केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के एक साल 30 मई को पूरे हो गए। सरकार पांच साल के लिए चुनी जाती है। इसलिए उसके कार्य का समग्र मूल्यांकन तो पांचवें साल ही किया जाना चाहिए लेकिन सरकार ने एक साल को कैसे जिया? किस तरह काम किया? देश को ऊंचाई पर ले जाने की दिशा में उसका योगदान क्या रहा? वह किस मोर्चे पर कितनी सफल रही और कितनी विफल, इस पर चर्चा और सुझाव ज्यादा अहम है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को इस बात पर ऐतराज है कि जब पूरा देश कोरोना से परेशान है तब भाजपा केंद्र सरकार के एक साल पूरे होने का जश्न मना रही है। संभव है कि विपक्ष के अन्य नेता भी इस राय से इत्तेफाक रखते हों लेकिन परम सत्य तो यही है कि सत्ता में जो भी राजनीतिक दल होता है, उसकी जिम्मेदारी होती है कि वह समय—समय पर अपना रिपोर्ट कार्ड जनता को बताए। अपनी भविष्य की योजनाओं से उसे अवगत कराए और इस संदर्भ में उनके सुझाव भी मांगे ताकि योजनाओं में अपेक्षित सुधार और परिष्कार की गुंजाइश बनी रहे। यह सच है कि जिस समय मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के एक साल पूरे हो रहे हैं तब देश को अनेक आपदाओं से जूझना पड़ रहा है। एक ओर कोरोना संकट है और दूसरी ओर चीन से तनाव। पाकिस्तान तो आतंकवादी हरकतें कर साल भर सरकार का ब्लडप्रेशर बढ़ाता ही रहा। हाल ही में देश के दो राज्यों उड़ीसा और पश्चिम बंगाल ने चक्रवाती तूफान अंफान का कहर देखा है। टिड्डी दलों के हमलों का आतंक भी चरम पर है। सवाल उठता है कि ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को लोगों को अपने काम बताने चाहिए या नहीं? विपक्ष अगर आलोचना की लाठी भांजने से नहीं चूकता तो सरकार को अपना पक्ष जनता को बताने में क्यों परहेज करना चाहिए।
भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी। इस ऐतिहासिक जनादेश के अनुरूप मोदी सरकार अपने चुनावी वादों को व्यवहार के धरातल पर उतार भी रही है। अनुच्छेद 370 को हटाने, यूएपीए कानून लाने का निर्णय सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक है। सर्वोच्च न्यायालय में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे की नियमित सुनवाई और राम मंदिर निर्माण फैसला, श्रीराम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन का निर्णय बताता है कि मोदी सरकार अपने वादों और इरादों को आगे बढ़ाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। जिस राम मंदिर के नाम पर इस देश में कारसेवकों पर गोलियां चलीं। बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर मुंबई में दंगे हुए। कारसेवा कर लौट रहे कारसेवकों की गुजरात में बोगियां जला दी गईं। गोधरा के दंगे हुए, उसी राम मंदिर पर जब फैसला आया, तो पूरे देश के किसी भी हिस्से में कोई हिंसक घटना नहीं हुई, इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोगों को समझाने और सहमत करने की कला ही बहुत हद तक जिम्मेदार थी। कोरोना से लड़ने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज सरकार के अच्छे फैसले रहे। उन्होंने अपील की थी कि अदालत का फैसला जैसा भी आए, उसका स्वागत किया जाए, न हर्ष मनाया जाए और न ही विरोध किया जाए। समान नागरिक संहिता, एनआरसी और एनपीआर पर काम चल रहा है। हालांकि इसे लेकर तमाम राजनीतिक गतिरोध हैं, इसके बाद भी सरकार इस पर कामयाबी पा लेगी, इस बात की उम्मीद तो लोगों में है ही। कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन पर देश की सहमति हासिल कर नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया कि वे एक सुलझे हुए नेता हैं।
