विषय पर पहुंचने से पहले प्रथमतः प्राचीनतम समय से जुड़ना होगा। भारतीय उप-महादीप मे मनुष्य के इतिहास को समझना होगा। हमे यह जानना होगा कि भारतीय उप-महादीप में मुसलमानों के पूर्वज मूलतः कौन थे ? हमे यह भी जानना होगा कि मुसलमानों के पूर्वज मूलतः भारत-भूमि के रहै हैं या कहीं बाहर से आ कर विस्थापित किए गए थे ? हमे यह भी जानना होगा कि मूलतः इनका धर्म क्या था ? मूलतः इनकी भाषा क्या थी ? इनकी संस्कृति क्या थी ? क्या किन्ही कारणों से हिन्दू से मुस्लिम मे इनका परिवर्तन हुआ है ? सर्व प्रथम संक्षिप्त में हमे यह समझना होगा कि हिन्दू का उद्भव कब से हुआ ? हिन्दू होने का तात्पर्य क्या है ? भारत-भूमि का विस्तार कहां तक था ? भारतीय उप-महादीप के मूल-निवासी कौन थे ? तभी हम समझ सकते हैं कि विदेशी आक्रंताओं ने भारत मे आ कर कत्लेआम, अत्याचार किए और जो हमारे ही हिन्दू भाई थे उनका धर्म परिवर्तन करा कर चले गए।
सर्वाधिक प्राचीनतम हिन्दू-धर्म है:-
सम्पूर्ण पृथ्वी का सब से प्रचीनतम सनातन हिन्दू धर्म है। दुनिया की सब से प्राचीन संस्कृति हिन्दू-धर्म की है। सिन्धु घाटी सभ्यता मे मिले हिन्दू धर्म के अनेकों चिन्ह, देवी माता की मूर्तियां, भगवान शिव पशुपति, अनेकों देवताओं व शिवलिंग की मूर्तियां मिली थी। सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग संस्कृत से मिलती-जुलती भाषा बोलते थे और इन्हे आर्य कहा जाता था तथा इनका मूल स्थान भारत ही था। विश्व की सब से पुरानी सभ्यता का देश भारत है। संस्कृत प्राचीन भारत की सर्वश्रेष्ठ समृद्धशाली भाषा रही है। संस्कृत भाषा से ही महान विचार, चिन्तन व अध्यात्म की उत्पŸिा हुई है। आर्य का अर्थ है सर्वश्रेष्ठ। आर्योें की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहा गया है। इनमें आर्य शब्द का अर्थ सभ्य एवं सुसंस्कृत होने से रहा है। मैक्सवूलर ने आर्यों का मूल निवास मध्य एशिया को माना है और आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता को वैदिक सभ्यता कही गई है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी। आर्यों का ध्येय यह रहा है कि सम्पूर्ण दुनिया को श्रेष्ठ, सभ्य व सुसंस्कृत बनाएगें। पौरांणिक मान्यताओं के अनुसार हिन्दू धर्म को 90 हजार वर्ष पूर्व का माना जाता है। हिन्दुओ के धर्मिक ग्रन्थ वेद सर्व पूज्य हैं जिनकी रचना ईशा से हजारों वर्ष पूर्व की है। वेद, उपनिषद ग्रन्थ अनादि नित्य ऋषिंयों द्वारा हजारों वर्ष पूर्व रचे गए थे। ईशा से 9057 वर्ष पूर्व स्वायंभुव मनु, 6673 वर्ष ईशा पूर्व वैवस्वत मनु हंुए। भगवान श्रीराम का जन्म 5114 वर्ष ईशा पूर्व और श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईशा पूर्व का माना जाता है। वैष्णव धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री कृष्ण को माना जाता है। रामायण, महाभारत व पुराणों मे हजारों वर्ष पूर्व की सूर्यवंशी एवं चन्द्रवंशी राजाओं तथा उनकी वंश परम्पराओं का उल्लेख है। आदि शंकराचार्य जी, गुरू गोरखनाथ जी, सम्राट विक्रमादित्य व उनके भाई भर्तहरि और पिता गन्धर्व सेन, आचार्य चाणक्य, सम्राट चन्द्रगुप्त, मौर्य वंश के संस्थापक आचार्य चाणक्य के सहयोग से चन्द्रगुप्त मौर्य हुए थे और उनका जन्म 345 ई.पू. में हुआ था। सम्राट हर्षवर्धन का जन्म 590 ईश्वी मे हुआ था। सम्राट ययति 9000 वर्ष पूर्व हुए थे और माना जाता है कि इनके पांच पुत्रों का सम्पूर्ण पृथ्वी पर राज्य था।
भारत को प्राचीन ऋषि मुनियो ने ’हिन्दुस्थान’ नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश ’हिन्दुस्तान’ है। बृहस्पति आगम के अनुसार, ’’हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।’’ अर्थात हिमालय से प्रारम्भ हो कर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक देव निर्मित ’हिन्दुस्थान’ है। ’हिन्दू’ शब्द ’सिन्धु’ से बना है। सिन्धु नदी मानसरोवर से निकल कर लद्दाख एवं पाकिस्तान (बर्तमान समय का) से बहती हुई समुद्र मे मिलती है। हिमालय का प्रथम अक्षर ’हि’ व इन्दु का अन्तिम अक्षर ’न्दु’ से बना हिन्दु। उस समय-काल मे केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था और इसलिए भारत मे सभी के लिए हिन्दू धर्म ही था। तद्नुसार उत्तर में हिमालय से लेकर समुद्र तट तक फैला उप-महाद्वीप भारत कहा जाता है। यूनानियों ने भारत को इंण्डिया व मध्य-कालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने हिन्द या हिन्दुस्तान सम्बोधित किया है। प्राचीन काल में दुनिया के अन्दर एक मात्र भारतीय संस्कृति थी। भारत के हजारों वर्ष पूर्व के प्राचीनतम् ग्रन्थ वेद, पुरांण, उपनिषद, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवतगीता, मनुस्मृति