आलेख : राम—सीता के जन्म के वक्त तो नेपाल था ही नहीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 23 जुलाई 2020

आलेख : राम—सीता के जन्म के वक्त तो नेपाल था ही नहीं

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श्रीराम सामान्य मनुष्य नहीं हैं। वे सारे संसार के संचालक हैं। वे अखंड ब्रह्मांड नायक हैं। विभीषण अपने भाई लंकाधिपति रावण से कुछ ऐसा ही कहा था—'तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहुं कर काला।'राम को देश—काल परिस्थितियों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। जिस अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था,वह अयोध्या सप्तपुरियों में एक है। भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र और महर्षि वशिष्ठ के विवेक से इस नगरी को ढूंढ़ा गया था। इस नगरी की स्थापना महाराज वैवस्वत मनु ने की थी। राम के पहले की और राम के बाद की कई पीढ़ियों ने अयोध्या पर राज किया था। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा है कि राम हिंदुस्थानी नहीं, नेपाली थे। असली अयोध्या नेपाल में काठमांडू के वीरगंज के पास थोरी में थी। इसे लेकर पूरे भारत में गुस्सा है। साधु—संत नाराज हैं। धर्मग्रंथों के जरिए केपी शर्मा ओली को आईना दिखा रहे हैं। वह रास्ता बता रहे हैं जिस रास्ते जनकनंदिनी सीता विवाह के उपरांत अयोध्या पहुंची थीं।
  
नेपाल के प्रधानमंत्री ओली को लगता है कि उन्होंने दुनिया को राम दिया लेकिन इसके बाद भी नेपाल को महत्व नहीं मिला। उसका सांस्कृतिक दमन किया गया है। तथ्यों को तोड़ा—मरोड़ा गया है। ओली का बयान ऐसे समय आया है, जब भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद चरम पर है। नेपाल ने अपने नए राजनीतिक नक्शे में भारतीय क्षेत्र कालापानी,लिपुलेख और लिंपियाधूरा को नेपाल का हिस्सा बता दिया है। भारत इस विचार और नक्शे का प्रतिवाद कर चुका है। भारत की भौगोलिक संप्रभुता को चुनौती देने के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री अब उसकी सांस्कृतिक संप्रभुता को चुनौती दे रहे हैं। वे तो बाल्मीकि ऋषि को भी नेपाली बता रहे हैं। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने भले ही ओली के बयान पर सफाई दी हो लेकिन नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवली को भी लगता है कि शोध के बाद रामायण का इतिहास बदल जाएगा। चीन के दबाव में नेपाल किस हद तक गिर सकता है,अयोध्या,राम और सीता संबंधी दावे तो उसकी बानगी भर है। जिस नेपाल में वे राम और सीता के जन्म की बात कर रहे हैं, वह नेपाल कभी अखंड भारत का हिस्सा हुआ करता था। जिस जनकपुर के नेपाल में होने का दावा किया जा रहा है,वह जनकपुर बिहार के मिथिलांचल का हिस्सा था जो 1816 में सुगौली संधि के तहत अंग्रेजों ने नेपाल को दिया था। सच तो यह है कि जिस समय सीता—राम का जन्म हुआ था, उस समय तो नेपाल का जन्म भी नहीं हुआ था।
  
अयोध्या नगरी की स्थापना वैवस्वत मनु ने की थी। मनु आदि पुरुष हैं। उनसे ही मनुष्य की उत्पत्ति हुई है। पुराणों में 14 मनुओं का जिक्र मिलता है। यह और बात है कि महाभारत में आठ मनुओं के होने की ही बात कही गई है। वैवस्वत मनु सातवें मनु हैं। शास्त्रों में सृष्टि की कुल आयु 4 अरब 29 करोड़ 40 लाख 8 हजार वर्ष बताई गई है। इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बांटा गया है। मतलब सृष्टि के आयुकाल में अलग—अलग चौदह मनु राज्य करते हैं। वर्तमान में सातवां मन्वंतर चल रहा है। सातवा मन्वंतर वैवस्वत मनु का है। इससे पहले स्वायम्भुव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत और चाक्षुष नाम के 6 मन्वंतर बीत चुके हैं। आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर आने हैं। एक मन्वंतर 71 चतुर्युगी का होता है। सतयुग 17लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12लाख 96 हजार वर्ष द्वापर युग,8लाख 64हजार  वर्ष और कलियुग 4लाख 32 हजार वर्ष का होता है। इस प्रकार 1 चतुर्युगी की कुल आयु 43लाख 20हजार वर्ष होती है। इस लिहाज से देखा जाए तो एक मन्वंतर 30 करोड़ 67 लाख 20 हजार वर्ष का होता है। ऐसे 6 मन्वंतर पहले ही बीत चुके हैं। सातवें मन्वन्तर की 28 वीं चतुर्युगी चल रही है। 27 चतुर्युगी मतलब 11 करोड़ 66 लाख 40 हजार वर्ष बीत चुके हैं। 28वीं चुतुर्युगी के तीन युग सतयुग, त्रेता और द्वापर बीत चुके हैं। कलियुग के प्रथम  चरण का 5115वां साल चल रहा है। मतलब वैवस्वत मन्वंतर के अब तक 12 करोड़ 9 लाख 65 करोड़ 114 साल बीत चुके हैं।
   
