मुंशी प्रेमचंद्र की 'निर्मला' अब ओलचिकी में भी उपलब्ध होगी. इसके लिए जमशेदपुर के प्रोफेसर डॉ सुनील मुर्मू ने प्रयास किया है. उन्होंने लॉकडाउन के समय का सदुपयोग करते हुए इस किताब को लिखा है.
जमशेदपुर (आर्यावर्त संवाददाता) मुंशी प्रेमचंद्र की 'निर्मला' अब ओलचिकी में भी उपलब्ध होगी. इसके लिए जिले के डिमना रोड स्थित हिलव्यूह कॉलोनी में रहने वाले प्रोफेसर डॉ सुनील मुर्मू ने प्रयास किया है. उन्होंने लॉकडाउन के समय का सदुपयोग करते हुए इस किताब का अनुवाद किया है. वैसे उन्होंने पहले भी दो पुस्तकें 'अभिज्ञान शकुंतलम' और 'प्रश्नोत्तर रत्नामालिका' को ओलचिकी में अनुवाद किया है. प्रोफेसर सुनील मुर्मू सरायकेला के चांडिल स्थित सिंहभूम कॉलेज में संस्कृत के विभागाध्यक्ष हैं और कॉलेज में और भी कई जिम्मेदारियों का निर्वाहन कर रहे हैं. प्रोफेसर ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपने समय का सदुपयोग करते हुए इसे लिखा है. उन्होंने कहा कि प्रेमचंद्र की 'निर्मला' को ओलचिकी में अनुवाद करने का यह कारण है कि देश के सभी विश्वविद्यालय में प्रेमचंद्र की निर्मला उपन्यास को पढ़ाया जाता है और इसमें बेमेल विवाह के बारे में चर्चा की गई है. कई छात्रों ने भी उन्हें इस पर किताब लिखने को कहा था. वहीं प्रोफेसर की पत्नी जमशेदपुर के वर्कर्स कॉलेज में शिक्षिका है. वह भी वहां संस्कृत पढ़ाती हैं. हालांकि, शादी के समय तक उनकी पत्नी सिर्फ इंटर तक की पढ़ाई कर पाई थी, लेकिन प्रोफेसर के सहयोग के कारण आज वह नेट क्वालीफाई कर चुकी है. किताब लिखने में उनका भी काफी सहयोग रहा है. बता दें कि प्रोफेसर सुनील के दो बच्चे हैं. एक बेटा और एक बेटी. सुनील चार भाइयों में सबसे छोटे हैं. वो पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला के गालूडीह के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रहने वाले हैं. सुनीलपढ़ने में तेज होने के कारण उनके भाइयों ने उन्हें छठी क्लास तक पढ़ने के लिए नेतारहाट भेजा. वहां से उन्होंने इंटर तक पढ़ाई करने के बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संस्कृत में बीए, एमए, बीएड और एमएड किया और सभी में प्रथम रहें. पढ़ाई का सिलसिला ऐसा चला कि आज भी वे एक सफल संस्कृत के शिक्षक हैं और पत्नी को सफल संस्कृत की शिक्षिका बनाया.
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