आदि हैं। रोम में अग्नि व सूर्य की पूजा प्रचलित थी, ग्रीक के लोग मूर्ति पूजक थे और यज्ञ करते थे। इंडोनेशिया में 20 हजार के नोट पर भगवान गणपति का चित्र चिहिन्त होता रहा है और यहां की एयरवेज का नाम गरुड़ रहा है। यहां महाभारत व रामायण का मंचन होता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोंण से प्राचीन भारत, मध्य-कालीन भारत व आधुनिक भारत के नाम से जाना जाता है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. कपिलवस्तु के लुम्बिनी में हुआ, जैन धर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे एवं 24वें अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म 540 ई.पू. कुंण्डग्राम (वैशाली) में हुआ था। भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहन जोदड़ो था। सिन्धु सभ्यता 1750 ई.पू. की मानी गई है और सिन्धु सभ्यता की खोज रायबहादुर साहनी ने की थी। यहां के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानते थे, वे वृक्ष पूजा व शिव पूजा करते थे। स्वास्तिक चिन्ह से सूर्योपासना का अनुमान लगता है। भारत उप-महाद्वीप का सबसे ताकतवर राजा सम्राट अशोक थे। सम्राट अशोक ने लगभग सम्पूर्ण भारत, दक्षिंण एशिया, अफगानिस्तान, बंगाल, आसाम, मैसूर तक अपने राज्य का विस्तार किया था। सम्राट अशोक को जब युद्ध की बुराईयों का ज्ञान प्राप्त हुआ तो उन्होने आत्म-शान्ति के लिए बौद्ध धर्म अपनाया था और भारतीय संस्कृति के उदार चरित्र का उद्धरण स्थापित किया था। पुष्यमित्र, शुंग (ब्राह्मण) जिसने शुंग वंश की नींव स्थापित की थी और अपनी राजधानी विदिशा को बनाया था। प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्य भट्ट ने ’जीरो’ की खोज की थी। कनिगम सर की पुस्तक ’दि एन्सीन्ट जियोग्राफी आॅफ इंण्डिया’ में उल्लेख किया गया है कि भारत की उत्तरी सीमायें गजनी तक फैली हुईं थीं और गजनी से तात्पर्य अफगानिस्तान का वह भाग है जो ईरान में दबा हुआ है। यह कल्पना की जा सकती है कि भारत की सीमायें कहां-कहां तक फैली हुईं थीं। आदिकाल से भारत भूमि हिन्दूओं की जन्म स्थली रही और हिन्दू राजाओं का शासन था। हिन्दू धर्म सनातन है, अनादि व आदि काल से हैं।
हिन्दू-धर्म का संक्षिप्त परिचय:-
हिन्दू की धारणा, ’वसुदेव कुटुम्बकम्’ की है। अर्थात सम्पूर्ण विश्व हमारा परिवार है, सभी हमारे बन्धु हैं, कोई भी पराया नहीं है। हिन्दू-धर्म का चिन्तन है कि यदि सभी मनुष्य सम्पूर्ण विश्व को एक कुटुम्ब के रूप मे देखें और एक-दूसरे को ठीक उसी भावना से प्रेम करें, जैसे कि परिवार के सदस्यों के प्रति लगाव रहता है, तो यह विश्व एक प्रेम के सूत्र मे बंध सकता है। इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर रहने वाले जीव जन्तु एक ही परिवार के हिस्सा हैं। मूलतः धारणा यह है कि हम सभी के प्रति उदार हैं और यह अपेक्षा है कि सभी हमारे प्रति भी उदार हों, लेकिन हम पर कोई अत्याचार करे तो उसे सुधारने का भी हमारा कर्तव्य है। ‘‘धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षतिरक्षितः’’ अर्थात जो धर्म की रक्षा करेगा तो धर्म उस व्यक्ति की रक्षा करेगा और जो व्यक्ति धर्म को नष्ट करेगा तो धर्म उस व्यक्ति का विनाश कर देगा। चिन्तन यह है कि व्यक्ति का ऐसा कर्म जो अधार्मिक है, उससे व्यक्ति का नाश हो जाता है। हिन्दुओं मे धर्म से तात्पर्य व्यक्ति के कर्तव्य व उसके नैतिक मूल्यों से भी है। हिन्दू संस्कृति मे धर्म का क्षेत्र संकुचित और संकीर्ण नहीं है बल्कि विस्तृत है। व्यापारी के व्यापार का धर्म, सेना मे देश की रक्षा का धर्म, न्यायालय मे न्याय करने का धर्म, व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन मे पति का धर्म, पत्नी का धर्म, पुत्र का धर्म, पिता का धर्म, माता का धर्म, बहिन का धर्म, भाई का धर्म। हिन्दू संस्कृति मे कर्तव्य व आचरण के रूप मे धर्म की मान्यता है। हिन्दुओं मे राजा को भी धर्म से शासित होना बताया गया है। महर्षि वेद व्यास ने राजा का धर्म बताया है कि जिसके राज्य मे प्रजा इस तरह निर्भय होकर रहै जिस तरह एक पुत्र अपने पिता के घर मे रहता है, वही राजा सर्वाधिक श्रेष्ठ है। राजा का धर्म सिर्फ यही नहीं है कि वह प्रजा मे शांति स्थापित करे बल्कि उसकी जिम्मेदारी है कि वह प्रजा को सब प्रकार के कष्टों से बचाये। हिन्दू धर्म-शास्त्रों के अनुसार जिस राजा के राज्य मे उसके कर्मचारी प्रजा के धन को छीन लेते हैं तो ऐसे कर्मचारियों का सर्वस्व लेकर राज्य का राजा, उन्हें देश से बाहर निकाल दे। राजा के धर्म के बावत रामचरितमानस मे कहा गया है, ‘जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवश्य नरक अधिकारी।।’
