बिहार : मोक्ष धामों में एक सिमरिया धाम में भी कोरोना के कारण छाया सन्नाटा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

बिहार : मोक्ष धामों में एक सिमरिया धाम में भी कोरोना के कारण छाया सन्नाटा

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अरुण शाण्डिल्य (बेगूसराय) कोरोना वायरस के संक्रमणों की वजह से आज लोग किसी के शव यात्रा में भी शामिल होने से परहेज कर रहे हैं।जी हाँ इस संक्रमण से हर कोई आज तबाह है। तकरीबन सभी लोग घरों में कैद हो गए हैं। यहाँ तक कि मन्दिर-मस्जिद में भी अब ताला पड़ गया है,और भगवान, अल्लाह, वाहे गुरु,जीसस आदि भी अपने अपने स्थानों में क्वारेन्टाइन जैसे हो गए हैं।यहाँ तक कि  श्मशान घाट के सूनापन को दिखा जाय तो यह जान पड़ता है कि साक्षात यमराज भी कोरोना के संक्रमणों को देख अपने यमलोक में यमदुतों के साथ लॉक डाउन के पालन में लगे हुए हैं।मिथिलांचल के ही नहीं वल्कि विश्व विख्यात मोक्ष स्थली सिमरिया गंगा घाट पर जहाँ कोरोना के कहर से पहले प्रत्येक दिन 50 से 60 शवों का अन्तिम संस्कार होता था।वहीं आज इस कोरोना के कहर से व्याप्त संक्रमण की वजह से शव आना ही कम हो गया है,जब से कोरोना का कहर बरपा है तब से ही बामुश्किल से तीन/चार शव ही अन्तिम संस्कार के लिए आ रहे हैं।जिसके कारण श्मशान के राजा कहे जाने वाले मल्लिक समुदाय के साथ-साथ इससे जुड़े लोगों का भी रोजी-रोटी पर संकट सा छा गया है।

कोरोना संक्रमण के पूर्व की बात लें तो :- 
पहले कम से कम 50 से 60 शव यहाँ रोज आते थे अग्निदान देने के लिए।तब शव यात्रियों में से मुखाग्नि देनेवाले उत्तराधिकारी से मल्लिक (डोम) समुदाय के लोग नजराना लेते थे।इससे उनका परिवार चलता था।शव के साथ वाले कपड़े और बाँस भी ये मल्लिक सामुदाय के लोग बेच देते थे।लाश जलने के बाद बचे कोयले का भी धंधा धड़ल्ले से चलता था।लेकिन अब शव ही नहीं आ रहा है तो इन लोगों के लिए क्या धन्धा और क्या नजराना और क्या कपड़ा और कोयला बेचेंगे बिचारे तो बिचारे ही बनकर रह गए।सिमरिया गंगा घाट किनारे इस समुदाय के 64 लोग अग्निदान की रस्म पूरी कराने में लगे रहते हैं।इससे जुड़े मुकेश मल्लिक बताते हैं कि हम लोग वंशावली के आधार पर पारंपरिक रूप से इस पेशे से जुड़े हुए हैं और इसी पेशे की कामाई से रोजी-रोटी हमलोगों की चलती है।यहाँ अंतिम संस्कार करने के लिए बेगूसराय के अलावे समस्तीपुर,दरभंगा, मधुबनी,लखीसराय,जमुई तक से लोग आते थे।लेकिन लॉकडाउन के बाद गंगा किनारे स्थित मोक्ष स्थली श्मशान घाट में सन्नाटा सा छा गया है।मुश्किल से तीन-चार शव रोज आ पाते हैं।लगता है कि कोरोना के कहर से बचने के लिए यमराज भी अपने यम लोक में अपने यमदूतों के साथ यमलोक में ही कैद हो गए हैं या फिर सोशल डिस्टेंसिंग के निर्देशों का पालन करने के लिए यहाँ आने वालों की संख्या कम गई है।यमराज भी अब यह जिम्मेदारी शायद कोरोना को ही सौंपकर जैसे विश्राम में चले गए हैं।जब लोग यहाँ दूर दराज से शव लेकर अन्तिम सांस्कर के लिए आते थे तो मल्लिक समुदाय के साथ-साथ पंडा,पुरोहित,होटलों का व्यवसाय एवं ठेकेदार से जुड़े सैकड़ों परिवार की आजीविका इसी से चलती थी।हालांकि सिमरिया में शव नहीं आने का दो प्रमुख कारण समझ मे आती है सोशल डिस्टेंसिंग के कारण अंतिम संस्कार में जाने के लिए कम लोग तैयार होते होंगे या फिर  वाहन आदि के अभाव में लोग अपने गाँव के आस-पास बगीचा या किसी ढाब(मृत)नदी के किनारे भी अन्तति संस्कार की रस्म अदा कर लेेते होंगे।कोरोना से हो रही मौत के आंकड़ों को अगर अलग करके देखें  तो स्वाभाविक मौत की दरों में खासी कमी आई है।फिलहाल मामला जो भी हो लेकिन सिमरिया गंगा के किनारे अन्तिम संस्कार के लिए शव कम होने के कारण मल्लिक समुदाय के साथ-साथ यहाँ रहने वाले पुरोहित,पंडित एवं होटल समेत अन्य व्यवसाय से जुड़े लोगों के समक्ष रोजी-रोटी का बड़ा संकट आ खड़ा हो गया है।

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