एक दो नहीं दर्जनभर से अधिक ब्राह्मणों का हत्यारा है बाहुबलि विजय मिश्रा। लेकिन जब उसके काले कारनामों या यूं कहे गुनाहों पर प्रषासनिक हंटर चलता है, तो खुद को ब्राह्मणों का नेता, हितैषी ना जाने क्या-क्या की दुहाई देने लगता है। षासन-प्रषासन पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगाते हुए अपनी हत्या का राग अलापने लगता है। यह कोई पहली बार योगी सरकार में ही नहीं मायावती षासन में भी कर चुका है और इसी ब्राह्मण कार्ड के भरोसे भदोही ही नहीं प्रयाग से काशी तक खनन एवं सरकारी ठेके-पट्टे के बूते हजारों करोड़ की अवैध संपत्ति खड़ा की है। देष के कई राज्यो यहां तक कि विदेषों में भी अपना इतना आर्थिक साम्राज्य फैला रखा है कि कानपुर वाले विकास दुबे उसके आगे कुछ भी नहीं। रहा सवाल खाकी-खादी गठजोड़ का तो वो खुद खादी का चोला ओढ़ रखा है। सपाकाल में तो लोग मिनी मुख्यमंत्री के नाम से जाना जाता था। भाजपा में गहरी पैठ बना रखी है। परिणाम यह है कि योगीराज में भी उसका खनन से लेकर हर काले कारनामा धड़ल्ले से चल रहा है
फिरहाल, चाहे वो भाजपा से विधायक रहे गोरखनाथ पांडेय के भाई रामेष्वर पांडेय, कांस्टेबिल महेन्द्र मिश्रा, कैबिनेट मंत्री रहे राकेषधर त्रिपाठी के भाई धरनीधर त्रिपाठी हो अन्य। इन सभी ब्राह्मण औरतों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से विधवा करने का आरोप बाहुबलि विजय मिश्रा पर है। दर्जनभर से अधिक ऐसे भी ब्राह्मण रहे, जो इसके साथ साये की तरह रहे, लेकिन अपनी गर्दन ना फंसे, उन्हें भी मौत के घाट उतारने में संकोच नहीं किया। हाल के दिनों में उसका भतीजा खुद उसके आतंक से ग्रसित है। खास बात यह है कि अपनी अकूत दौलत के बूते न सिर्फ इन सभी हत्याओं में बरी हो गया, बल्कि क्षेत्रीय ब्राह्मणों पर कुछ इस कदर दौलत न्यौछावार करता रहा है कि वे उसके नाम का दिन-रात माला जपते है। इसमें कई खाकी-खादी के लोग भी षामिल है, जो उसके एक इसारे पर कुछ भी कर गुजरने पर आमादा रहते है। ये उसकी खाकी-खादी की गठजोड़ का ही परिणाम रहा कि मुख्यमंत्री रही मायावती के सख्त आदेष के बाद भी महिनेभर पुलिस के हाथ नहीं लगा। जब मायावती ने स्पेषल टास्कफोर्स का गठन किया तो साधुवेष में दिल्ली में धराया। लेकिन सपा सरकार बनते ही बाहर आ गया और उन लोगों से चुन-चुन कर बदला लिया, जो मायावती कार्यकाल के दौरान जानी दुष्मन बने रहे।
कई विभागों के कैबिनेट मंत्री व बाह्मण नेता के रुप में मषहूर रहे रंगनाथ मिश्रा कुछ इस तरह अपने चक्रव्यूह में फसाया कि वे आज तक उबर नहीं सके। अब जब एक बार फिर टूल प्लाजा के संचालक द्वारा रंगदारी व जान से मारने धमकी रपट दर्ज हुई है तो पुलिस एक्षन में है। हर बार की तरह इस बार भी मीडिया को अपनी मुठ्ठी में रखने वाला विजय मिश्रा ब्राह्मण कार्ड का इस्तेमाल करते हुए योगी सरकार पर आरोप लगाया है कि ब्राह्मण होने के नाते उनकी हत्या की जा सकती है। अपने बचाव में दर्जनों ब्राह्मणों को ढाल के रुप में आगे कर खुद को उनका रहनुमा बताने लगा है। या यूं उसके लिए यह कार्ड कवच-कुंडल बन गया है और इसी कार्ड के सहारे प्रयाग से काशी तक खनन एवं सरकारी ठेके-पट्टे का कारोबार योगीराज में भी धड़ल्ले से चल रहा है। एक सांसद पुत्र का उसके प्रति ऐसा मोहछाया रहा कि उसके दौलत के आगे वो न सिर्फ पंगु बनारहा बल्कि उसके काले कारनामों को फलने-फूलने में भरपूर सहयोग किया। खादी व खाकी गठजोड़ के बूते ही उसने हत्या जैसे संगीन मामलों में सजा से पहले पूरी चार्जसीट थाने से बदलवा दी। अपने निधि से लेकर अन्य योजनाओं का बंदरबांट कैसे करता है यह किसी से छिपा नहीं है। कुछ साल पहले जिला अस्पताल के निर्माण में लगे ठेकेदार से रंगदारी वसूलने के लिए ऐसी धमकी दिया कि दो साल से निर्माण ही ठप है। सड़कों के निर्माण में धांधली व विकास का पैसा चुनाव में खर्च करना उसका सगल बन गया है। यही वजह है कि उसके दौलत के आगे संगठित अपराध के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई ढीली पड़ती गई और वह एक दो नहीं बल्कि चार बार विधायक चुना जाता रहा और उसके आगे पूर्व सांसद गोरखनाथ पांडेय, कैबिनेट मंत्री रहे रंगनाथ मिश्रा से लगायत न जाने कितने ब्राह्मण नेता उसके बाहुबल व धनबल के आतंक से पस्त होते गए।