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार धर्म का तात्पर्य ही यह है कि व्यक्ति के ऐसे गुंण जो धारित करने योग्य हैं, वहीं धार्मिक है। अर्थात सद्गुंणों वाला व्यक्ति धार्मिक है एवं कदाचरण, अवगुंणी व दुष्ट अधार्मिक है। मनु संहिता में धर्म के दस लक्षण बनाये गये हैं, ‘‘धृतिः क्षमा दमोड्स्तेयं शैचमिन्द्रय निग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्।।’’ अर्थात धैर्य, क्षमा, निर्विकार, लोभशून्यता, शुद्धि, इन्द्रियों को वश में रखना, कर्मज्ञान, विद्या, सत्य एवं अक्रोध धारण करने वाला व्यक्ति धार्मिक है। ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करने वाला आस्तिक भी हिन्दू है और नास्तिक भी हिन्दू है। अतिक्रमण किसी की भावनाओं व चिन्तन पर नहीं है। हिन्दुओ मे सैद्धान्तिक अतिक्रमण स्वीकार्य नहीं है। हिन्दू धर्म का प्रसिद्ध सूत्र है, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुख भाग भवेत’ अर्थात सभी लोग सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी का मंगल हो, कोई भी दुखी न हो और चारों ओर शान्ति का साम्राज्य हो। ऐसी धारणा के साथ हिन्दू-धर्म का स्तम्भ मजबूती से जमा हुआ है। मानवाधिकारों का मूल चिन्तन ही सबके सुख और नैसर्गिक स्वतंत्रता से जुड़ा है, जिसमें व्यक्ति की सामाजिक आर्थिक स्वतंत्रता और सम्पन्नता की कल्पना समग्र स्वरूप में की गयी है। हिन्दू धर्म शास्त्र में ईशावास्योपनिषद का द्वितीय सूत्र कहता है, ‘ईशा वास्य मिदं सर्व यात्कींच जगत्याम जगत त्येन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधा कस्य स्विद्धनम्।’ अर्थात इस संसार में जो भी चल व अचल सम्पत्ति है, वह सब की सब परमात्मा के स्वामित्व की है और इसका भरपूर उपभोग त्याग की भावना के साथ करो। हमारी अर्थव्यवस्था को सन्तुलित बनाये रखने का यह सूत्र हमारे प्राचीनतम अर्थ-तन्त्र का उद्धरण है। इस सूत्र को व्यवहारिक जीवन में यदि ग्रहण किया जाए तो आर्थिक अव्यवस्था के कारण मानवाधिकारों का हनन् रूक सकेगा। हिन्दू वेद पुराणों के अनुसार व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष से वर्गीकृत किया गया है। धर्म को दृष्टि मे रखते हुए अर्थाजन करना है। आर्थिक सम्पन्नता को समग्र स्वरूप में समाज के अन्दर देखना है। सम्पूर्ण मानव जाति आर्थिक अभाव में नहीं रहे, ऐसी परिकल्पना की गयी है। ‘काम’ की पूर्ति, यानि कि आनन्द की पूर्ति, सभी को सभी प्रकार से सुख देने का ध्येय है और अन्ततः ‘मोक्ष,’ अर्थात जीवन की अन्तिम समाप्ति के साथ मुक्ति प्राप्त होने का उद्देश्य, जिसमें इच्छारहित होने का भाव है।
भारत मे इस्लाम का उद्भव:-
देश की आम जनता में एवं मुस्लिमों में एक प्रश्न अवश्य प्रकट होना चाहिए कि भारत एवं पाकिस्तान के मुसलमानों का उद्भव कब व कैसे हुआ ? भारतीय उप-महादीप के मुस्लिम कहीं बाहर से नहीं आये हैं। इतिहास गवाह है कि जो विदेशी आक्रांता बाहर से आये थे, उन्होंने भारत में लूट-पाट की थी और भारतीय उप-महादीप के हिन्दुओं पर अत्याचार करते हुये उन्हे मुसलमान बनाया गया था। तत्समय जो हिन्दू डर और अत्याचार को बर्दाश्त नहीं कर सके थे, वे इस्लाम धर्म स्वीकार करते चले गए और उन्हीं के वंशज आज के समय के भारत की मुस्लिम आवादी है। परन्तु हिन्दू समाज में कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने न तो मुगलों का निर्देश माना और न ही वे मुस्लिम मज़हब में परिवर्तित हुये थे। उन पर भारी से भारी अत्याचार हुये थे, उन्हाने संघर्ष किया, और युद्ध किए थे। इस संदर्भ में बन्दा-बैरागी, भाई मतिदास आदि अनेकों के प्रसंग इतिहास के साक्षी हैं। हजरत मोहम्मद साहब का जन्म 570 ई. मक्का में हुआ था, वह इस्लाम धर्म के संस्थापक थे और उनकी मृत्यु 8 जून सन् 632 ई. में हुई थी। उनकी मृत्यु के पश्चात् इस्लाम सुन्नी व शिया पंथो में विभाजित हुआ। सुन्नी का विश्वास सुन्ना में हैं और सुन्नत से तात्पर्य मोहम्मद साहब के कथनों व कार्यों के विवरण से है, अर्थात् उनके अनुसरणकर्ता। अली की शिक्षाओं में शिया विश्वास करते हैं, जो मोहम्मद साहब के न्याय सम्मत् अधिकारी माने जाते हैं। मोहम्मद साहब के दामाद अली थे और अली की हत्या सन् 661 में व अली के दामाद हुसैन की हत्या सन् 680 में करबला में हुई थी।
