कोरोना से विश्व पर क्या असर हुआ है इसकी बानगी अमरीकी राष्ट्रपति का यह बयान है कि, "विश्व कोरोना वायरस की एक अदृश्य सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है।" चीन के वुहान से शुरू होने वाली कोरोना नामक यह बीमारी जो अब महामारी का रूप ले चुकी है आज अकेले चीन ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए परेशानी का सबब बन गई है। लेकिन इसका सबसे अधिक चिंताजनक पहलू यह है कि वैश्वीकरण की वर्तमान परिस्थितियों में यह बीमारी समूची दुनिया के सामने केवल स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि आर्थिक चुनौतियाँ भी लेकर आई है। सबसे पहले 31 दिसंबर को चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को वुहान में न्यूमोनिया जैसी किसी बीमारी के पाए जाने की जानकारी दी। देखते ही देखते यह चीन से दूसरे देशों में फैलने लगी और परिस्थितियों को देखते हुए एक माह के भीतर यानी 30 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे विश्व के लिए एक महामारी घोषित कर दिया। स्थिति की भयावहता को इसी से समझा जा सकता है कि आज लगभग दो महीने बाद, चीन नहीं बल्कि यूरोप चीन से शुरू हुई इस बीमारी का नया एपिसेंटर यानी उपरिकेन्द्र बन चुका है। अब तक दुनिया भर में इसके 219357 मामले सामने आ चुके हैं जिनमें से 8970 लोगों की जान जा चुकी है। जिनमें से चीन में 3245, इटली में 2978, ईरान में 1135, अमेरिका में 155, फ्रांस में 264, ब्रिटेन में 104 मौतें हुई हैं। ईरान में तो हालत यह है कि वहाँ की सरकार ने महामारी फैलने के डर से अपनी जेलों में बंद लगभग 2500 कैदी रिहा कर दिए। कनाडा के प्रधानमंत्री की पत्नी इसकी चपेट में हैं।
भारत की अगर बात करें तो इसकी वजह से हमारे देश में अब तक तीन लोगों की जान जा चुकी है और धीरे धीरे इस महामारी ने यहाँ भी अपने पांव पसारना शुरू कर दिया है। दक्षिण भारत के राज्य केरल से देश में प्रवेश करने वाला यह वायरस कर्नाटक, महाराष्ट्र, दिल्ली,हरियाणा और पंजाब होता हुआ उत्तर भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख तक पहुंच गया है। पहले से ही आर्थिक मंदी झेल रहे भारत समेत अधिकतर देशों में कोरोना के बेकाबू होते संक्रमण से बचने के चलते शट डाउन जारी है। यानी सिनेमा हॉल, मॉल, बाजार, स्कूल, कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। भारत में तो बोर्ड और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएँ तक अगले आदेश तक स्थगित कर दी गई हैं। विभिन्न मल्टीनेशनल कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने को कहा है। सरकार की ओर से भी एडवाइजरी जारी की गई है जिसमें वो लोगों से एक जगह एकत्र होने से बचने के लिए कह रहे हैं और उन्हें आइसोलेशन यानी कुछ समय के लिए एक दूसरे से मेलजोल कम करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। यह बात सही है कि भारत सरकार ने शुरू से ही कोरोना वायरस के रोकथाम के लिए गंभीर प्रयास आरम्भ कर दिए थे। विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने में भी इस सरकार ने ना सिर्फ तत्परता दिखाई बल्कि भारत आने के बाद उनकी जांच और उनके क्वारंटाइन के भी इतने बेहतरीन उपाय किए कि ना सिर्फ विदेशों से लौटे भारतीय ही भारत सरकार के इंतज़ाम को अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों से बेहतर बता रहे हैं अपितु विश्व स्वास्थ्य संगठन भी भारत सरकार के इन प्रयासों की तारीफ किए बिना नहीं रह सका। विश्व स्वास्थ्य संगठन के भारत के प्रतिनिधि हेंक बेकडम ने कहा है कि, "कोरोना के खिलाफ पी एम ओ समेत पूरी भारत सरकार के प्रयास प्रभावशाली हैं।"
लेकिन दिक्कत यह है कि हालांकि इस प्रकार की आइसोलेशन से बीमारी से तो बचा जा सकता है लेकिन इससे होने वाले आर्थिक प्रभाव से नहीं। यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बात का अंदेशा है कि आने वाले महीनों में बढ़ते तापमान के साथ हालांकि इस बीमारी का प्रकोप धीरे धीरे कम होकर समाप्त हो जाएगा लेकिन स्वाइन फ्लू की ही तरह तापमान कम होते ही हर साल यह फिर से सिर उठाएगी। इसलिए इस बीमारी से लड़ने के लिए हमें लघु अवधि या तात्कालिक उपाय ही नहीं दूरगामी परिणाम वाले उपाय भी करने होंगे। इस दिशा में विभिन्न देश अलग अलग कोशिशें कर रहे हैं। जैसे भारत में राजस्थान के एस एम एस अस्पताल के डॉक्टरों ने मलेरिया स्वाइन फ्लू एच आई वी की दवाइयों के कॉम्बिनेशन से कोरोना के एक ऐसे मरीज़ को ठीक किया जिसे मधुमेह भी था। यह अपने आप में एक उपलब्धि है जिसने भविष्य में इसके इलाज को खोज निकालने की नींव डाली है। वहीं अमेरिका ने कोरोना की वैक्सीन बनाने का दावा किया जिसे कथित तौर पर एक महिला पर उपयोग भी किया गया है।
लेकिन इन प्रयासों से विपरीत ब्रिटेन इस बीमारी से लड़ने के लिए एक अनोखा और रोचक किन्तु जोखिम भरा प्रयोग कर रहा है। उसने कोरोना से लड़ने के लिए आइसोलेशन थेरेपी के बजाय हर्ड यानी झुंड इम्युनिटी का सिद्धांत अपनाने का फैसला लिया है। इसके अनुसार वो अपने लोगों को एक दूसरे से दूर रहने के बजाए एक दूसरे के साथ सामान्य जीवन जीने की सलाह दे रहे हैं। इस पद्धति का मानना होता है कि स्वस्थ मानव शरीर में रोगों से लड़ने की नैसर्गिक शक्ति होती है। प्राचीन काल से अबतक मानव ने अपनी इसी रोगप्रतिरोधक क्षमता के बल पर अनेक रोगों पर विजय पाई है। दरअसल वैक्सीन भी इसी सिद्धांत पर काम करती है। किसी बीमारी की वैक्सीन के जरिए उस बीमारी के कीटाणु एक सीमित मात्रा में मानव शरीर में पहुँचाए जाते हैं। वैक्सीन के जरिए इन कीटाणुओं के सीमित मात्रा में मानव शरीर में प्रवेश करते ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के चलते उससे लड़ने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है जिससे भविष्य में ऐसी किसी बीमारी के आक्रमण के लिए हमारा शरीर पहले से तैयार हो जाता है। इसी सिद्धान्त के आधार पर ब्रिटेन अपने स्वस्थ नागरिकों को सामान्य जीवन जीने की आज़ादी दे रहा है और क्वारंटाइन केवल बच्चों, बूढ़ों या फिर उनका कर रहा है जो कमजोर हैं या फिर पहले से मधुमेह जैसी बीमारियों की वजह से उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता कम है। देखा जाए तो यह कदम जोख़िम भरा तो है लेकिन अगर कारगार होता है ब्रिटेन के लोगों को भविष्य में इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं होगी। इन प्रयोगों के नतीजे जो भी हों लेकिन इतना तो निश्चित है कि अब मानव सभ्यता को अपनी अंधे वैज्ञानिक विकास की दौड़ की कीमत कोरोना नामक एक खतरनाक संक्रामक बीमारी से चुकानी होगी। लेकिन कोरोना को लेकर अफवाहों के इस दौर में यह जान लेना अति आवश्यक है कि यह खतरनाक इसलिए नहीं है कि यह जानलेवा है बल्कि इसलिए हे कि यह संक्रामक है। आंकड़ों पर गौर करें तो कोरोना से मृत्यु प्रतिशत केवल 4% है। अर्थात कोरोना से पीड़ित 100 में से केवल चार प्रतिशत लोगों की मृत्यु होती है वो भी उनकी जो बूढ़े हैं या जिनकी किसी कारणवश रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है। बस हमें काबू पाना है इसके संक्रमण पर। देश के एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हम में से हरेक को सावधानी बरतनी है कि यह देश में हमसे किसी दूसरे को न फैले। क्योंकि पंजाब में एक मामला सामने आया जिसमें विदेश से लाए गए लगभग 134 लोग स्वास्थ जांच कराए बिना एयरपोर्ट से भाग गए। अब प्रशासन उन्हें ढूंढने में लगा है। सोचने वाली बात है कि अगर इनमें से कोई कोरोना जांच में पोसिटिव पाया जाता है तो वह देश के लोगों के स्वास्थ्य के लिए कितना बड़ा खतरा है। इसलिए सरकार तो अपना काम कर ही रही है, हमें भी इस कठिन घड़ी में अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।
डॉ नीलम महेंद्र
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार है)
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