पटना,27 मार्च। इस समय देश अभूतपूर्व कठिनाईयों के दौर से गुज़र रहा है।यह कथन है एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. डीएम दिवाकर का। आगे कहा कि एक तरफ अंतरराष्ट्रीय महामारी कोरोनावायरस से शिकार होने का भयावह मंजर और दूसरी ओर अप्रत्याशित आर्थिक संकट के अवश्यम्भावी दुष्परिणामों को रोकने की चुनौतियां हैं। जी हां, कोरोनावायरस से बचने के लिए संक्रमित व्यक्ति की पहचान करना सबसे मुश्किल काम है क्योंकि हमारी स्वास्थ्य सेवाओं और सुविधाओं का अत्यंत अभाव है जिसे अबतक की सभी सरकारों ने उपेक्षा की है, पर वर्तमान केन्द्र सरकार ने सबसे अधिक उपेक्षा की है।इससे और स्पष्ट होगा कि और एक कड़वी सच्चाई भी है कि स्वास्थ्यकर्मियों और चिकित्सकों को समुचित सुरक्षा किट( पीपीई ) उपलब्ध नहीं है और वे हाई रिस्क पर काम कर रहे हैं। बड़े साहब लोग आलिशान चेंबर में भी मास्क लगाए बैठे हैं और बड़े पैमाने में सैनिटाइजर भी उनके पास उपलब्ध है लेकिन फ्रंट पर काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के पास सैनिटाइजर तक नहीं है पीपीई किट की बात तो छोड़ ही दीजिए।सरकार और प्रबंधन को इस विंदु पर शीघ्रताशीघ्र ध्यान देना चाहिए।यदि योद्धा ही संक्रमित हो जाएंगे और स्वस्थ नहीं रहेंगे तो आम जनता को कौन बचाएगा? यहां तक की अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के आवंटन में भारी कटौती कर दी है। दूसरा उपाय है चिन्हित संक्रमित व्यक्ति को एकांत उपचार केन्द्र में इलाज कराना। जब पहचान ही नहीं कर पाए तो इलाज तो उनका होगा जो मरीज स्वयं अस्पताल में भर्ती हुए। तीसरा उपाय था पूरी समस्या का सम्यक वैज्ञानिक विश्लेषण कर आगे की रणनीति बनाकर अमल करना। इन सबों में हम चूके हैं। तब जो उपाय बचता है वह है सामाजिक दुराव और जागरूकता। सरकार को सामाजिक दुराव पर भी गम्भीरता से इसके फलाफल पर विचार कर लेना चाहिए। यह सच है कि यह महामारी कोरोनावायरस तेजी से फैल रहा है पर यह भी सच है कि अधिकांश लोग सावधानी से बच सकते हैं। लेकिन पूरे देश को लाक डाउन करना अप्रत्याशित आर्थिक संकट को लेकर आया है। सरकार ने देर से ही सही लेकिन वित्त मंत्री ने कोरोनावायरस से बचने हेतु 1.70 लाख करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की है जिसका स्वागत होना चाहिए। पर इसे जमीन पर उतारने की चुनौतियां भी हैं। लेकिन सबसे बड़ा संकट आर्थिक महामारी होने वाला है। लॉकडाउन की घोषणा के बाद ही आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। जमाखोरी के आगे सरकारी तंत्र विवश हैं। पर इससे भी बड़ा संकट आना बाकी है जब आवश्यक वस्तुओं का स्टाक खत्म होगा। क्योंकि लॉकडाउन से उत्पादन तो बंद हो गया है। कारखानों में मजदूरों की छंटनी ज़ारी है। जिससे बेरोजगारी जो पहले से ही 45 साल पुरानी उंचाई पर थी अब और भी भयावह होगी। जिससे खाली जेब देश में वस्तुओं और सेवाओं के मांग में पहले से 40 साल निचले स्तर पर था ही अब और नीचे जायेगा। इस दुष्चक्र में फंसकर अर्थव्यवस्था अप्रत्याशित तबाही का शिकार हो जायगी। नोटबंदी का संकट तो देश झेल भी लिया, इसे झेलना आसान नहीं होगा। असंगठित क्षेत्र का कारोबार सबसे अधिक प्रभावित होगा। फलत: विकास दर जो अभी 4.5फी सदी रहने वाला था, घटकर 2.5 से 3 फीसदी के बीच भी रह सके इसका भी अनुमान लगाना मुश्किल है। जिससे सरकार के पास खर्च करने की ताकत ही कम हो जायगी जो जीएसटी से अपेक्षित कर वसूली नहीं होने से वैसे ही सरकार वित्तीय दबाव में है। पहले कुछ हद तक इसकी भरपाई पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में अंतरराष्ट्रीय कच्चा तेल के दाम में गिरावट से भरपाई हो जाती थी। अब उसकी भी सम्भावना घट गयी है। अंतरराष्ट्रीय कच्चा तेल के दाम में गिरावट जारी है पर देश में लाकडाउन से पेट्रोलियम पदार्थों की मांग में भारी कमी हो गई है। ऐसे में सरकार सार्वजनिक सम्पत्ति को बेचकर खर्च चलायेगी, सरकार के पास सीमित विकल्प होगी। सरकार को इस कठिन क्षण में खेती, लघु उद्योग, मजदूरों को रोजगार, उद्योगों में उत्पादन पुनः शुरू करने का वातावरण अविलंब तैयार करने की चुनौतियां और भी भयावह है। जितनी देर होगी, अर्थव्यवस्था उतनी ही संकट से घिरी होगी। अभी भी वक्त है गम्भीरता से विचार करने की जिससे अभूतपूर्व संकट से बचा जा सकता है।
शुक्रवार, 27 मार्च 2020
बिहार : इस समय देश अभूतपूर्व कठिनाईयों के दौर से गुज़र रहा है : प्रो.दिवाकर
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