लेख की विषय वस्तु पर चर्चा करने के साथ यह ध्यान रखना होगा कि भारत से तात्पर्य पाकिस्तान व बांग्लादेश से भी है। प्रश्न यह है कि भारत में मुसलमानों की उत्पत्ति कब व कैसे हुई ? क्या यहां के सभी मुस्लिमों के पूर्वज मूलतः हमारे हिन्दू भाई थे ? क्या इनमें वही खून है जो हिन्दूओं में है ? क्या किन्हीं विषम व विपरीत परिस्थितियों के कारण इन्होंने हिन्दू धर्म से परिवर्तन करके इस्लाम मज़हब को कुबूल कर लिया था ? अपने इतिहास को पढ़ने का लाभ यह होता है कि हम अतीत में हुई अपनी भूलों को दोहराने से बचें। पहले हमें यह समझना होगा कि भारत भूमि पर प्राचीन समय में बाहर से आये आक्रांताओं ने किस प्रकार यहां के हिन्दुओं पर अत्याचार किये थे। भारत में जितने भी मुसलमान निवासरत् हैं, उनके पूर्वज अरब से नहीं आये थे बल्कि हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करा कर उन्हें मुलसमान बनाया गया था। जब अरब से सिन्ध पर आक्रमण किया गया था, तो वहां से आए निरंकुश मुस्लिम शासकों व उनकी सेना ने हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन की नीति बनाई थी, जिसके तहत हिन्दुओं को आतंकित किया जाता था, उनके मनोबल तोड़ने के लिये पाठशालायें व मन्दिर तोड़े जाते थे और उनके स्थान पर मस्जिद बना देते थे। हिन्दूओं का सार्वजनिक क्रूरतापूर्वक बध करते थे, आंखे फोड़ देते थे, सिर कटवा देते थे, मन्दिरों में गाय कटवाते थे, मन्दिरों की मूर्तियों को मस्जिद की सीढ़ियों पर लगाते थे। इस्लाम धर्म कबूल करने के लिये जिजिया कर लगाना, हिन्दूओं को कारागार में डालना युद्ध में पकड़े गये सैनिकों, बच्चों, स्त्रियों को हिन्दु से मुस्लिम धर्म परिवर्तित कराना, हिन्दूओं के त्यौहारों, धार्मिक जुलूसों पर प्रतिबंध लगाना, तीर्थ यात्रा पर कर लगाना और उनको गुलाम बनाकर बेंचना व उनसे निम्न स्तर के कार्य कराना तथा इस सब के पीछे मुसलमान बनने को मजबूर करने का उद्देश्य था।
सन् 636 से सन् 712 ईस्वी तक अरबों ने सिन्ध पर 8 आठ बार असफल आक्रमण किए गए थे। सिन्ध की सीमा लाखों अरबों का कब्रिस्तान बन गई थी। नवां आक्रमण सन् 712 में 600 घुड़सवारों के साथ मोहम्मद कासिम ने किया था और उस समय के राजा दाहिर ने उससे युद्ध किया था लेकिन धोखे से घात लगाकर राजा दाहिर की हत्या कर दी गई थी। मोहम्मद कासिम ने उस समय 6000 हिन्दूओं की हत्या कर दी थी। इसके बाद लाखों हिन्दूओं को मुसलमान बनने हेतु मजबूर किया गया था। जो हिन्दू अपना धर्म परिवर्तित नहीं करते थे, उन्हें मारा-पीटा जाता था, उनकी औरतों, लड़कियों को गुलाम बनाया जाता था, बलात्कार किया जाता था। परिणामतः हिन्दू परिवर्तित होकर मुसलमान बनाए जाते रहै। भारत पर दूसरा भंयकर आक्रमण सन् 1000 में मेहमूद गजनवी ने किया था और उसने ढाई लाख दीनार तत्समय के राजा जयपाल से लिये थे। इसके बाद 1004 में उसने पुनः भारत पर आक्रमण किया था और अपने साथ लाये मुल्लाओं के द्वारा लाखों हिन्दूओं को मुसलमान बनवाया था। मेहमूद गजनवी लाखों मन सोना व कई करोड़ सिक्के लूटकर चला गया था। मेहमूद गजनवी का सचिव उतवी ने ’’तारीखे यामिनी’’ में लिखा है, ’नदी का रंग काफिरों के खून से सुरख हो गया, सुल्तान इतना धन लेकर लौटा कि उसको गिनना कठिन है।’ सन् 1013 में मेहमूद गजनवी ने नन्दना पर आक्रमण किया था और मन्दिरों को नष्ट किये, हिन्दूओं का धर्म परिवर्तन कराया उतवी लिखता है, ’सुल्तान अथाह सम्पत्ति लेकर लौटा।’ सन् 1016 में मेहमूद गजनवी ने यमुना नदी पार की और बुलन्दशहर के वरन नामी नगर से 10 लाख दिरहम बसूले, वहां से मथुरा के पास मधुवन गया और इसके बाद मथुरा में लूटपाट की थी। यह लूटमार 20 दिनों तक चली थी। सैकड़ों सोने व चांदी की मूर्तियां लूट ली गईं थीं, मथुरा में भी हिन्दूओं पर अत्याचार कर धर्म परिवर्तन कराया गया था। इसके बाद उसने कन्नौज में 10 हजार मन्दिर तोड़े व लूटपाट की, वहां पर हिन्दूओं का कत्लेआम किया गया था और धर्म परिवर्तन कराया गया। मेहमूद गजनवी ने सितम्बर 1025 में सोमनाथ मन्दिर पर हमला किया था और 50 हजार से अधिक हिन्दूओं का कत्ल कराया व उसने दो करोड़ दीनार मूल्य की सम्पत्ति लूट ली। (उद्धृत पुस्तक- ’मुस्लिम राजनीतिक चिन्तन और आकांक्षाए’) इसके बाद मोहम्मद गौरी आया और इतिहासकार निजामी के अनुसार उसने अजमेर में व बनारस में 1000 मन्दिर तोड़े थे। इतिहासकार इब्न असर लिखता है, ’बनारस में हिन्दूओं का कत्ल भयानक था।’ मुख्य कार्य हिन्दूओं को इस्लाम धर्म में परिवर्तन कराना था।’ सन् 1193 में कुतुबद्दीन ऐबक आया और उसने अलीगढ़ (कोल) में हिन्दूओं का बिद्रोह दबाया और उनके सिर काटकर मीनारों पर लगाये थे, दिल्ली में 27 जैन मन्दिरों को नष्ट किया था। सन् 1196 में गुजराम के राजा रामकरण पर कुतबुद्दीन ऐबक ने हमला किया था और 50 हजार हिन्दूओं का कत्ल कराया उन्हें मुसलमान बनाया गया व लूटपाट की थी। सन् 1202 में कलिंजर पर आक्रमण किया गया, मन्दिर तोड़े गए और उन पर मस्जिदें बनवाई गईं थीं। हिन्दूओं के गले में गुलामी के पट्टे डाले और इस्लाम कबूल करने को बाध्य किया था। सन् 1321 में जलालुद्दीन खिलजी आया और उसने रणथम्भौर दुर्ग पर चढ़ाई की थी, हिन्दू मन्दिरों को नष्ट किया था। खिलजी वंश के पतन के पश्चात् सन् 1360 में फिरोज शाह तुगलक ने जगन्नाथ पुरी के मन्दिर को ध्वस्त किया था, हिन्दुओं को बलपूर्वक मार-काट कर मुसलमान बनाया गया था। सन् 1399 ईस्वी में भारत में तैमूर का भयानक का आक्रमण हुआ। उसने अपनी जीवनी में लिखा है कि उसका उद्देश्य हिन्दुओं का इस्लाम में धर्म परिवर्तन करा कर मुसलमान बनाना और उनकी धन-दौलत को लूटना था।
मुगल साम्राज्य के रुप में बाबर ने भारत पर हमला किया था। उसने रामजन्म भूमि पर बने मन्दिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई। वह युद्धबंदियों के सिर कटवाता था। अफगानिस्तान में बाबर का एक टूटा-फूटा मकबरा है, कहा जाता है कि अफगानिस्तान के मुसलमान बाबर को एक विदेशी लुटेरा समझ कर उसके मकबरे का रख-रखाव नहीं करते हैं और उनके लिये वह आदर का पात्र नहीं था। विदेशी आक्रांताओं के द्वारा किए गए अत्याचारों मे सर्वाधिक हत्याएं उस समय हुईं जब बाबर के कार्यकाल मे श्रीराम जन्म-भूमि पर निर्मित मन्दिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई गई थी। इस सन्दर्भ मे आगे वर्णित है। शेरशाह सूरी के संदर्भ में कहा जाता है कि वह हिन्दुओं पर अत्याचार करने के लिए नहीं निकलता था। हुमांयु को शेरशाह सूरी का बिरोधी माना जाता था। अकबर ने यह समझ लिया था भारत में यदि राज्य करना है तो हिन्दुओं और विशेषकर राजपूतों का सहयोग लेकर मित्रता करनी होगी। जो मुस्लिम अमीर थे, वे स्वार्थवश अकबर की राज्य-सत्ता के बिरुद्ध मंत्रणा करते रहते थे और इसी कारण अकबर राजपूतों के शौर्य व स्वामी-भक्ति पर मुग्ध था। अकबर ने 1568 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। महाराणा प्रताप ने अकबर को लोहे के चने चबवा दिये थे। कहा जाता है कि तत्समय हिन्दू आदिवासियों ने सर्वाधिक सहयोग महाराणा प्रताप का किया था। जब राजपूताने के अधिकांश राजाओं ने अकबर की आधीनता स्वीकार कर ली थी तब अकेले महाराणा प्रताप ही थे जिन्होंने मेवाड़ की सुरक्षा में अन्तिम स्वांस तक समर्पण नहीं किया था। महाराणा प्रताप की माता बेणीजी बहुत स्वाभिमानी, निर्भीक, बहादुर और वलिष्ठ थीं। मानसिंह ने भले ही मजबूर होकर अकबर का साथ दिया था। कहा जाता है कि मानंिसह की बहिन जोधाबाई का विवाह अकबर से हुआ था, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि मानसिंह ने अपनी बहिन जोधाबाई को छिपा लिया था और बड़ी चतुराई से जोधाबाई की बजाय अपने ही दीवान वीरमल की पुत्री पानबाई, जो जोधाबाई की हमशक्ल थी, को अकबर के साथ ब्याह दिया था। (उद्धृत, उदयपुर से प्रकाशित 01 जून 2019 का समाचार-पत्र ’शब्द रजन’) अबुल फजल अपने अकबरनामा में उल्लेख करता है कि 30 हजार हिन्दुओं को अकबर ने कत्ल कर दिये थे और क्रूरता का यह कलंक अकबर पर लगा रहा। जहांगीर ने गद्दी संभालते ही अपने पिता की नीतियां बदल दीं। जहांगीर आलसी, क्रूर और शराबी था उसने सिक्खों के गुरु अर्जुन सिंह का कूरतापूर्वक बध कराया था। कंगड़ा के हिन्दू दुर्ग में उसने गाय कटवा कर अपवित्र किया था। शाहजहां के संदर्भ में बताया जाता है कि पिछले शासन में जो हिन्दू मन्दिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ था, उन्हें शाहजहां ने नष्ट करा दिए थे। सन् 1633 में उसने बनारस में 76 मन्दिरों को तुड़वा दिये थे।
औरंगजेब के अत्याचारों को यह भारत भूमि कभी भूल नहीं सकती। गुजरात में सीताराम जौहरी के द्वारा निर्माण कराये गये चिन्तामणि मन्दिर को औरंगजेब ने सन् 1645 में तुड़वाया था और उसके स्थान पर कुब्वतुल मस्जिद बनवाई थी। मन्दिरों को तोड़ने हेतु उसने सन् 1648 में मीर जुमला को बिहार भेजा था। सन् 1670 ईस्वी में मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म-भूमि मन्दिर को तोड़ा गया और उसके स्थान पर मस्जिद बनवाई थी। उसने पुनः हिन्दुओं पर जिजिया कर लगा दिया था और उदयपुर, त्रयम्बेश्वर, नरसिंहपुर, वीजापुर के मन्दिर तुड़वाये थे। टीपू सुल्तान को आधुनिकतावादी लोग धर्म-निरपेक्ष प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं, लेकिन उसने भी हिन्दुओं का कत्ल कराया था और जिन हिन्दुओं ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया, उन पर अत्याचार किये थे। टीपू ने हिन्दू और ईसाईयों को हाथी के पैरों के नीचे कुचलवाया था और जिन्होंने हिन्दू धर्म छोड़कर मुसलमान होना स्वीकार नहीं किया उन्हें फांसी दी जाती थी। सरदार के.एम. पानिकर ने ’भाषा पोषनी’ में टीपू सुल्तान के कुछ पत्र उद्धृत किये हैं। टीपू सुल्तान ने एक पत्र में बट्टूस खां को लिखा था ’क्या तुम्हें मालूम हैं कि मैंने मालावार में महत्वपूर्ण विजय प्राप्त की है और चार लाख से अधिक हिन्दुओं को इस्लाम कुबूल कराया है।’ संक्षिप्त मे वर्णित की गईं अत्याचार, क्रूरता की घटनाओं से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय उप महादीप के मुसलमान कहीं बाहर के नहीं हैं, इनके पूर्वज हिन्दू थे और विदेशी आक्रांताओं के कारण से मजबूरीवश इनके पूर्वजों ने इस्लाम मज़हब स्वीकार किया था। काफिर का तात्पर्य, गैर-मुस्लिम से है अर्थात् इनका कहना है कि इस पृथ्वी पर काफिर नहीं रह सकते और उनकी हत्यायें की जाएं, मारपीट की जाये। इस विषय पर प्रत्येक गैरमुस्लिम का प्रश्न रहता है कि यह तय करने वाले ये कौन हैं कि हमें मार डाला जाए ? उस ऊपर वाले ने तो सभी को एक समान जीवन जीने के लिये पृथ्वी पर भेजा है क्योंकि प्रकृति का स्वभाव है कि सभी एक समान है।
भारत मे हिन्दू शूरवीरों के नाम कभी भी इतिहास मे भुलाए नहीं जा सकते। हिन्दूधर्म व हिन्दुओं की सुरक्षा मे भारत के अनेकों राजाओं ने विदेशी आक्रांताओं को लोहे चने चबवा दिए थे और इनमे 7वीं शताब्दी के राजा दाहिर, 12वीं शताब्दी के पृथ्वीराज चैहान, 15वीं शताब्दी के कृष्णादेवार्या, 16वीं शताब्दी के क्षत्रपति शिवाजी महाराज, 18वीं शताब्दी के बाजीराव पेशवा व अनेकों अनेक ऐसे जांवाजों के बलिदान पर हिन्दूधर्म सुरक्षित रहा है। बन्दा बैरागी ने गुरू तेग बहादुर का सिर काटने वाले जलालुद्दीन का सिर काट कर हत्या का बदला लिया था तत्पश्चात उन्होने सरहिन्द के नवाब वजीर खां का वध किया था। उनके पराक्रम से मुगल बुरी तरह से घबड़ाए हुए थे। लेकिन दिनांक 17 दिसम्बर 1715 को उन्हे पकड़ लिया गया था और फिर उनके पुत्र को मार कर उसका दिल उनके मुंह मे ठूंस देने पर और गर्म चिमटों से उनके शरीर के मांस को काटने पर भी उन्हाने हिन्दू से परिवर्तित हो कर मुस्लिम होना स्वीकार नहीं किया था। दिनांक 9 जून 1716 को हाथी के पैर से कुचलवा कर उनकी हत्या कर दी गई थी। भाई मतीदास का बलिदान रोंगटे खड़े करने वाला है। सतगुरू तेग बहादुर साहब ने अपना दीवान भाई मतीदास को नियुक्त किया था। जब गुरू साहब पिंजड़े मे बन्द थे तब काजी ने भाई मतीदास को मुसलमान होने के लिए मजबूर किया गया। भाई मतीदास ने कहा कि वह अपने गुरू को छोड़ कर जीवित नहीे रहना चाहते हैं और एक दिन तो मरना ही है। अतः भाई मतीदास को आरी से चीर दिया गया था। अन्त समय उन्होने कहा कि मरते समय उनका चेहरा गुरू तेग बहादुर साहब के पिंजड़े की ओर हो, जिससे कि वह आखिरी समय उनके दर्शन कर सकें। सतगुरू तेग बहादुर साहब सिखों के 9वें गुरू थे और उन्होने हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का बिरोध किया था। उनकी वीरता इससे ही प्रकट होती है कि वह 14 वर्ष की आयु मे ही अपने पिता के साथ मुगलों से लड़े और तलवार चलाने मे पारंगत होने का परिचय दिया था। इस्लाम स्वीकार नहीं करने के कारण मुगल शासक औरंगजेब ने सब के सामने उनका सिर कटवा दिया था।
भारत के महान योद्धाओं मे से अद्वितीय, अपराजेय जाति से ब्राम्हण बाजीराव पेशवा का नाम भुलाया नहीं जा सकता। उन्होने राजा छत्रसाल की युद्ध मे मदद की थी। बाजीराव पेशवा का जन्म 18 अगस्त सन् 1700 मे हुआ था, उनके पिता बालाजी विश्वनाथ, छत्रपति शाहूजी महाराज के सेनापति थे और जब उनके पिता युद्ध मे जाते थे तो वाजीराव भी अपने पिता के साथ जाते थे व युद्ध लड़ने मे और घुड़सवसारी मे वह बचपन से ही पांरगत हो गए थे। पिता की मृत्यु के बाद वाजीराव को 20 वर्ष की आयु मे ही उनके युद्ध कौशल को देखते हुए उन्हे सेनापति बना दिया गया था। जब औरंगजेब के दरबार मे वीर शिवाजी अपमानित हुए थे और उसकी कैद से बच कर वह भाग निकले थे, तब उन्होने मुगल साम्राज्य को झुकाने का सपना देखा था। उनके सपने का बाजीराव पेशवा ने पूरा करने का प्रंण लिया था। केसरिया लहराने और हिन्दू स्वराज लाने की मुहिम मे ब्राम्हण पेशवाओं के नाम हमेशा याद रहेंगे। बाजीराव प्रथम को सर्वाधिक शक्तिशाली योद्धा माना जाता है। उन्होने दिल्ली पर चढ़ाई की थी और तीन दिन तक दिल्ली को बन्धक बना कर रखा था, उस समय मुगल बादशाह मोहम्मद शाह की लाल किले से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी और बाजीराव के डर से वह कहीं छिप गया था। उस समय बादशाह भागने वाला ही था कि उसके लोगों ने उसे बताया कि मार दिए गए तो मुगल सल्तनत समाप्त हो जाएगी। अन्ततः बाजीराव अपनी ताकत दिखा कर बापिस हो गए थे। बाजीराव कभी भी युद्ध मे पराजित नहीं हुए और वह मुगलों के खिलाफ हिन्दू राजाओं की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। 40 वर्ष की आयु मे दिनांक 28 अप्रेल 1740 को बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
परिवर्तित मुस्लिमों के सन्दर्भ मे -
भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश में जितने भी मुसलमान हैं, लगभग सभी के पूर्वज अधिकांशतः हिन्दू थे और हिन्दू से परिवर्तित हो कर मुस्लिम हुए हैं। इस सन्दर्भ मे अरब के मुसलमान एवं भारत व पाकिस्तान के मुसलमान के मध्य तुलना की जा सकती है। परिवर्तित मुसलमान पूर्वाग्रह से प्रेरित हो कर अपनी मुसलमानियत को कट्टरता के साथ प्रदर्शित करता है। इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि परिवर्तित व्यक्ति अपने को असली प्रदर्शित करने के लिये ज्यादा जोर से गला फाड़ते हुए अपनी पहचान को स्थापित करना चाहता है। इसलिये एक कहावत है, ’’नया-नया मुसलमान प्याज ज्यादा खाता है’’ अर्थात् भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश के मुसलमान यह प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं कि उनकी मुसलमानियत और कट्टरता पर कोई अविश्वास नहीं करै। कोई उन्हें धर्म-निरपेक्ष समझने की भूल नहीं करै।
वस्तुतः आम अशिक्षित मुसलमान मानसिक रूप से भयभीत रहता है अथवा उसे भयभीत कराया जाता है और इसके पीछे का कारण यह है कि उसमे विवेकशीलता नहीं है अथवा उसकी प्राथमिक शिक्षा मे विवेकपूर्ण निर्णय लेने का पाठ पढ़ाया ही नहीं गया। उसमे तार्किक आत्मबल नहीं है, लौकिक तर्क-शक्ति नहीं है। इसी कारण वे स्वयं को अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली होने का प्रदर्शन करते हैं व समूह में संगठित रहते हैं। जबकि इतिहास गवाह है और सत्य को छिपाया नहीं जा सकता कि इनके पूर्वजों ने भय और आतंक के कारण हिन्दू-धर्म छोड़ कर मुस्लिम होना स्वीकार कर लिया था। पूर्वजों की पृष्ठभूमि भयभीत होने की थी और इसी कारण भारत व पाकिस्तान के मुसलमानों के ज़हन मे अपनी मुसलमानियत के प्रति भय बना रहता है। उस समय के पूर्वजों मे हिन्दू होने पर भय बना रहता था, अतः बेचारे परिवर्तित हो गए और उसी का परिणाम है कि अपने अस्तित्व के प्रति भयभीत रहते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से व्यक्ति मे, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, अन्तर्निहित गुंण यदि भयभीत होने का हो तो प्रत्येक विषम परिस्थिति मे वह प्रतिलक्षित होने लगता है। ध्यान करना होगा, सन् 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों व अफसरों ने भारत की सेना के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया था। अपने हाथों को ऊपर उठाते हुये पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डालते हुये घोषणा कर दी थी कि भारत की सेना से लड़ने की और सामना करने की उनमें हिम्मत व ताकत नहीं है। तत्समय इन 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबन्दियों को भारत सरकार ने बिना शर्त छोड़ दिया था।
चिन्तन का विषय यह है कि यदि हम उच्च आदर्शों, सभी को एक-समान दृष्टि से देखने, नैतिक रूप से सभी के प्रति सुख की कामना से प्रेरित हैं, तो दुनिया की कोई भी शक्ति किसी भी धर्म, रिलीजन, मज़हब को नुकसान नहीं पहु्रचा सकती है। तलवार व आतंक के आधार पर कोई भी धर्म अनुकरणीय नहीं हो सकता। मैं यहां लखनऊ के ज़नाब साहिल कछोछवी के उस पत्र का उल्लेख करना चाहूंगा जो पंजाब केसरी समाचार पत्र ने दिनांक 14 अक्तूबर 2001 को यथावत प्रकाशित किया था और उन जैसे मुस्लिम चिन्तकों के सोच को कट्टरवादी मुसलमान उजागर नहीें होने देते हैं। साहिल ने कहा है कि ’‘चन्द बेईमान और फिरकापरस्त लोगों को छोड़कर हिन्दुस्तान का हर मुसलमान मुल्क से उतनी ही मुहब्बत करता है जितनी दूसरी कौमों का कोई दूसरा शख्स, जो इस मिट्टी का अनाज खाता है, यहां का पानी पीता है, यहां की फ़िजाओं में सांस लेता है, उसके इस मुल्क के लिए कुछ फरायज जरूर है।’’ साहिल आगे लिखते हैं ’‘दाउद, ओसामा, मुशर्रफ या बुखारी जैसे लोग मुसलमान तो क्या इन्सान कहलाने के काबिल भी नहीं हैं, इन्हें न कुरान-पाक की समझ है और न ही हजरत मौहम्मद मुश्तफा (सल्लाहि अल्लैहि वसल्लम) के किरदार से ही कुछ सीख सके हैं।’’ प्रकाशित इसी लेख स्वरूप पत्र में साहिल कहते हैं ’‘जेहाद क्या है ? अपने अन्दर की बुराइयों से जंग ही जेहाद है। आप अपने अन्दर झांके और देखें- (1) कहीं आप पैसे के गुरूर में तो नहीं हैं ? (2) कहीं आप यादे-खुदा से महरूम तो नहीं हो गये हैं, (3) कहीं आपको खौफे खुदा तो नहीं जाता रहा (4) कहीं आप लूट-पाट और पाप की कमाई तो नहीं कर रहे हैं (5) कहीं आप जुर्म तो नहीं कर रहे हैं।’’ साहिल कछोछवि के प्रकाशित इस पत्र से मुसलमान जेहाद के वास्तविक तात्पर्य की सीख लें।
