किसी के स्वागत में आसमान से पुष्पवर्षा हो तो मन आनंदातिरेक से भर जाता है। भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह उत्सवधर्मी देश है। वह हास्य भी करता है तो गाते हुए और शोक भी मनाता है तो गाते हुए। भारत की महिलाएं अपने हर काम में गीत को शामिल करती हैं। खेत की रोपाई हो तो भी, फसलों की कटाई हो तब भी, होली हो तब भी और दीपावली हो तब भी गीत तो गाए ही जाते हैं। यहां बच्चे के स्वागत का अगर जश्न मनाया जाता है तो बुजुर्गों को मृत्यु के बाद अंतिम विदाई भी उसी उमंग और उत्साह के साथ दी जाती है। अन्य देशों में ऐसा नहीं होता। कोरोना को लेकर जहां दुनिया के तमाम देश चिंतित हैं, मुंह लटकाए हुए हैं, वहीं भारत है कि अपने लोगों का मनोबल बढ़ाए रखने के हर संभव जतन कर रहा है। घरों में कैद रहते हुए भी भारतीयों के उल्लास में कहीं कोई कमी नहीं आई है। जीवन संगीत है। संगीत के अपने रस होते हैं। साहित्य ने अगर नौ रसों की प्रधानता है तो भोजन में छह रसों की। समरसता तो फिर भी ठीक है लेकिन एकरसता से जीवन नीरस हो जाता है। स्वागत कौन करे और किसका करे,यह परम विवेक का विषय है। स्वागत और विरोध करना सबको नहीं आता। जो इस कला को जानता है, वही सफल होता है और कालजयी कहलाता है। कोरोना से पूरी दुनिया दहली हुई है। जिस बीमारी का कोई लक्षण नहीं। जिसका कोई इलाज नहीं, अगर उसके लाइलाज बीमारी के इलाज में भी चिकित्सक और चिकित्साकर्मी जुटे हुए हैं। कोरोना वायरस को आम जन—जीवन तक फटकने न देने की स्वच्छताकर्मी अनवरत कोशिश कर रहे हैं तो उनका स्वागत तो बनता है। जब कुछ लोग उन पर पत्थर बरसा रहे हों, तब तो उनके स्वागत की जरूरत और भी बढ़ जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोरोना योद्धाओं का उत्साह बढ़ाए रखने की कोई भी कोर—कसर शेष नहीं रखी है। उनके आग्रह पर देशवासियों ने ताली और थाली बजाकर कोरोना संक्रमितों को बचाने में जुटे चिकित्सकों, स्वास्थ्य और सफाई से संबद्ध कर्मचारियों का अभिनंदन किया वहीं उनके स्वागत में घरों की रोशनी भी बुझाई और नौ मिनट तक मोमबत्ती और दीपक भी जलाए। इसके बाद देश भर में स्वच्छताकर्मियों और चिकित्साकर्मियों का सम्मान किया जा रहा है। इस बहाने भारतीय जनमानस उनके सेवाभाव के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा है। यही वजह है कि कुछ अराजक लोगों की अप्रिय और अभद्र गतिविधियों के बाद भी भारतीय चिकित्सकों, चिकित्साकर्मियों और स्वच्छताकर्मियों ने तो अपना धैर्य खोया है और न ही कर्तव्यपथ से अपना मुख मोड़ा है क्योंकि उन्हें पता है कि उनके काम का विरोध करने वाले वे लोग हैं जो दया के पात्र हैं लेकिन पूरा देश उनके इस महा अभियान में उनके साथ खड़ा है। भारत में दूसरे चरण की महाबंदी के अंतिम दिन वायुसेना ने जिस तरह कोरोना वीरों पर पुष्पवर्षा की है,उसने पुराणेतिहासिक काल की याद दिला दी है। उस समय दैत्यों पर विजय के बाद देवता भी आकाश मंडल से पुष्प बरसाया करते थे। कोरोना मायावी दुश्मन है। वह किस रूप में सामने आ जाएगा,कहा नहीं कहा जा सकता। वीर तो वही है जो इस तरह के अदृश्य शत्रु से डटकर मुकाबला करे और उसे शिकस्त दे। इसमें संदेह नहीं कि भारतीय सेना अपने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देती भी है और उन्हें हराती भी है। फिर वीर का सम्मान तो वीर ही करता है। ' घायल की गति घायल जानै कि जिन घायल होई।' कोविड-19 जैसे अदृश्य शत्रु से लड़ने वाले योद्धाओं को देश की वायुसेना और नौसेना ने बेहद अनोखे अंदाज में सम्मान दिया है। भारतीय वायुसेना के सुखोई जैसे लड़ाकू विमान जो दुश्मनों की छाती पर बम—गोले बरसाते नहीं थकते, उन्होंने भारतीय चिकित्सकों और चिकित्साकर्मियों के सम्मान में पुष्पवर्षा की है, इससे अधिक सहज सुखद बात भला और क्या हो सकती है? कुछ राजनीतिक दलों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया भी दी है। उन्होंने केंद्र सरकार पर सेना को अपनी पीआर एजेंसी बनाने का भी आरोप लगाया है। निश्चित तौर पर सेना का काम सीमाओं की रक्षा करना है। देश की हिफाजत करना है। चिकित्सक, चिकित्साकर्मी और स्वच्छताकर्मी भी तो कोरोना जैसे घातक वायरस से देश की हिफाजत ही कर रहे हैं। ऐसे में सेना ने अगर उनका स्वागत किया है, उन पर फूल बरसाए हैं तो इसमें गलत क्या है? वैसे भी सेना की आलोचना का कोई भी अवसर कुछ राजनेता नहीं छोड़ते। उसकी कार्यवाहिए को वे राजनीति के पलड़े में रखकर तौलते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय सेना और उसके जवानों के जज्बे की बदौलत ही आज पूरा देश चैन की सांस ले पा रहा है। वह अपने लोगों की सुरक्षा भी करती है और उनकी भावनाओं का भी सम्मान करती है। पुष्पवर्षा को भी कमोवेश इसी लिहाज से देखा जाना चाहिए। देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित कोरोना वायरस अस्पतालों के ऊपर फूल बरसाने का दृश्य जिस किसी ने भी देखा, उसके दिमाग में एक ही बात आई कि 'सेना है तो सब मुमकिन है।' इस देश में जहां कुछ लोग पीएम केयर फंड की आडिट कराने की मांग कर रहे थे। वहीं देश के आन—बान और शान की प्रतीक सेना के जवान निर्लिप्त और निस्पृह भाव से चिकित्सालयों पर पुष्पवर्षा रहे थे। आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब सेना ने देश भर के चिकित्सालयों में पुष्पवर्षा की हो।वहां सेना की धुन बजाकर कोरोना संक्रमितों, चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ का मनोबल बढ़ाया हो। सेना के इस महनीय कार्य की जितनी भी सराहना की जाए,कम है। नौसेना ने अपने जहाजों को रोशन करके कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जीत दर्ज करने का संदेश दिया है। गोवा में आईएनएस 'हंस' पर 1500 भारतीय नौसैनिकों ने मानव शृंखला बनाकर कोरोना योद्धाओं की सतत प्रतिबद्धता का बखूबी सम्मान किया है। चाहे पटना का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान हो या कि दिल्ली के नरेला स्थित एकांतवास केंद्र, दोनों ही जगहों पर न केवल फूल बरसाए गए बल्कि नरेला स्थित एकांतवास केंद्र के बाहर धुन भी सेना ने बजाई। हैदराबाद के गांधी अस्पताल,दिल्ली के गंगाराम अस्पताल,लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, लोहिया इंस्टीट्यूट, किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल, दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पर विमान से पुष्पवर्षा आंखें सजल कर देने को काफी हैं। स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति सम्मान और आदर की यह भावना उनके उत्साह को न केवल द्विगुणित करेगी, वहीं उन्हें इस बात का अहसास कराएगी कि कोरोना से जंग में पूरा देश उनके साथ खड़ा है। सरकार से लेकर जनता तक और अब तो सेना तक भी कोरोना योद्धाओं का मनोबल बढ़ा रही है। दिल्ली राम मनोहर लोहिया अस्पताल, लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल पर वायु सेना ने न केवल फूल बरसाए बल्कि राजस्थान के जयपुर स्थित सवाई मानसिंह अस्पताल के ऊपर स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति सम्मान जाहिर करते हुए फ्लाईपास्ट भी किया। लद्दाख के लेह स्थित एसएनएम अस्पताल, भोपाल के चिरायू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल पर तो पुष्पवर्षा की ही, वायुसेना ने मुंबई में भारतीय नौसेना के आईएनएस जलाश्व के कर्मचारियों पर पुष्पवर्षा कर उनका मनोबल बढ़ाया। कर्नाटक में विक्टोरिया अस्पताल,भुवनेश्वर के कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज,मुंबई के मरीन ड्राइव, दिल्ली के राजपथ, पुलिस वॉर मेमोरियल,चंडीगढ़ की सुखना झील, भोपाल में बड़ा तालाब, हैदराबाद में हुसैन सागर झील, बंगलूरू में कर्नाटक विधानसभा, केरल में त्रिवेंद्रम में सचिवालय के ऊपर और तमिलनाडु में सुलूर, कोयंबटूर और श्रीनगर की डल झील पर फ्लाईपास्ट कर, उड़ान भर कर वायुसेना ने देश के पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक को अपनी गर्जना से गुंजायमान कर दिया। लड़ाकू विमानों ने यह साबित कर दिया कि देश हित में वह हर क्षण तत्पर, सजग और चौकस हैं। गेट वे ऑफ इंडिया पर 5 नौ सैनिक पोतों द्वारा रोशनी करने का कार्यक्रम, तटरक्षक बल के पोत द्वारा पोरबंदर, ओखा, रत्नागिरी, दहाणु, मुरुड, गोवा, न्यू मंगलूरू, कावाराती, करईकल, चेन्नई, पुड्डुचेरी, काकीनाड़ा, पारादीप, सागर द्वीप, पोर्ट ब्लेयर, दिग्लीपुर, मायाबंदर, हट-बे समेत 24 जगहों पर गतिविधियों का आयोजन भारत के उत्सवधर्मी समाज होने की बानगी नहीं तो और क्या है? यह सब तक हो रहा है जब कोरोना वायरस सीआरपीएफ के कुछ जवानों को भी अपनी जद में ले चुका है। जब पाकिस्तान सीमावर्ती क्षेत्र में रोज ही संघर्ष विराम जैसे हालात पैदा कर रहा है।थलसेनाध्यक्ष नरवणे ने तो पाकिस्तान को पाक अधिकृत कश्मीर बाल्टिस्तान और गिलगित से उसे कब्जा खाली करने की चेतावनी दे रखी है। रही बात अपनों का मनोबल बढ़ाने की तो उसमें यह देश कभी पीछे नहीं रहा है। देश की इसी काबिलियत का लोहा पूरा विश्व मानता है। यह देश सेना का मनोबल बढ़ाता है और सेना देश का। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। वायुसेना और नौसेना की पहल यह बताती है कि देश के जज्बे के समक्ष कोरोना जरूर हारेगा। वीरों का स्वागत करने का अधिकार तो वीरों को ही है। सरकार को केवल फूल ही बरसाने होते तो वह किसी भी विमान से बरसवा सकती थी लेकिन सेना फूल बरयाए तो बात ही निराला है। सेना का मतलब है देश। निजी विमानों से देश का बोध नहीं होता। वैसी गौरवमयी अनुभूति नहीं होती। काश, सेना पर अंगुली उठाने से पहले कुछ लोग इस भावबोध पर भी विचार कर पाते।
--सियाराम पांडेय 'शांत'--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें