‘जनेऊ’ 3 धागों वाला एक सूत्र,हिंदू धर्म में है इसका विशेष महत्व है, धर्म के साथ हैं वैज्ञानिक कारण भी ।
हिंदू धर्म में जनेऊ का बड़ा महत्व माना जाता है. जनेऊ संस्कार की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है, जिसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं. आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं. इस धागे को जनेऊ कहते हैं. जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है. जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है. यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है. अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे.
तीन धागों के इस सूत्र में होता है तीन देवताओं का वास
जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है. ब्राह्मणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है. तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है. तीन सूत्र हिन्दू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं. अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है. अविवाहित व्यक्ति तीन धागों वाला जनेऊ पहनते हैं जबकि विवाहितों को छह धागों वाला जनेऊ धारण करना होता है.M
तीन सूत्र क्यों
जनेऊ में मुख्यरूप से तीन धागे होते हैं. यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है. यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है. यह तीन आश्रमों का प्रतीक है. संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है.
नौ तार :
यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं. इस तरह कुल तारों की संख्या नौ होती है. एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं.S
पांच गांठ :
यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है. यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है. वैदिक धर्म में प्रत्येक आर्य का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना. प्रत्येक आर्य (हिन्दू) जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करें. ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है. जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है. द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म. लडकियों को भी जनेऊ धारण करने का अधिकार है.
जनेऊ की लंबाई :
यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है. इसका अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए. चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विद्याएं होती है. 64 कलाओं में जैसे- वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि.
स्वास्थ्य और पौरुष के लिए लाभकारी
धार्मिक महत्व के साथ-साथ जनेऊ का वैज्ञानिक लाभ भी होता है. वैज्ञानिक दृष्टि से जनेऊ स्वास्थ्य और पौरुष के लिए बहुत ही लाभकारी होता है. जनेऊ को धारण करने से हृदय रोग की आशंका कम हो जाती है. चिकित्सा विज्ञान की मानें तो दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ा होता है.
शुक्र की भी रक्षा करता है जनेऊ
मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्र की रक्षा होती है. जिन पुरुषों को बार-बार बुरे स्वप्न आते हैं उन्हें सोते समय कान पर जनेऊ लपेट कर सोना चाहिए। माना जाता है कि इससे बुरे स्वप्न की समस्या से मुक्ति मिल जाती है. कान पर जनेऊ लपेटने से दूर होती है पेट और रक्तचाप की समस्या. कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग और रक्तचाप की समस्या नियंत्रण में रहती है.
काम और क्रोध पर भी रहता है नियंत्रण
पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो दांए कंधे से लेकर कमर तक स्थित होती है. यह रेखा शरीर में विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है. जनेऊ पहनने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है.
--मनोरंजन सहाय--
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