"रामायण में रघुवीर-रघुवीर सुनते हुए मेरे माता-पिता ने मेरा नाम रघुवीर रख दिया " - रघुबीर यादव
शानिवार की शाम नीले आसमान को काले बादलों ने घेर लिया। बाहर, चढ़ते तापमान में इन काले बादलों की जरूरत धरती, पेड़-पौधे, फूल, चिड़ियाँ सभी को थी। हमें भी। लेकिन, हमारे लिए बाहर खुलकर सांस लेने में शायद अभी थोड़ा समय और है। तब तक जरूरी है कि हम किताबों के साथ प्रकृति, फूल, चिड़ियाँ, पेड़ और पौधों की बातें करें। लॉकडाउन में राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक लाइव में वीकेंड की शुरूआत पुष्पेश पंत के स्वाद- सुख कार्यक्रम से हुई तो वहीं थियेटर कलाकार, गायक और फ़िल्म अभिनेता रघुवीर यादव ने वर्षा की आवाज़ में अपने गानों की मिठास घोल दी। फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रमों के जरिए साहित्यकार अवधेश प्रीत और शिरिष मौर्य ने उपन्यास और काव्य पाठ से साहित्य के तार को जोड़ा। राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से लगातार यह कोशिश है कि लॉकडाउन में लोग अपने आप को अकेला महसूस न करें। ई-बुक, किताबों से अंश, पॉडकास्ट, खान-पान की बातें, साहित्यकारों से लाइव मुलाक़ात, गीतकार और अभिनेताओं से लाइव चर्चाएं लोगों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने में मददगार साबित हो रहीं हैं। यह हमारे समय की जरूरत भी है।
आलू एक शामिल बाजा है
राजनीति में जुमलों का बहुत महत्व है। चुनावी प्रचार के दौरान अपनी कही बात को धार देने के लिए पक्ष-विपक्ष के लोग इन जुमलों का बहुत इस्तेमाल करते हैं। कुछ ऐसे जुमले भी होते हैं जो अपने समय की सीमा को लांघकर अनंत विस्तार पाते हैं। जैसे-
जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू
लेकिन, ‘स्वाद-सुख’ के कार्यक्रम में राजनीति की नहीं, खाने-पीने की बातें होती हैं। शनिवार की सुबह इतिहासकार पुष्पेश पंत के झोले से निकला- आलू। आलू की कथा अपरम्पार है। न आदि, न अंत। खानपान के इतिहासकारों की मानें तो इसका जन्म पेरू और बोलिविया के आसपास के इलाकों में हुआ था। माना जाता है कि आलू, पुर्तगाली औपनिवेशकों के साथ दक्षिण अमेरिका से चला और 500 साल पहले वो यूरोप पहुंचा। यूरोप के रास्ते आलू पहुंचा एशिया। आज आलू ने भारत के कोने-कोने में अपना सिक्का जमा लिया है। पुष्पेश पंत कहते हैं, “आलू हमारा अपना है। व्रत, उपवास के दिनों में इसका ग्रहण, बिना यह सोचे समझे किया जाता है कि इसे ईसाई मिशनरी अपने साथ भारत लाए थे। इतना अपना है यह आलू।“ राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक पेज से लाइव बातचीत में पुष्पेश पंत ने आलू की ‘व्यंजन-यात्रा’ पर विस्तार से चर्चा करते हुए कई विदेशी व्यंजनों के बारे में बताया।
रोस्ती, हैमबर्गर, रोस्ट, हॉटडाग, आलू का सूप, स्लाद और फ्रेंच फ्राइज़।
