पटना, 3 जून. पिछले दो महीनों में दिल्ली पुलिस ने जामिया के छात्र सफूरा जरगर, मीरान हैदर, आसिफ इकबाल तन्हा, जेएनयू की छात्राएं नताशा नरवाल और देवांगना कलिता व इशरत जहां, खालिद सैफी, गुलफिषा फातिमा, शर्जील इमाम,शिफा उर रहमान जैसे कार्यकर्त्ता और अन्य सैकड़ों मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तारी के खिलाफ आज पटना में कई संगठनों ने संयुक्त रूप से बुद्धा स्मृति पार्क के पास प्रदर्शन किया और सीएए-एनआरसी व एनपीआर सहित यूएपीए कानून को खत्म करने की मांग की.महिला संगठन ऐपवा सहित इनौस, एआईपीएफ, भाकपा-माले व अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. मुख्य रूप से ऐपवा की राज्य सचिव शशि यादव, राज्य सह सचिव अनीता सिन्हा, एआईपीएफ के मो. गालिब, भाकपा-माले के वरिष्ठ नेता केडी यादव, इनौस नेता विनय कुमार व विजय कुमार, रीना प्रसाद, अनुराधा देवी, दिव्या गौतम, संजय कुमार आदि नेताओं ने अन्य संगठनों के नेताओं के साथ भागीदारी निभाई. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों से नोक-झोंक की और उन्हें कार्यक्रम करने से मना किया. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि हम पूरी तरह से फीजिकल डिस्टेंसिंग मेंटेन किए हुए हैं और कोरोना फैलने की सर्वाधिक जिम्मेवारी सरकार पर है, जिसने लाखों मजदूरों को मरने-खपने के लिए छोड़ दिया. इस अवसर पर ऐपवा राज्य सचिव शशि यादव ने कहा कि कोरोना व लाॅकडाउन की ओट में केंद्र सरकार सीएए विरोधी आंदोलन के कार्यकर्ताओं को निशाना बना रही है और उनके खिलाफ संशोधित यूएपीए के तहत कार्यवाही चलाई जा रही है। यह दमन पिछले साल दिसंबर में देश भर में सीएए-एनआरसी के खिलाफ उभरे व्यापक विरोध प्रदर्शनों को दंडित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। हाल ही में एएमयू के छात्र फरहान जुबैरी और रवीश अली खान को यूपी पुलिस ने सीएए के विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया है। यह स्पष्ट है कि अभी गिरफ्तारियों का सिलसिला खत्म नहीं हुआ है और इस लंबी सूची में अन्य कई लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं के नाम जोड़े जाने की संभावना है। इस बीच शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ खुलेआम हिंसा भड़काने वाले कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर जैसे लोग बिना किसी कार्यवाही निर्भीक घूम रहे हैं। अनीता सिन्हा ने कहा कि सत्तारूढ़ ताकतें, किसी भी सामाजिक आंदोलनों के साथ बातचीत करने से इनकार करते हुए, सभी प्रतिवाद की आवाजों को बर्बर राज्य दमन और काले कानूनों के उपयोग से चुप करना चाहती है। इससे पहले, सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले के बहाने कई लोकतांत्रिक-अधिकार कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को अपनी गिरफ्त में लिया है और उनके खिलाफ कार्यवाही चला रही है। इसी तरह असम में सीएए-विरोधी कार्यकर्ता अखिल गोगोई को यूएपीए के तहत आरोपित किया गया है, और बिट्टू सोनोवाल, मानस कुंअर, धज्जो कुंअर और कई अन्य आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर प्रताड़ित किया जा रहा है। ऐसे समय में जब सरकार की ऊर्जा और संसाधन हजारों लोगों की जानें लेने वाले और लाखों आजीविकाओं को नष्ट करने वाले विशाल स्वास्थ्य संकट और विनाशकारी पैमाने की आर्थिक मंदी से लड़ने में लगाई जानी चाहिए, तब सरकार द्वारा अपने सारे प्रयास प्रतिवाद की आवाजों को दबाने और छात्रों और जनतांत्रिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने में लगाना राज्यसत्ता के गलत इस्तेमाल का शर्मनाक प्रदर्शन है। मो. गालिब ने कहा कि मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों, श्रमिकों, महिलाओं और सभी हाशिए के समुदायों की नागरिकता पर हमले के खिलाफ लोकतांत्रिक संघर्ष में भाग लेने वाले सीएए-विरोधी कार्यकर्ताओं पर चलाया जा रहा हमला पूरे सीए-एनआरसी-एनपीआर आंदोलन को ध्वस्त करने का व्यवस्थित प्रयास है। यह सरकार की सांप्रदायिक और जनविरोधी नीतियों की मिसाल है, जो अपने नागरिकों के लिए उपलब्ध सभी संवैधानिक सुरक्षाओं को खतम करने में लगी हुई है। ऐसे दमन के जरिए यह सरकार प्रतिवाद करने वालों का उदाहरण बना कर दूसरों को भी चुप कराना चाहती है। आज श्रम कानून ध्वस्त किए जा रहे हैं, शैक्षणिक संस्थान दुर्गम बन रहे हैं, बेरोजगारी समाज में अभूतपूर्व स्तर तक पहुँच रही है और श्रमिकों, अल्पसंख्यक और हाशिए पर रहने वाले समुदायों, महिलाओं और छात्रों के खिलाफ हिंसा लगातार बढ़ रही है। ऐसे में इस देश के लोगों को इस दमनकारी शासन को एक आवाज में चुनौती देनी होगी! प्रदर्शनकारियों ने लोकतांत्रिक आवाजों पर राजकीय दमन के खिलाफ आवाज उठाओ, सीएए विरोधी आंदोलन के नेताओं केा रिहा करो, प्रवासी श्रमिकों की स्थिति पर ध्यान दो आदि नारे लगा रहे थे. उन्होंने दिल्ली दंगे के मास्टर माइंड कपिल मिश्रा की गिरफ्तारी की मांग की और कहा कि सभी सीएए विरोधी आंदोलन के नेताओं-कार्यकर्ताओं केा अविलंब रिहा किया जाना चाहिए.
बुधवार, 3 जून 2020
बिहार : सीएए विरोधी आंदोलन के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ पटना में प्रतिवाद
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