नयी दिल्ली, 28 जून, पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने शनिवार को कहा कि विश्वविद्यालयों को कोविड-19 महामारी के दौरान परीक्षाएं आयोजित नहीं करनी चाहिए और ऑनलाइन परीक्षा लेना भी सही नहीं है क्योंकि यह गरीब छात्रों के साथ ‘‘भेदभाव’’ जैसा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि कोरोना वायरस के कारण ठीक प्रकार से कक्षाएं चलाए बगैर स्कूलों का 2020-21 शिक्षण सत्र लगभग आधा समाप्त हो चुका है, इसलिए अगले वर्ष कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित नहीं की जानी चाहिएं क्योंकि इससे छात्रों पर बेवजह का बोझ पड़ेगा। सिब्बल ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘आधा साल गुजर चुका है और हमें नहीं पता कि यह महामारी कब तक चलेगी। इस वर्ष और अगले वर्ष कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षाओं की आवश्यकता नहीं है और उसके बाद वे इस नीति पर दोबारा गौर कर सकते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ भगवान का शुक्र है कि उन्होंने कुछ समझदारी भरे सुझावों को सुना और बोर्ड परीक्षाओं को रद्द कर दिया। उस प्रभाव की कल्पना कीजिए जो खास तौर पर उन गरीब छात्रों पर पड़ता जिनके पास ऑनलाइन सुविधा नहीं है।’’
सिब्बल का बयान ऐसे वक्त में आया है जब संक्रमण के कारण कक्षा 10वीं और 12वीं की शेष बची सीबीएसई और आईसीएसई की परीक्षाओं को रद्द कर दिया गया है। सिब्बल ने कहा,‘‘स्पष्ट कहूं तो विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं भी स्थगित कर दी जानी चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि जब तक महामारी है तब तक परीक्षाएं आयोजित नहीं की जानी चाहिए और ऑनलाइन परीक्षाएं कराना भी ‘‘बेहद भेदभावपूर्ण’’ होगा क्योंकि भारत में अनेक स्थानों में दूर दराज के इलाकों में ऑनलाइन परीक्षाओं की कोई सुविधा नहीं है और इससे गरीब छात्रों के साथ भेदभाव होगा। कांग्रेस नेता ने कहा,‘‘ आप एक प्रकार से संभ्रांत संस्कृति विकसित कर रहे हैं जहां अमीरों को लाभ मिलेगा, जिनके पास ऑनलाइन सुविधा है और उन संस्थानों को लाभ मिलेगा जिनके पास ऑनलाइन सुविधा मुहैया कराने और ऑनलाइन शिक्षण कराने की सुविधा है।’’ दिल्ली विश्वविद्यालय ने अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए शनिवार को अपनी ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा को स्थगित कर दिया। ये परीक्षाएं एक जुलाई से होनी थीं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय सहित अनेक शिक्षण संस्थानों ने ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षाएं कराने का निर्णय किया है। यह पूछे जाने पर कि अगर परीक्षाएं नहीं हुई तो छात्रों को प्रोन्नत कैसे किया जाएगा उन्होंने कहा कि दो मुद्दे हैं-प्रथम वर्ष से जिन्हें द्वितीय वर्ष के लिए प्रोन्नत किया जाना है और द्वितीय वर्ष से जिन्हें तृतीय वर्ष के लिए प्रोन्नत किया जाना है और दूसरा, जो तीसरे और अंतिम वर्ष में हैं।
सिब्बल ने कहा कि प्रथम वर्ष से दूसरे वर्ष और दूसरे वर्ष से तीसरे वर्ष में जाने वाले छात्रों ने इस अवधि में सेमेस्टर परीक्षाएं दी होंगी, तो प्रोन्नति के लिए उन परीक्षाओं के परिणाम के आधार पर मूल्यांकन किया जा सकता है और इसे अस्थाई रखा जाना चाहिए ताकि जब पूरी कक्षाएं हो जाएं तो परीक्षाएं हो सकें।’’ उन्होंने कहा,‘‘ अब आप विश्वविद्यालय परीक्षाओं पर आइए। बहुत से छात्र जो दूर से आते हैं वे छात्रावास से जा चुके हैं और उन स्थानों से वे ऑनलाइन परीक्षा मे कैसे शामिल हो सकेंगे। कई छात्र पड़ोसी देशों से हैं तो वे कैसे परीक्षाएं दे पाएंगे।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या केन्द्र को विश्वविद्यालयों में परीक्षाओं के लिए समान नीतियां बनानी चाहिए सिब्बल ने कहा कि विश्वविद्यालय स्वतंत्र संस्थान हैं और उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, ये सरकार निश्चित नहीं कर सकती। महामारी से पैदा हुए आर्थिक संकट के कारण बहुत से अभिभवकों द्वारा स्कूल और कॉलेजों की फीस नहीं दे पाने के संबंध में उन्होंने कहा कि कोई भी फीस नहीं भरे जैसी समान नीति बना देने के साथ समस्या यह है कि कई छात्र जो फीस भरने की हालत में हैं, वे भी फीस नहीं भरेंगे तो इसका असर स्व वित्तपोषित संस्थानों पर पड़ेगा। सिब्बल ने कहा,‘‘.... जब मैं कहता हूं कि यह सरकार राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकार का हिस्सा हैं जिसके मुखिया प्रधानमंत्री हैं तो सरकार को इस संबंध में नीति बनानी चाहिए।’’ सिब्बल ने कहा कि समिति को संबंधित मंत्रालयों के साथ इन मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए और उन्हें सुझाव देना चाहिए, जो फिर राज्य सरकारों को आगे सुझाव देंगी, लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं रहा है।
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