लॉकडाउन की मियाद एक बार फिर बढ़ा दी गई है। बहुत सारे लोगों के लिए लॉकडाउन भागम-भाग की दौड़ से दूर सुकून का समय है, तो बहुत लोगों की जिंदगी अचानक परेशानियों और भूख की पीड़ा के केन्द्र में आ खड़ी हुई है। इंसान होने और एक विवेकशील समाज के नागरिक होने के रूप में हमारी परीक्षा बहुत गहरी होती जा रही है। वायरस से लड़ाई जैविक और वैज्ञानिक स्तर पर लड़ी जा सकती है, लेकिन अगर इसे हम जाति या धर्म के चश्मे से देखने लगेंगे तो हम यह लड़ाई हमेशा के लिए हार जाएंगे। हम रोज़ नई-नई कहानियाँ गढ़ते हैं, या किसी और की कहानी का हिस्सा बनते हैं। बुधवार की दोपहर राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव से जुड़कर लेखक दुष्यंत ने कहानियों के बीच जिंदगी या कहें ज़िंदगी से बनती कहानियों पर लोगों से बात कर कहानी लिखने की बारीकियों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि, “हम ज़िदगी से कहानियाँ एक सेट पैटर्न में उठाते हैं। लेकिन, अच्छी कहानी वही होती है जो आपको आश्चर्य में डाल दे। प्रयोगों की आंधी के बीच कहानी के सच को बचा पाना बहुत जरूरी है।“ हमारा साहित्य इस बात का प्रमाण है कि हमने महामारियों से लड़ाई एक होकर ही लड़ी है। मंगलवार की दोपहर कथाकार कमालाकांत त्रिपाठी ने राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से लाइव जुड़कर कहा कि, “महामारी का इतिहास भारत में पुराना है। प्लेग और हैजा से भारत में लाखों लोगों की जाने गईं हैं। हर बार महामारी बाहर से आती थी और इसे कोई न कोई लेकर आता था। सालों पहले हैजा और प्लेग ने झटके में कई गाँवों को ख़त्म कर दिया था। लेकिन यह गाँव के लोग ही थे जिन्होंने अपने सरल जीवन और साहचर्य से इन बीमारियों को अपने जीवन से, समाज से दूर भगाया।“ आभासी दुनिया के मंच से साहित्यिक चर्चाओं का सिलसिला लॉकडाउन के तीसरे फेज़ में भी जारी है। यह ऐसा साथ है जो लगातार पाठकों, लेखकों और साहित्य-प्रमियों को आपस में जोड़े हुए है। राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से लॉकडाउन के अकेलेपन को दूर करने के इस साझा प्रयास से अब तक 122 लेखकों एवं कलाकारों ने साथ जुड़कर, किताबों की दुनिया के रंगों से थोड़ा सा रंग निकालकर आभासी दुनिया के मंच पर बिखेर दिया है। इसी सिलसिले में मंगलवार की शाम #StayAtHomeWithRajkamal के तहत राजकमल के फ़ेसबुक पेज से बात करते हुए लेखक वीरेन्द्र सारंग ने कहा, “महामारियां चली जाएंगी। लेकिन, हमारा व्यवहार, हमारा विचार, हमारी मित्रता हमेशा हमारे साथ रहेंगी। शब्द और अक्षर ही सबकुछ है। हमारा आपस में बोलना बात करना हमारे होने का प्रमाण है।“ लाइव कार्यक्रम में लेखक वीरेन्द्र सारंग ने अपने उपन्यास ‘जननायक कृष्ण’ से कुछ अंश भी पढ़े और लोगों से बातचीत की। साथ ही उन्होंने कविताओं का भी पाठ किया। उपन्यास ‘जननायक कृष्ण’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है। वहीं, कमलाकांत त्रिपाठी के उपन्यास ‘पाहीघर’ में हैजा का वर्णन है। 1857 के इतिहास पर आधारित इस उपन्यास में हैजा से गाँव में होने वाली परेशानियों का जिक्र है। राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से लाइव में कमलाकांत त्रिपाठी ने उपन्यास से अंश पाठ करने के बाद साहित्य में महामारियों पर बातचीत की। राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से जुड़कर कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव ने अपने कविता संग्रह ‘सूरज को अंगूठा’ से कई कविताओं का पाठ किया। उन्होंने लागों के आग्रह पर अपनी चर्चिता कविता ‘सोनचिरई’ का भी पाठ किया-
“वह स्त्री थी / और स्त्रियाँ कभी बांझ नहीं होती / वे रचती हैं तभी हम आप होते हैं / तभी दुनिया होती है / रचने का साहस पुरुष में नहीं होता / वे होती हैं तभी पुरुष होते हैं।“
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अनिश्चितता की इस परिस्थिति में हम अकेले नहीं हैं। हमारे साथ किताबों का अथाह संसार है। ’सभी के लिए मानसिक खुराक’ उपलब्ध कराने की राजकमल प्रकाशन की मुहिम के तहत वाट्सएप्प के जरिए पाठकों को रोज़ एक पुस्तिका साझा की जाती है। अबतक 10,000 से अधिक पाठक इस मुहिम के तहत भिन्न आस्वाद से भरपूर रोज़ एक पुस्तिका प्राप्त कर रहे हैं। बुधवार को साझा की गई पुस्तिका 'बॉयज़ लॉकर रूम' की हैरान-परेशान करने वाली चर्चाओं के बीच स्त्रियों के प्रति सामाजिक संवेदनशीलता की जरूरत को रेखांकित करती कहानियों से तैयार की गई है। राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी का कहना है, “लॉकडाउन में लोग अपने को अकेला महसूस न करें इसलिए हम वाट्सएप्प के जरिए फ्री में लोगों को पढ़ने की सामग्री उपलब्ध करवा रहे हैं। पिछले 40 दिनों से हम लगातार फ़ेसबुक लाइव के जरिए लेखकों और साहित्य-प्रेमियों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। लाइव में अपने प्रिय लेखक से जुड़ना पुरानी यादों को ताज़ा कर देता है, साथ ही इस विश्वास को मजबूत करता है कि इस मुश्किल घड़ी में हम एक हैं। अगर, हम एक हैं तो मुश्किलें छोटी हो जाती हैं।“ “पाठ-पुनर्पाठ” में रोज़ अलग-अलग तरह की पाठ्य सामग्री को चुनकर तैयार किया जाता है। फ़ेसबुक और ट्विटर के जरिए पाठकों ने इस पहल की भरपूर प्रशंसा की है। इस पुस्तिका को पाठक वाट्सएप्प से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिए राजकमल प्रकाशन समूह के व्हाट्सएप्प नम्बर 98108 02875 को फोन में सुरक्षित कर, उसी नम्बर पर अपना नाम लिखकर मैसेज भेज दें। आपको नियमित नि:शुल्क पुस्तिका मिलने लगेगी।
पानी के बीच कोच्चि के व्यंजनों का स्वाद
कोच्चि, लगभग पौने सात सौ साल पुराना शहर है। इसकी सांस्कृतिक विरासत ईसा के जन्म की सदी के आसपास से मिलती है जिसे इस शहर ने प्यार से संजो कर रखा है। इसके जन्म की कहानी कुछ इस तरह है - पेरियार नदी की बाढ़ में मोहिरी का ऐतिहासिक बंदरगाह नष्ट हो गया था। वहीं कोचिन में एक प्राकृतिक बंदरगाह बनने की संभावना प्रकट होने लगी। उसके बाद से ही यहाँ अधिकतर अंतरराष्ट्रीय व्यापार शुरू हो गया और कोच्चि अस्तित्व में आया।
ये शहर एक जुड़वां शहर है। इसके साथ एरनाकुलम शहर भी जुड़ा हुआ है।
खाने में यहाँ लोगों का झुकाव ज्यादा नॉन वेज की ओर है। लेकिन, शाकाहारी व्यंजनों में भी यहाँ विविधता देखने को मिल जाती है। कापा करी, थड डोसा (डोसा और उत्तपम के बीच की चीज), तरह-तरह के रोस्ट जैसे, मटन, अंडा, सब्ज़ी यहाँ के आम व्यंजनों में शामिल हैं। वैसे, बहुलतावादी सांस्कृतिक समुदायों के प्रभाव और समुद्र के पास होने की वजह से यहाँ के पसंदीदा व्यंजनों में मछली और अन्य समुद्री जीव-जन्तुओं से बनने वाले व्यंजन ही शामिल हैं।
कोच्छी करी (चिकन करी) – इसे नारियल के दूध और काजू के साथ भी पकाया जाता है। कापा करी, अपप्म, आलू स्टु, कडला करी, पुलेन करी आम घरों में भी पकाया जाता है। कोच्चि के खाने में वहाँ के आयुर्वेद का असर भी देखने को मिलता है। दरअसल, कोच्चि कई तरह के खाने-पीने का सार है। यहाँ हर तरह का व्यंजन मिलता है जिसके लिए पर्यटन के लिए मशहूर केरल में दर-दर भटकना पड़ सकता है। यहाँ के खानों में गोवा, तमिलनाडु, मैसूर, केरल और पुर्तगाली खानों का असर साफ़ दिखाई देता है।
लॉकडाउन के तीसरे फ़ेज में भी लगातार जारी फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम में अबतक 163 लाइव सत्र हो चुके हैं जिसमें 122 लेखकों और साहित्य प्रमियों ने भाग लिया है।
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