इन सारे व्यंजनों में फ्रेंच फ्राइज़ की दास्तान बहुत मज़ेदार है। पुष्पेश पंत कहते हैं, “फ्रेंच फ्राइज़ के चिप्स पैकेट बंद आलू चिप्स से बिलकुल अलग होते हैं। इनकी फांक बहुत मोटी होती है और ये गहरे तले जाते हैं। मज़ेदार बात ये है कि फ्रेंच फ्राइज़ फ्रांसीसी नहीं, बेल्जियन चिप्स है।“ दरअसल, कहानी ये है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बेलजियन के कुछ सिपाही फ्रांस में रह रहे थे। वहाँ, अमेरिकी सिपाहियों ने उन्हें ये चिप्स खाते देखा और इसे फ्रांसीसी नाम दे दिया। तब से इसका नाम फ्रेंच फ्राइज़ पड़ गया। अगली बार अगर कोई आपसे पूछे कि इसे ‘फ्रेंच फ्राइज़’ क्यों कहते हैं तो आप मुस्कुरा कर उन्हें ये कहानी बता सकते हैं। भारत में आलू के व्यंजनों की शुरूआत ‘आलू की थेचवानी’ से होती है। दरिद्रता के दिनों में छिलका सहित आलू को थेच कर, उसमें नाम मात्र का तेल, नमक और मिर्च डालकर उसे पका लिया जाता था। बाद में पहाडियों ने इसमें थोड़ा तेजपत्ता, काली मिर्च, लौंग और तड़का डालकर थेचवानी का संस्कृतिकरण कर दिया। आलू के व्यंजनों में दमआलू बहुत ख़ास है। शाही पंजाबी दमआलू में काजू का पेस्ट, मलाई, और दही मिलाई जाती है तो वहीं कश्मीरी दमआलू का रोगन बहुत चिकनाई वाला होता है। इसमें हींग, सौंठ, सौंफ, कश्मीरी लाल मिर्च और नाम मात्र की लौंग मिलाई जाती है। लेकिन, इसके साथ इसे पकाने के लिए चाहिए बहुत सारा धैर्य। पुष्पेश पंत लाइव बातचीत में बताते हैं, “बनारस के दमआलू की तरी टमाटर से बनाई जाती है और इसमें लहसून-प्याज़ का इस्तेमाल बिलकुल नहीं होता। बंगाली दमआलू ख़ासकर छोटे-छोटे आलू (बेबी पोटेटो) से बनाया जाता है और इसमें थोड़ी मिठास भी होती है। वहीं, उड़ीसा वाले इसे ‘आलू-दोम’ कहते हैं। आलू-दोम की तरी बहुत गाढ़ी होती है। उड़ीसा में इसे दही-बड़े के साथ खाया जाता है। साउथ की तरफ चलें तो आलू की रसदार सब्ज़ी को उरूलाई कहा जाता है।“ उत्तर भारत में आलू की सूखी सब्ज़ी बहुत स्वादिष्ट तरीके से बनाई जाती है। राजस्थानियों के सुख-दुख का साथी है हींग-जीरा-आलू। अलीगढ़ में आलू के फांक को आटा और बेसन में मिलाकार बहुत करीने से तला जाता है जिसे स्नैक्स की तरह भी खाते हैं। बंगाल में आलू-पोस्तो बहुत ज्यादा प्रचलित व्यंजन है। त्योहारों में यह ख़ास व्यंजन की तरह परोसा जाता है। वहीं उड़ीसा में ‘आलू-बेसार’ बनाया जाता है जिसमें पीसा हुआ सरसों मिलाते हैं। पुष्पेश पंत ने कहा, “बिहार का ‘आलू भूजिया’ सरसों के तेल में बनाया जाता है और यह आमतौर पर सुबह के नाश्ते में बहुत चाव से खाया जाता है।“
रामायण में रघुवीर-रघुवीर सुनते हुए मेरे माता-पिता ने मेरा नाम रघुवीर रख दिया