नेपाल के प्रधानमंत्री ओली विचार कर सकते हैं कि उनके दावे में कितना दम है? अखंड भारत से ही टूटकर कई देश अस्तित्व में आए थे। नेपाल के हुक्मरानों को इस युगसत्य को भी भूलना नहीं चाहिए। ने ऋषि ने काठमांडू में तपस्या की थी। ने का अर्थ है मध्य और पा का अर्थ है देश। नेपाल भारत का मध्य देश हुआ करता था। ईरान, कंबोडिया, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलिपींस, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, तिब्बत , श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान और बांग्लादेश की उत्पत्ति अखंड भारत से ही है। ये अखंड भारत का हिस्सा हुआ करते थे और यहां भारतीय राजाओं का राज्य हुआ करता था। आज तक इतिहास की किसी भी पुस्तक में इस बात का जिक्र नहीं मिलता कि विगत ढाई हजार वर्षों में भारत पर आक्रमण करने वाले किसी भी आक्रमणकारी (यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, पुर्तगाली,फ्रांसीसी, डच, व अंग्रेज आदि) ने अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालदीव या बांग्लादेश पर आक्रमण किया हो। 1857 से 1947 तक हिंदुस्तान के कई टुकड़े हुए। 1947 में पाकिस्तान का विभाजन हुआ। 1971 में बांग्लादेश बना। पाकिस्तान और बांग्लादेश निर्माण का इतिहास सभी जानते हैं लेकिन अन्य बाकी देशों के इतिहास पर कभी चर्चा तक नहीं होती।
  
अखंड भारत में आने वाले अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, बांग्लादेश, बर्मा, इंडोनेशिया, कंबोडिया, वियतनाम, मलेशिया, जावा, सुमात्रा, मालदीव और अन्य कई छोटे-बड़े थे। इन सबके अलग—अलग राजा होते थे लेकिन वे सभी भारतीय जनपद कहलाते थे। अखंड भारत की सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थीं। राइट विंग के इतिहासकारों के मुताबिक 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है। भारत के चारों ओर आज जो देश हैं, वर्ष 1800 से पहले दुनिया के देशों की सूची में वे देश थे ही नहीं। मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बड़े राज्यों को संगठित कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य बना चुके थे। अंग्रेजों ने  1904 में पहाड़ी राजाओं से समझौता कर नेपाल को एक आजाद देश का दर्जा दिया था। इस प्रकार से नेपाल भारत से अलग हो गया था। नेपाल 1947 में अंग्रेजों से मुक्त हुआ। 1906 के बाद अंग्रेजों ने भारत के इस हिस्से को भी अलग कर दिया। भूटान के रूप में फिर एक नए देश का निर्माण हो गया।

1914 में तिब्बत को जो भारत की त्रिविष्टिक क्षेत्र था को केवल एक पार्टी मानते हुए चीन, भारत की ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता दी गई। हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा  बनाई गई। हिमालय को बांटने का षड्यंत्र रचा गया। अंग्रेजों ने अपना नौसैनिक बेड़ा बनाने और समर्थक राज्य स्थापित करने के लिहाज से श्रीलंका और फिर म्यांमार को राजनीतिक देश की मान्यता दी। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से दोनों अखंड भारत का हिस्सा थे। भारत में ब्रिटिश राज के अंत के साथ ही 1947 में भारत-पाक का बंटवारा हुआ। इसकी भी पटकथा अंग्रेजों ने  ही लिखी थी जबकि 16 दिसंबर 1971 को भारत के सहयोग से बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तान का एक हिस्सा स्वतंत्र देश बना।
   
ओली और उनकी पार्टी के नेता रिसर्च करने और कराने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन रिसर्च का आधार चीन का दबाव या फंतासी तो नहीं हो सकती। राम का जिस समय विवाह हुआ था वे चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के बेटे थे। दशरथ गांव के प्रधान नहीं थे। अयोध्या सरयू के किनारे थी। गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि 'उत्तर दिसि सरयू बह पावन।' नेपाल में सरयू नहीं बहती। थोरी गांव है। एक नाम के कई स्थान हो सकते हैं। नेपाल में भी अयोध्या नामक कोई गांव रहा होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
  
रही बात राम के नेपाली होने की तो राम तो पूरी धरती के हैं। सारी धरती के स्वामी हैं। उन्हें किसी भी देश का मान लो क्या फर्क पड़ता है। अयोध्या के लोग ही राम पर दावा नहीं कर सकते। राम तो सबके हैं। सीता तो सबकी जननी हैं। जगत्माता हैं। नेपाल के लोग ही उन पर अकेले दावा कर सकते हैं। राम को मानने वाले धरती के कोने—कोने में हैं। राम का ही जगत पसारा है। केपी शर्मा ओली और उनके विदेश मंत्री ज्ञवली को अपने ज्ञान में वृद्धि करनी चाहिए। ईश्वर या महापुरुषों के संदर्भ में किसी भी तरह का विचार रखने से पूर्व इतना तो सोचना ही चाहिए कि वे सूर्य को दीपक तो नहीं दिखा रहे हैं। मूल से कटकर कभी किसी का भला नहीं होता। नेपाल का भला भारत से जुड़े रहने में है।
  
चीन फितरती देश है, उसकी चाल में फंसकर ओली अपना और अपने देश नेपाल का भी नुकसान कर रहे हैं। नेपाल शिव प्रदेश हैं। वहां पशुपतिनाथ विराजते हैं। पशुपतिनाथ यानी समस्त प्राणियों के ईश्वर भगवान शिव। शिव का अर्थ है कल्याण। जहां आदिशक्ति जगदम्बा प्रकट हुई हैं, उस देश के शासक अनर्गल प्रलाप पर उतर आएं तो इसे क्या कहा जाएगा? अभी भी समय है ओली को भारत के प्रति अपने दृष्टिकोण का चश्मा बदल लेना चाहिए।





-सियाराम पांडेय 'शांत'-

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