इसमें संदेह नहीं कि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में तमाम मूलभूत बदलाव किए थे। इनमें रक्षा मामलों से लेकर ऑफेंसिव डिफेंस का एप्रोच अपनाने की बात कही गई थी। सर्जिकल स्ट्राइक, ऑपरेशन ऑल आउट, बालाकोट स्ट्राइक व डोकलाम विवाद इस नई नीति की राह पर चल निकली। अगर यह कहें कि मोदी सरकार पहले कार्यकाल के पांच साल अगर धीमी गति से चली तो दूसरे कार्यकाल के पहले साल में वह मोदी सरकार अपनी योजनाओं को गति देने की सरपट दौड़ लगाती नजर आई है। इस कोरोनाकाल को अपवाद मानें तो। अपनी दूसरी पारी के पहले ही साल धारा 370 और 34 ए को हटाना और जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि है। कश्मीर में ऐतिहासिक बदलाव के बाद पाकिस्तान ने खूब हाय—तौबा मचाई लेकिन अगर उसे दुनिया के देशों का साथ नहीं मिला,मिली तो सर्फ उपेक्षा तो यह नरेंद्र मोदी की यात्रा पॉलिटिक्स की सफलता ही कही जाएगी। मालदीव में भारत को लेकर आया बदलाव हो या इस्लामिक संघ में भारत को घेरने को लेकर पाकिस्तान को बार-बार मिलने वाली अपमानजनक हार, इसके पीछे नरेंद्र मोदी के चमत्कारिक व्यक्तित्व और मिलनसारिता की अहम भूमिका रही। मलेशिया के रुख में भारत की दृढ़ता के चलते आई नरमी हो या श्रीलंका में चीन के हाथों से अवसर छीन लेने का भारतीय दांव, सबमें मोदी का कूटनीतिक दिमाग ही प्रमुखता से चला। कुछ लोगों को लगता है कि राजनीतिक मोर्चे पर भारतीय मानचित्र में भाजपा शासित राज्यों की संख्या घटी है। इसका मतलब है कि मोदी की लोकप्रियता कम हुई है। ऐसे लोगों को इतना तो समझना ही होगा कि जो चुनाव नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं गए, वे भी ब्रांड मोदी की लगातार मजबूती की ही पुष्टि करते हैं। जहां भाजपा को सीटें नहीं मिली हैं, वहां भी भाजपा का वोट प्रतिशत पूर्व चुनाव के मुकाबले घटा नहीं, वरन बढ़ा ही है। 'मेक इन इंडिया' के फौलादी शेर के कलपुर्जे को घुमाना मोदी सरकार की बड़ी चुनौती है। कोरोना काल में व्यवसाय प्रभावित हुआ है। सरकार का खर्च बढ़ा है। रोजगार के अवसर घटे हैं लेकिन सरकार जिस तरह इस मामले को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है, उससे लगता है कि सरकार जल्द ही इस समस्या से भी पार पा लेगी। कोरोना के बाद का भारत और अधिक मजबूत होकर निखरेगा, इसकी उम्मीद तो की ही जानी चाहिए। चांद के दक्षिणी ध्रुव तक भारतीय विज्ञान की पहुंच भी इस सरकार की कम शानदार उपलब्धि नहीं है। सैन्य बेड़े में तेजस की हाल ही में हुई पैइ भी बहुत कुछ कहती है। एनआरसी मुद्दे पर दिल्ली और अन्य शहरों में चला अल्पसंख्यकों का विरोध जरूर सरकार के लिए परेशानी भरा रहा लेकिन कुल मिलाकर सरकार ने सबका साथ, सबका विकास की रीति—नीति के तहत ही अपने काम को अंजाम दिया।
2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने सर्वप्रथम कर्नाटक का राजनीतिक युद्ध जीता। मई 2018 को सबसे कम सीट (37) पाने वाली जेडीएस पार्टी के कुमारस्वामी कांग्रेस (78) की मदद से मुख्यमंत्री बने थे और सबसे बड़ी पार्टी (104) बनकर भी भाजपा को प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका निभानी पड़ी थी लेकिन 23 जुलाई 2019 को कुमार स्वामी सत्ता से बाहर हो गए और भाजपा की येदियुरप्पा सरकार कर्नाटक में पदासीन हो गई। 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 114, भाजपा के 109, बसपा के 2,सपा के एक और चार निर्दलीय जीते थे। कमलनाथ ने सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। 15 माह बाद ही ज्योतिरादित्य समर्थकों को अपने पक्ष में करके भाजपा ने कमलनाथ से सरकार छीन ली।इसे भाजपा की बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा गया। वर्ष 2019 के पश्चिम बंगाल चुनाव में भाजपा विधायकों की संख्या के 2 से बढ़कर 17 हो जाने को पश्चिम बंगाल की मोदी की रीति—नीति पर स्वीकृति के तौर पर देखा गया। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, गोवा, उत्तर प्रदेश, असम, अरूणाचल प्रदेश और कर्नाटक में भाजपा अपने दम पर सत्ता में है जबकि बिहार, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में अपने सहयोगियों के साथ वह शासन व्यवस्था में बनी हुई है। भाजपा शासित राज्यों में केंद्र और राज्य सरकार के बीच सब कुछ सामान्य बना रहना यह दिखाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों को यहां स्वीकार्यता भी है और सम्मान भी। नए साल की शुरुआत में ही देश के 6 करोड़ किसानों को पीएम मोदी बड़ा तोहफा दिया हैं। सरकार की पीएम किसान योजना के तहत हर किसान के खाते में ई ट्रांसफर के जरिये आज 2 हजार रुपए खाते में डाले । इसके लिए पीएम मोदी ने किसानों के खाते में 12 हजार करोड़ रुपए भेजे।
नरेंद्र मोदी सरकार-2 के एक साल पूरे होने पर भाजपा एक हजार वर्चुअल कॉन्फ्रेंस करने जा रही है। इसमें राष्ट्रीय और राज्य स्तर के नेता लोगों को यह बताने की कोशिश करेंगे कि भाजपा ने बीते एक साल में क्या किया है? इसके अलावा पार्टी 750 वर्चुअल रैली भी करेगी। सभी मंडल में फेस कवर और सैनिटाइजर बांटेगी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के निर्देश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिखित एक पत्र जिसमें आत्मनिर्भर भारत का संकल्प, विश्व कल्याण हेतु भारत की भूमिका और कोविड-19 के फैलने से बचाव हेतु सावधानियां और स्वस्थ रहने के लिए अच्छी आदतों के संकल्प के आह्वान को भाजपा देशभर में 10 करोड़ घरों तक पहुंचाएगी। हर बड़े राज्य में कम से कम दो रैली और छोटे प्रदेशों में कम से कम एक रैली करने की पार्टी की योजना है। अकेले उत्तर प्रदेश में भाजपा 30 मई से 6 वर्चुअल रैलियां करने जा रही है। रेल को पूरी तरह स्वदेशी बनाने का दावा भी बहुत कुछ कहता है। रेल मंत्री ने 12 सेक्टर को प्राथमिकता के आधार पर आत्मनिर्भर बनाने की बात कहकर सरकार का भावी एजेंडा स्पष्ट कर दिया है। पिछले 5 साल में साधारण लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए जितनी भी योजनाएं लागू की गई थीं वे सभी पूरी हो रही हैं। हर घर नल का जल योजना के तहत इस साल हम अपने पहले साल के लक्ष्य को पूरा कर रहे हैं। एक साल में 25 प्रतिशत घरों में हर घर नल का जल योजना का लक्ष्य प्राप्त किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अगर कुछ औद्योगिक संस्थाओं के साथ 11 लाख प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने के लिए करार किया है तो इसके मूल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सकारात्मक सोच ही है।वाराणसी में टैक्सटाइल पार्क के निर्माण को हरी झंडी को भी इसी रूप में देखा जा सकता है।
टिकटॉक को भारत के नियमों से चलने की हिदायत भी मोदी सरकार का हिम्मत भरा प्रयास है। पहले देश में कोविड-19 अस्पताल नहीं थे, आज हर जिले में हैं। कोरोना के चलते चीन के प्रति दुनिया के देश नाराज हैं। वे फिलहाल चीन के साथ व्यापार नहीं करना चाहते, भारत और उसके कई राज्य इस अवसर का लाभ उठाने को बेताब हैं और इस निमित्त उन्होंने अपने प्रयास तेज भी कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश में निवेशकों के लिए अच्छा माहौल बना भी है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ जिस तेजी के साथ मोदी सरकार की नीतियों को अपने राज्य में बढ़ा रही हैं, उसे देखते हुए विपक्ष उसे अपनी आलोचना की जद में लेने का एक भी अवसर गंवा नहीं रहा है। सच कहा जाए तो नरेंद्र मोदी सरकार ने हर क्षण का बेहतर उपयोग किया है। प्राकृतिक आपदाओं ने विकास की गति अवरुद्ध जरूर की है लेकिन इन सबके बाद सरकार देश को आगे ले जाने की दिशा में सतत सन्नद्ध है। लॉकडाउन —5 में भी वह व्यावसायिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने को लेकर गंभीर है लेकिन वह देश की जनता के स्वास्थ्य को लेकर भी उतनी ही चिंतित है। इससे उसकी संवेदनशीलता और राष्ट्रधर्मिता का पता चलता है।
-सियाराम पांडेय 'शांत'-
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