- अंधविश्वास फैलाने की बजाए कोरोना की जांच और चिकित्सा सुविधाओं की गारंटी करे सरकार: माले
- सरकार के प्रयास अपर्याप्त, युद्ध स्तर पर कार्रवाई की जरूरत.
पटना 4 अप्रैल, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने आज प्रेस बयान जारी करके कहा है कि कोरोना महामारी को मात देने के लिए व्यापक परीक्षणों व चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने की आवश्कता थी, लेकिन यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी अंधविश्वास फैलाकर वैज्ञानिक चेतना को नुकसान पहुंचाने का काम कर रहे हैं. इस दौर में गरीबों को राशन व अन्य सुविधायें अविलंब उपलब्ध करवाना प्राथमिकता होनी चाहिए थी, लेकिन प्रधानमंत्री थोथे भाषणबाजी से काम चला रहे हैं. कहा कि 5 अप्रैल को प्रधानमंत्री द्वारा मोमबती, दीपक अथवा टाॅर्च लाइट जलाने के आह्वान से कोरोना की रोकथाम संभव नहीं है. इस वायरस का मुकाबला सिर्फ वैज्ञानिक तरीके से सभी जरूरी संसाधन, जांच, दवाइयों, डाॅक्टरों की व्यवस्था एवं जरूरी सुरक्षा उपकरणों जैसे वेंटिलेटर व पीपीई की व्यवस्था करके ही की जा सकती है. देश में इसकी लगातार मांग बढ़ रही है, लेकिन प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में इस विषय पर किसी भी प्रकार की चर्चा नहीं की. विगत 22 मार्च को जनता कफ्र्यू के दरम्यान प्रधानमंत्री ने डाॅक्टरों व उन तमाम लोगों के लिए जो कोरोना वायरस के पीड़ितों के इलाज में अपनी जिंदगी को जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं, के लिए थाली पीटने का हास्यास्पद आह्वान किया था. सुविधाओं के अभाव में बड़ी संख्या में डाॅक्टर संक्रमित हो रहे हैं, वे लगातार किट व अन्य जरूरी सुविधाओं की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार इसकी लगातार उपेक्षा करके उनके मनोबल को गिराने का ही काम रही है. अचानक व बिना किसी पूर्व योजना के लागू किए गए लाॅक डाउन ने प्रवासी व दिहाड़ी मजदूरों के बीच परेशानियों का पहाड़ खड़ा कर दिया है. हजारों किलोमीटर पैदल यात्रा करके प्रवासी मजदूर किसी प्रकार अपने राज्यों में पहुंचे. कई लोगों की इस बीच मौत की भी खबरें हैं. उन्हें घर पहुंचाने की जवाबदेही से सरकार भाग खड़ी हुई. उनके लिए सुविधाओं से लैस क्वारंटाइन की व्यवस्था करने की बजाए यंत्रणापूर्ण स्थितियों में डाल दिया गया है. यह बेहद दुखद है और उससे भी दुखद यह है कि प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में लाखों प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा के बारे में एक शब्द तक नहीं कहा. दिल्ली तबलीग की घटना को सांप्रदायिक रूप देकर महामारी के दौर में भी हिंदू-मुसलमान लड़ाई लगाने का काम किया जा रहा है. हमें उम्मीद थी कि इस कोरोना की चुनौती का हमसब मिलकर सामना करेंगे, लेकिन भाजपाई इस विषम परिस्थिति में भी अपनी सांप्रदायिक राजनीति से बाज नहीं आ रहे. बिहार सरकार केवल राशन कार्ड धारकों को ही राशन उपलब्ध करवा रही है. बिहार में गरीबों के बड़े हिस्से के पास न तो राशन कार्ड है न लाल कार्ड. ऐसे लोगांे को सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिल रही है. कामगार प्रवासियों के भी आधार कार्ड अद्यतन न होने कारण 1000 रुपए की राशि नहीं मिल पा रही है. इसलिए, हम बिहार सरकार से मांग करते हैं कि सभी गरीबों के लिए राशन की व्यवस्था की गारंटी की जाए. ऐसा लगता है कि इस महामारी के दौरान भी सरकार रूटीन वर्क के अनुसार काम कर रही है. इस विकट परिस्थिति में युद्धस्तर पर काम करने की आवश्कता थी, जिसका सर्वथा अभाव दिख रहा है. दूसरी राजनीतिक पार्टियों व सामाजिक संगठनों से सरकार किसी भी प्रकार की वार्ता नहीं कर रही है. जहां लोग अपनी पहलकदमी पर गरीबांे के बीच कुछ राहत अभियान चला रहे हैं, उसे भी रोकने की ही कोशिश की जा रही है. इसके बारे में सरकार को अविलंब विचार करना चाहिए.
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