दरवान से विधायक तक का सफर
बता दें, ब्लाक प्रमुख से विधायक बने विजय मिश्र शुरुवाती दिनों में भदोही के कालीन कंपनी में बंदूकधारी वाचमैन हुआ करते थे। कालीन कंपनी के संचालक पर जब विपदा आई तो वो ढाल बनकर खड़ा हो गया और काफी कुछ मदद किया। इसके बाद जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह मुख्तार अंसारी के संपर्क में आया तो फिर जुर्म पर जुर्म करता गया, पीछे पलटकर नहीं झाका। इसी दौरान वाराणसी के चर्चित कोयला व्यवसायी व विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कोषाध्यक्ष नंद किशोर रुंगटा अपहरणकांड में भी विधायक मुख्तार अंसारी के साथ विधायक विजय मिश्रा का भी नाम पुलिस जांच में सामने आया। हालांकि वर्ष 1997 में दर्ज इस मामले की सबीआई जांच में भी विजय मिश्रा और मुख्तार दोनों बरी हो गए। कोयला व्यवसायी अब तक न तो जीवित मिले और न ही मृत। इस मामले में दो आरोपित अताउर रहमान व शहाबुद्दीन अब तक फरार हैं। जहां तक उसके राजनीति कैरियर की षुरुवात की बात है तो साल 1994 में विजय मिश्रा डीघ ब्लाक के कवलापुर से बीडीसी चुना गया और धन व बाहुबल के बूते प्रमुख चुन लिया गया। पत्नी रामलली मिश्रा को जिजला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया, भतीजा मनीष मिश्रा को प्रमुख। लेकिन उस दौरान किसी को भनक तक न थी कि रुंगटाकांड का आरोपी व सरिया लदी ट्रक लूटने के आरोप में कोलकाता में जेल काटने वाला अपराधी उनके जिले में अपनी जड़े जमाकर जरायम की दुनिया का नेटवर्क फैला रहा।
पूर्वमंत्री नंदगोपाल नंदी पर आरडीएक्स विस्फोटक से प्राणघातक हमला हो या कालीन उद्यमियों, बायर एजेंटो से वसूली का हो या भूमि विवाद में बिहार के एक जज द्वारा सुरियावां थाने में मुकदमा दर्ज कराने का सभी आरोप उसके दौलत व खाकी-खादी गठजोड़ के आगे तास के पत्ते की तरह बिखर गए। और जिस किसी ने उसके खिलाफ आवाज उठायी उन्हें फर्जी मुकदमों में इतना उलझा दिया वे भी चुप बैठ गए। बीएसए कार्यालय में दिनदहाड़े घुसकर एबीएसए रितुराज को मारा गया, निर्माणाधीन अस्पताल ठेकेदार से रंगदारी व कईयों से फिरौती वसूली गयी। लेकिन सब उसके गुंडई व सत्ता की धौंस के आगे निरर्थक साबित हुए। चुनाव में तो नारा लगता था ‘दगा किसी का सगा नही‘। यहां तो ‘ब्राह्मण ही ब्राह्मण का हत्यारा है‘। लेकिन उसके दौलत के आगे यह सिर्फ नारे तक ही सिमट कर रह जाता, वोट में तब्दील नहीं हो पाया। हालांकि क्षेत्रीय ब्राह्मणों के बीच तिहरेकांड में मारे गए सूर्यनारायण षुक्ला के हत्यारे उदयभान सिंह उर्फ डाक्टर सिंह को सजा दिलाने का दंभ भले ही भरता हो, लेकिन पूरा जिला जानता है कि लड़ाई वर्चस्व व ठेकेदारी की रही। डाक्टर को सजा दिलाकर पूरे जनपद में सड़क से लेकर बालू खनन तक पर कब्जा कर लिया गया। प्रतिदिन अवैध तरीके से 150-180 ट्रक बालू इब्राहिमपुर-बिहरोजपुर से विजय मिश्रा फिलिंग टोकन से जाता रहाद्व लेकिन प्रषासन मौन रहने में ही अपनी भलाई समझती थी।