शनिवार की शाम वक्त था #StayAtHomeWithRajkamal के फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रमों के जरिए थियेटर कलाकार, गायक एवं फ़िल्म अभिनेता रघुवीर यादव से मिलने का , उनके जीवन और संगीत पर बातचीत का । मुम्बई में अपने घर से लाइव बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, “मैं एक अभिनेता हूँ। मुझे आदत नहीं कि बिना ऑडियंश के बोलता रहूँ। लेकिन, इस आपदा ने हमें बहुत कुछ नया करना सिखाया है।“ जबलपुर से मुम्बई की यात्रा और मुम्बई आकर फ़िल्मों में काम, इस पर विस्तार से बातचीत करते हुए रघुवीर यादव ने कहा, “मुम्बई में मेरे साथ मेरा संगीत था। संगीत का चस्का मुझे अपने गाँव के पापडवाले और चना जोर गरम बेचने वाले के गानों की नकल करने से लगा। वो दोनों बहुत सुरीली आवाज़ में अपना सामान बेचा करते थे।“ रघुवीर यादव के जीवन में अभिनय का दाखिला भी बहुत नाटकीय ढंग से हुआ। स्कूल में फेल करने के डर से वो अपने गाँव के ‘प्रोफेशनल भगोड़े’ के साथ गाँव छोड़कर भाग गए। भागकर पहुँचे लल्लीपुर, जहाँ एक नाटक कंपनी का थियेटर चल रहा था। यहीं पहली बार ‘भोपाल थियेटर कंपनी’ के जरिए थियेटर का नाम सुना। उसके बाद की यात्रा, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से होकर मुम्बई में फ़िल्म अभिनेता बनने की ओर मुड़ जाती है। उन्होंने कहा, “ मैं लाइब्रेरी में बहुत बैठता था। कॉलेज के समय में नज़ीर अकबराबादी की किताब ख़रीदी थी जो आज भी मेरे साथ है। मैंने बहुत पहले ही तय कर लिया था कि फ़िल्म में तभी जाउंगा जब कोई बेहतर रोल मिलेगा। थियेटर से मुझे बहुत सुकून मिलता था। पारसी थियेटर ने मुझे सीखाया कि कभी किसी की नक़ल नहीं करनी चाहिए।“ रघुवीर यादव ने लाइव बातचीत में बताया कि उन्हें कभी स्ट्रगल नहीं करना पड़ा लेकिन जीवन के अभावों ने बहुत कुछ सीखाया। उन्होंने कहा, “मेरी तकलीफ़ों ने हमेशा मुझे कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया। मैं हमेशा कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करता हूँ।“ लाइव कार्यक्रम में उन्होंने गुलज़ार की एक कविता गाकर सुनाईं जो आज के समय की कविता है– “बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या है / मौत से आँख मिलाने की जरूरत क्या है / सबको मालूम है बाहर की हवा है कातिल / फिर कातिल से उलझने की जरूरत क्या है “
पटना का अशोक राजपथ तो पहाड़ की पगडंडियां की दास्तान
अपनी ज़मीन से उखड़कर किसी दूसरी जगह जाकर बसना, नए सिरे से अपने को बसाना बहुत आसान नहीं। अप्रवासी जीवन में एक फांस मन में हमेशा अटकी रहती है। राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक लाइव में लेखक शिरीष मौर्य ने बिखरने और बनने की बात पर चर्चा करते हुए अपने काव्य-संग्रह ‘रितुरैण’ से कविताओं का पाठ किया। रितुरैण का संबंध पहाड़ी लोकगीत से है। चैत के महीनें में स्त्री अपने मायके की याद में इसे गाती है। पहाड़ में परंपरा है कि चैत के महीनें में भाई अपनी बहन के लिए भेंट लेकर आता है जिसे भिटोली कहते हैं। इंतज़ार में डुबा लोकगीत है रितुरैण। लॉकडाउन में राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक पेज से लाइव करने हुए उन्होंने कहा, “यह समय अपने पाठकों से मिलने का एक अवसर भी है।