और रोजगार के तरीकों को आधुनिक बाजार के अनुरूप बनाकर उनकी आयवर्धन करना मुख्य उद्देश्य हैं। सक्षम बनाने से लेकर स्वावलंबन तक की यात्रा सहभागी तरीके से उरमूल परिवार पश्चिमी रेगिस्तान में बरसों से कर रहा हैं। पोखरण में पारंपरिक बुनाई को विश्व बाजार तक पहुंचाने के साथ अब महिलाओं को आयवर्धन हेतु सक्षम बनाया जा रहा हैं। सबल और सक्षम महिला सम्पूर्ण परिवार के स्वावलम्बन का आधार बन सकती हैं। यह सिद्धांत उरमूल ट्रस्ट ने विगत तीन दशकों में रेगिस्तानी समुदायों के साथ कठिन परिस्थितियों में काम करते हुए सीखी हैं।

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भारत हस्त निर्मित वस्त्रों और हस्तशिल्प उत्पादों के मामलों में विश्व प्रसिद्ध है। विदेशों में भारतीय हस्तकला को विशेष सम्मान दिया जाता है। भारत आने वाले पर्यटक यहां के हस्तशिल्प उत्पाद को खरीदना चाहते हैं। देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में इसके विशेष योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। वर्त्तमान में यह देश की ग्रामीण महिलाओं को सबसे अधिक रोजगार देने वाले सेक्टरों में अग्रणी बनता जा रहा है। हालांकि अब भी हस्तशिल्पकारों को उनकी मेहनत के अनुरूप कमाई नहीं हो पा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण उत्पादों का उचित बाजार नहीं मिलना होता है। ऐसे में उरमूल ट्रस्ट जैसी संस्थाओं का सहयोग गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आवश्यकता है ऐसी संस्थाओं और उसकी नीतियों को अधिक बढ़ावा देने की। 




गणपत गर्ग
पोखरण, राजस्थान
(चरखा फीचर्स)

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