बिहार में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक फेल
दरभंगा (आर्यावर्त संवाददाता) बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय सिंडिकेट के सदस्य प्रो० विनोद कुमार चौधरी ने आज यहां जारी अपने एक बयान में कहा है कि बिहार में स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की पढ़ाई लिखाई को गंभीरता से लेने वाला कोई नहीं है। प्रभारी कुलपतियों के बल पर कई विश्वविद्यालयों को चलाया जा रहा है और इन कुलपतियों को कोई अधिकार भी नहीं है, वे कोई भी निर्णय लेने में अपने आपको असक्षम पाते हैं। शिक्षकों एवं कर्मचारियों की बात सुनने वाला कोई नहीं है और लाचार शिक्षक और कर्मचारी जाएं तो जाएं कहां।
संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षाकर्मियों की हालत तो यह है की बिहार सरकार इनका 8 वर्षों का अनुदान रोक रखी है। विश्वविद्यालय एवं अंगीभूत महाविद्यालय के शिक्षकों का लगभग 4 वर्ष का यूजीसी अंतर वेतन का बकाया राशि विश्वविद्यालय को प्राप्त है लेकिन इसे बांटने वाला कोई नहीं है। सेवानिवृत्त शिक्षकों की भी दुर्दशा हो रही है। मार्च में सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों एवं कर्मचारियों का पेंशन तक निर्धारित नहीं हो रहा है। एक ही संचिका कुलसचिव से लेकर वित्त पदाधिकारी एवं वित्तीय परामर्शी के बीच 10 बार ऊपर नीचे हो रहा है। जानबूझकर इसे लटकाया जा रहा है। कोरोना संक्रमण काल में भी अधिकारियों को जरा भी अपने शिक्षकों एवं कर्मचारियों की चिंता नहीं है सिर्फ वह इन से काम लेना जानते हैं। बिहार के कई विश्वविद्यालयों का यही हाल है। कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर कई बार हड़ताल पर जा चुके हैं समझौता भी होता है लेकिन इसका अनुपालन नहीं होता। अतिथि शिक्षकों को भी अपनी मांगों को लेकर धरना देना पड़ा। संबद्ध महाविद्यालय के शिक्षकों ने भी धरना का आयोजन किया। उच्च शिक्षा का जब यह हाल है तो माध्यमिक और प्राइमरी शिक्षा की बात ही नहीं करनी चाहिए। माध्यमिक एवं नियोजित शिक्षकों के साथ जो समझौता हुआ उसका भी पूर्णरूपेण अनुपालन नहीं हो रहा। प्रो० विनोद चौधरी ने मुख्यमंत्री जी से मांग किया कि वे स्वंय अपना ध्यान दे ताकि समस्या का निदान हो सके। शिक्षक एवं कर्मचारियों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है जिस कारण निकट भविष्य में बिहार में पुनः एक आंदोलन शुरू होने की संभावना बलवती हो रही है।
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