“ शिरीष मौर्य का काव्य संग्रह ‘रितुरैण’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है। पहाड़ों की पगडंडियों से नीचे उतर कर साहित्य के रास्ते बात पहुंची बिहार की राजधानी पटना के अशोक राजपथ - ऐसी सड़क जो नए और पुराने पटना को जोड़ती है। राजधानी की यह प्रमुख सड़क ऐतिहासिक गांधी मैदान से शुरू होती है। अवधेश प्रीत का पहला उपन्यास ‘अशोक राजपथ’ छात्र राजनीति का सजीव और जीवंत चित्रण है। किताब राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है। लाइव बातचीत में अवधेश ने इसी उपन्यास से सुंदर पाठ किया। अवधेश प्रीत ने कहा, “कोरोना का समय, मुश्किल समय जरूर है लेकिन इस लाइव कार्यक्रमों के जरिए सभी से मुलाक़ात हो रही है। हम घर में बंद हैं लेकिन इसके जरिए लोगों से मिल सकते हैं।“ उन्होंने लाइव के दौरान पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए छात्र राजनीति पर अपने विचार भी व्यक्त किए।
राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम में अब तक शामिल हुए लेखक हैं - विनोद कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल, हृषीकेश सुलभ, शिवमूर्ति, चन्द्रकान्ता, गीतांजलि श्री, वंदना राग, सविता सिंह, ममता कालिया, मृदुला गर्ग, मृदुला गर्ग, मृणाल पाण्डे, ज्ञान चतुर्वेदी, मैत्रेयी पुष्पा, उषा उथुप, ज़ावेद अख्तर, अनामिका, नमिता गोखले, अश्विनी कुमार पंकज, अशोक कुमार पांडेय, पुष्पेश पंत, प्रभात रंजन, राकेश तिवारी, कृष्ण कल्पित, सुजाता, प्रियदर्शन, यतीन्द्र मिश्र, अल्पना मिश्र, गिरीन्द्रनाथ झा, विनीत कुमार, हिमांशु बाजपेयी, अनुराधा बेनीवाल, सुधांशु फिरदौस, व्योमेश शुक्ल, अरूण देव, प्रत्यक्षा, त्रिलोकनाथ पांडेय, आकांक्षा पारे, आलोक श्रीवास्तव, विनय कुमार, दिलीप पांडे, अदनान कफ़ील दरवेश, गौरव सोलंकी, कैलाश वानखेड़े, अनघ शर्मा, नवीन चौधरी, सोपान जोशी, अभिषेक शुक्ला, रामकुमार सिंह, अमरेंद्र नाथ त्रिपाठी, तरूण भटनागर, उमेश पंत, निशान्त जैन, स्वानंद किरकिरे, सौरभ शुक्ला, प्रकृति करगेती, मनीषा कुलश्रेष्ठ, पुष्पेश पंत, मालचंद तिवाड़ी, बद्रीनारायण, मृत्युंजय, शिरिष मौर्य, अवधेश प्रीत, समर्थ वशिष्ठ, उमा शंकर चौधरी, अबरार मुल्तानी
राजकमल फेसबुक पेज से लाइव हुए कुछ ख़ास हिंदी साहित्य-प्रेमी : चिन्मयी त्रिपाठी (गायक), हरप्रीत सिंह (गायक), राजेंद्र धोड़पकर (कार्टूनिस्ट एवं पत्रकार), राजेश जोशी (पत्रकार), दारैन शाहिदी (दास्तानगो), अविनाश दास (फ़िल्म निर्देशक), रविकांत (इतिहासकार, सीएसडीएस), हिमांशु पंड्या (आलोचक/क्रिटिक), आनन्द प्रधान (मीडिया विशेषज्ञ), शिराज़ हुसैन (चित्रकार, पोस्टर आर्टिस्ट), हैदर रिज़वी, अंकिता आनंद, प्रेम मोदी, सुरेंद्र राजन, रघुवीर यादव, वाणी त्रिपाठी टिक्कू, राजशेखर
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