पुलिस रिकार्ड के मुताबिक विजय मिश्रा पर लूट, हत्या, डकैती, चोरी आदि के कुल 71 मामले दर्ज है। फिर भी वह भदोही में रहकर अपने काले कारनामों के बूते सपा के षीर्ष नेता प्रोफेसर साहब के जरिए सत्ता के करीब पहुंच गया। और छत्रछाया मिलने पर पूर्वांचल के ईनामी माफियाओं का षारणदाता बन बैठा। साल 1999 में गोपीगंज पड़ाव के पास सूर्यनारायण शुक्ला सहित 3 लोगों की हत्या के मामले को उछालकर न सिर्फ ब्राह्मण समाज में अपनी पैठ बना ली, बल्कि बालू खनन से लेकर सड़कों के ठेकेदारी आदि पर एकछत्र राज कर रहे डाक्टर सिंह को सजा कराकर उनके पूरे कामकाज पर अपना कब्जा जमा लिया। फिर क्या धनबल व बाहुबल के बूते विजय मिश्रा इस जनपद के गांधी कहे जाने वाले रामरति बिन्द का अंगुली पकड़कर राजनीति में इस कदर गोता लगाया कि न सिर्फ पंचायत सदस्य, जिला पंचायत अध्यक्ष के बाद लगातार तीन बार विधायक चुना गया बल्कि समाजवाद की दुहाई देने वाले मुलायम सिंह यादव को भी पिछड़ों से मोह भंग कराने में कामयाब हो गया। सियासी दांवपेच के बूते फूलन देवी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में करीबी व अगुवा बनकर वह पहले रामरति बिन्द, षारदा बिन्द के बाद छोटेलाल बिन्द को हरवाकर नेता जी को यह कहकर समझाने में सफल हो गया कि अब ब्राह्मण ही यहां से चुनाव जीत सकता है। इस फार्मूले से वह प्रोफेसर साहब के रहमोकरम पर अपनी बेटी सीमा मिश्रा को टिकट दिलाने में सफल हो गया। यह अलग बात है कि मोदी लहर में उसकी दौलत धरी की धरी रह गयी। अब तो हाल यह है कि भदोही की राजनीति में क्या मजाल जो विजय मिश्र से कोई टकराए। लंबे समय तक सपा की सरपरस्ती में रहने वाले विजय मिश्र अभी निर्दलीय विधायक हैं। सत्ता का संरक्षण पाने को लालायित हो उन्होंने पिछले वर्ष एक कार्यक्रम में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के करीब जाने की कोशिश की। हाथ में महंगे उपहार के साथ वह मंच पर चढ़े ही थे कि सीएम ने हाथ से उपहार झटक दिया। उन्होंने आंखें तरेरी और मिश्र बेआबरु हो नीचे उतर आए। भदोही के ज्ञानपुर से वर्ष 2017 में निषाद पार्टी से विधायक चुने जाने के बाद राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में वोट देने पर निषाद पार्टी ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
अब जब विकास दुबे की ऐनकाउंटर के बाद एक-एक कर खाकी-खादी का गठजोड़ योगीराज में टूट रहा है तो लपेटे में बाहुबलि विधायक विजय मिश्र भी आ गए है। अपने को फंसता देख अब फिर ब्राह्मण-ब्राह्मण चिल्लाने लगा है और खतरा भी ब्राह्मण नेता पूर्व मंत्री राकेशधर त्रिपाठी, रंगनाथ मिश्र व भदोही के विधायक रवींद्र नाथ त्रिपाठी से ही है। योगी को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दांव चलते हुए इनसभी को बसपाइयों की गैंग में शामिल होना बताने लगाहै। मकसद है जिला पंचायत पर एकबार फिर से काबिज होना। लेकिन चैकाने वाली बात यह है कि गुंडागर्दी, आतंक एवं माफियाओं को पनाह देने वाली सपा का यूपी से जब सफाया हो गया, तो वह अपना लाखों-करोड़ों का साम्राज्य बचाने के लिए भाजपा में पिछले दरवाजे से आने को बेताब है। जबकि उसे संरक्षण देने के चक्कर में भाजपा के सांसद की किरकिरी पहले ही हो चुकी है। भदोही में कौन सपा से लड़ेगा, किसे पार्टी से निकाला जायेगा, इसे मुलायम नहीं वो खुद तय करता था। उसके कहने पर ही मुलायम ने भदोही के कद्दावर नेता एवं दो बार सांसद रहे रामरति बिन्द को खो दिया। उसी के कहने पर ही रामरति बिन्द की जगह मुलायम ने पहले शारदा बिन्द, फिर छोटेलाल बिन्द और उसके खुद की बेटी सीमा मिश्रा को लोकसभा प्रत्याशी बनाया, लेकिन तीनों बार पार्टी को मुंह की खानी पड़ी। हाल यह हुआ कि कभी सपा गढ़ रहा भदोही से जब उसके आतंक से पार्टी का जनाधार लगतार कम होता गया, तो कमान मिलने के बाद अखिलेश यादव ने उसे बाहर का रास्ता तो दिखा दिया।
-सुरेश गांधी-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें