- पटना में जनशक्ति कैंपस के सामने दिया धरना.
- भाकपा-माले, सीपीआई, सीपीआईएम व फारवर्ड ब्लाॅक के नेताओं ने लिया भाग.
- सात सूत्री मांगांें पर आज पूरे राज्य में हुआ प्रतिवाद.
- प्रवासी मजदूरों को शांति व्यवस्था भंग व लूट-पाट करने वाले गिरोह के रूप में देखती है सरकार.
पटना 7 जून, मजदूरों, गरीबों, किसानों और समाज के सभी कामकाजी हिस्से को गहरे संकट में डालकर तथा देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह चैपट करके भाजपा द्वारा बिहार में आज आभासी रैली के जरिए चुनाव तैयारी आरंभ किए जानेे के खिलाफ वाम दलों ने देशव्यापी आह्वान पर राजधानी पटना सहित पूरे राज्य में शारीरिक दूरी व कोरोना से बचाव के उपायों के नियमों का पालन करते हुए विरोध दिवस का आयोजन किया व धरना दिया. राजधानी पटना में जनशक्ति कैंपस के सामने वाम नेताओं ने धरना दिया. जिसमें मुख्य रूप से भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा, राज्य कमिटी सदस्य रणविजय कुमार; सीपीआईएम के अरूण कुमार मिश्रा, रामपरी देवी, मनोज चंद्रवंशी; सीपीआई के विजय नारायण मिश्र, रविन्द्र नाथ राय, रामलला सिंह आदि नेता शामिल थे. इन नेताओं के अलावा ऐपवा की शशि यादव, सरोज चैबे, ऐक्टू के आरएन ठाकुर, पटना जिला के कार्यकारी सचिव जितेन्द्र कुमार, मुर्तजा अली, सत्येन्द्र शर्मा, पन्नालाल, युवा नेता विनय कुमार, महिला समाज की निवेदिता सहित दर्जनों की संख्या में वाम दलों के कार्यकर्ता शामिल हुए. आज के धरना में माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि यह बेहद निंदनीय है कि जब पूरा देश मोदी सरकार द्वारा अनप्लानड तरीके से लागू किए गए लाॅकडाउन की वजह से गहरे संकट में फंसा हुआ है; आम जनता रोजगार, भूख, बीमारी व अन्य कई प्रकार की समस्याएं झेल रही है, कोरोना का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है, तब इन समस्याओं से आम लोगों को निजात देने की बजाए भाजपा-जदयू के लोग बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में लग गए हैं. अभी प्रवासी मजदूरों व आम लोगों को राशन व रोजगार चाहिए न कि भाषण. उन्होंने यह भी कहा कि प्रवासी मजदूरों के प्रति इस सरकार के नफरत भरे रवैये का पता इसी से चलता है कि पुलिस विभाग ने बाजाप्ता सरकारी पत्र निकालकर सभी जिलाधीशों को आगाह किया था कि बाहर से आए मजदूर समाज में उपद्रव मचा सकते हैं. विपक्ष के दबाव में यह पत्र सरकार को वापस लेना पड़ा, लेकिन इससे सरकार की मानसिकता का तो पता चलता ही है. धीरेन्द्र झा ने कहा कि अभी रोजगार का सवाल सरकार की प्राथमिकता में होनी चाहिए, लेकिन अमित शाह आभासी रैली कर रहे हैं. देश की जनता को कोरोना व भूखमरी से मरने के लिए छोड़ दिया है. कई जगहों से रिपोर्ट मिल रही है कि मजदूरों से काम करवाने की बजाए जेसीबी मशीन से काम करवाया जा रहा है. इस पर अविलंब रोक लगनी चाहिए. हमारी मांग है कि मनरेगा में मजदूरों को काम दिया जाए. कम से कम 200 दिन काम व 500 रु. न्यूनतम मजदूरी की गारंटी की जाए. जो बाहर से मजदूर आए हैं, उनके लिए सरकार रोजगार की व्यवस्था करे. इनकटम टैक्स के दायरे से बाहर सभी परिवारों को 6 माह तक 7500 रु. गुजारा भत्ता दिया जाए. ऐडवा की रामपरी देवी ने कहा कि सरकार क्वारंटीन सेंटरों को खत्म कर रही है, हम इसका विरोध करते हैं. सीपीआई के विजयनारायण मिश्र ने कहा कि सभी किसानों के केसीसी सहित सभी प्रकार के कर्ज माफ होने चाहिए. रणविजय कुमार ने कहा कि सभी परिवारों के लिए 10 किलो राशन का प्रबंध करना सरकार का दायित्व होना चाहिए न कि आभासी रैली करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. नेताओं ने भूख-प्यास भरी यात्रा में थकान व दुर्घटना अथवा क्वारंटीन सेंटर में मौत के शिकार लोगों के परिजनों के लिए 20-20 लाख रुपए मुआवजे की मांग की. पटना के चितकोहरा में आयोजित विरोध दिवस में माले पोलित ब्यूरो सदस्य अमर, ललन सिंह, दिलीप सिंह आदि नेताओं ने भाग लिया. दीघा में माले नेता रामकल्याण सिंह, वशिष्ठ यादव व छोटू जी के नेतृत्व में विरोध दिवस का आयोजन किया गया. ऐपवा नेता अनिता सिन्हा, राखी मेहता, पटना सिटी में शंभूनाथ मेहता आदि नेताओं ने अपने आवास पर धरना दिया. आज के विरोध दिवस के तहत भोजपुर के कोइलवर, इसाढ़ी बाजार, उदवंतनगर, आरा नगर, गड़हनी, तरारी, सहार आदि प्रखंड केंद्रों पर प्रदर्शन किए गए. सिवान, दरभंगा, गया, अरवल, कटिहार, गोपालगंज, नालंदा आदि जिला केंद्रों पर भी विरोध दर्ज किए गए. वाम नेताओं ने कहा कि देश और बिहार को गहरे संकट में डालकर यदि भाजपा-जदयू चुनाव जीत लेने का सपना देख रहे हैं, तो वे बड़ी गलतफहमी में हैं. प्रवासी मजदूर, दलित-गरीब, छात्र-नौजवान, किसान, व्यापारी, स्वंय सहायता समूह, आंगनबाड़ी सेविका सहायिका, आशाकर्मी यानि समूचा कामकाजी हिस्सा भाजपा व जदयू से हिसाब चुकता करेंगी. आने वाले दिनों में विपक्ष की और बड़ी एकता बनाते हुए भाजपा-जदयू के इस मानव व देशद्रोही कदमों के खिलाफ व्यापक आंदोलन चलाया जाएगा.
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