एक सिद्धान्त है कि ’’जो भयग्रस्त है, वही भय के वातावरण का निर्माण करता है।’’ इसी कारण एक गुंण्डा हथियार लेकर चलते हुये प्रदर्शन करता है कि आम-जनता यह जान जाए कि वह हथियार लिये हुये है, अर्थात् बिना हथियार के वह डरपांेक है। इसे ’फियर ओरियेन्टेड टेर्ररिज्म’ कहेगें। एक गुंण्डा अकेले बाहर निकलने की हिम्मत नहीं करता है, उसे 2-4 अपने ही जैसे लोग साथ देने के लिये चाहिए और इसके पीछे का कारण यह है कि वह भयग्रस्त है। अर्थात् गुण्डों की कमजोरी उनकी डरपोंकता होती है, बहादुरी नहीं होती और इसी कारण भयभीत हो कर भागते रहते हैं। परिणामतः वे आतंक के स्वरूप का हथियारों व समूह के माध्यम से प्रदर्शन करते हैं। गुण्डा हो या आतंकी, इनमेे छिप कर अचानक हमला करने की प्रवृति होती है और फिर भाग जाते हैं। इसीलिए इनके हमले को कायराना, कायरतापूर्ण हमला कहा जाता है। इनका सामना शक्ति व सामथ्र्य के साथ जैसे ही और जब भी लागों ने किया अथवा पुलिस या सेना ने किया, तो इनके छक्के छूट जाते हैं। भय और आतंक को, भय व आतंक से ही समाप्त किया जा सकता है। ऐसा कभी नहीं होता कि आतंकी के समक्ष आप हाथ जोड़ का खडे़ हो जाएं या उसके सामने प्रेमगीत गांए अथवा उसे समझाएं और उसका हृदय परिवर्तन करा लें। इससे तो वह यह मान लेगा कि आप डर गए। क्या मोम से तलवार को काटा जा सकता है ? मोम करूणंा है, दया है, पिघलना जानती है। लेकिन तलवार हिंसा है। दुष्ट पर जब प्रेम, दया, करूणंा का कोई प्रभाव नहीं हो तो दुष्ट की हिंसा को हिंसा से ही समाप्त किया जा सकता है। आतंक, गुण्डागर्दी व हिंसा का सामना पुलिस और सेना अपने बल व हथियारों के आधार पर ही तो करती है। अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा का मुकाबला हिंसा से ही तो होता है। लेकिन आम नागरिकों की सुरक्षार्थ शांति स्थापित करने के उद्देश्य से पुलिस व सेना को कानून व प्रशासनिक निर्देश की मान्यता प्राप्त है और इसी कारण इनके एक्शन को हिंसा नहीं कहा जा सकता। कानून मे प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सुरक्षा करने का अधिकार है। अपने अथवा किसी अन्य व्यक्ति के प्रांणों की सुरक्षा, सम्पŸिा की सुरक्षा हेतु हत्यारे की हत्या करना गलत नहीं है और इसी को कानून मे ’राईट टू प्रायवेट डिफेन्स’ कहते हैं, जिसे आई.पी.सी. की धारा 96 से 106 मे वर्णित किया गया है। पुलिस भी तो अपने बचाव मे एन्काऊन्टर करती है।
एक सामान्य जन-धांरणा है कि मुसलमान समूह में हिंसक व गुंण्डागर्दी पर उतारु हो जाता है और अकेले में वह शरीफ है। जबकि इससे उल्टा हिन्दू, समूह में शरीफ हो जाता है और अकेले में उग्र। मूलतः हिन्दू की प्रवृति अनावश्यक रूप से झगड़ा करने की नहीं रहती है और दंगा-फसाद को टालने का प्रयास करता है, वह चाहता है कि समग्र रूप मे शान्ति स्थापित हो। लेकिन वह डरपोंक भी नहीं होता है। तभी तो हिन्दू सेकड़ों वर्षों तक विदेशी आक्रांताओं का सामना करता रहा। लेकिन ’परन्तुक’ का सिद्धान्त सभी पर लागू होता है। आतंकवाद की गतिविधियों के कारण सुधारवादी व स्वस्थ चिन्तन के मुसलमानों का नैतिक बल टूट रहा है और इसके पीछे का भी कारण यह है कि सकारात्मक चिन्तन व राष्ट्रवादी मुसलमानों की आवाज क्षींण होती जा रही है। यद्यपि अब कुछ लोग खुल कर सामने आ रहै हैं। आज आवश्यकता यह है कि राष्ट्रवादी मुसलमानों को एकजुट होकर संगठित होते हुये आतंकवाद, कट्टरवाद के बिरुद्ध आवाज बुलन्द करें। ऐसा नहीं है कि देश में राष्ट्रवादी मुसलमानों की कमी हो। अतः इस सत्यता से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है और अधिकांश मुसलमान स्वीकार भी करते हैं कि इनके पूर्वज हिन्दू थे और आक्रांताओं की क्रूरता के कारण इनके पूर्वज हिन्दू से मुसलमान बन गए थे। बाहर से आये लुटेरे और आक्रांताओं के दमन, लूट-मार, बलात्कार, के कारण भारतीय उप-महाद्वीप के हिन्दू भयग्रस्त हो गये थे और मजबूरीवश उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया था। इसी कारण ये विपरीत परिस्थितियों मे भ्रमित हो जाते हैं, भयभीत हो जाते हैं अथवा राजनीतिक स्तर पर निजी स्वार्थों के कारण इन्हे भयभीत कराया जाता है। प्रश्न तो यह है कि मुसलमान हिंसक होने का प्रदर्शन क्यों करते हैं ? वे यह भी प्रदर्शित करते हैं कि वे शक्तिशाली हैं। वे प्रदर्शित करते हैं कि उनके मज़हब में जो भी शामिल हुआ, वह सुरक्षित है और उसकी वे सुरक्षा भी करते हैं। यह बात कुछ हद तक सही भी है और यही कारण वर्तमान में भी कन्वर्जन हो रहा है।
मेरी अनेकों मुसलमानों से बात हुई और वे मानते हैं व स्वीकार करते हैं कि मूलतः तो उनके पूर्वज हिन्दू ही थे। उन्हें समझाना है और हिन्दूओं को भी समझना होगा कि उनमें उनके हिन्दू पूर्वजों का खून दौड़ रहा है। खेद के साथ कहना चाहूंगा कि हमारे हिन्दू पूर्वजों से कन्वर्टेड हुये इन्हीं मुस्लिम भाईयों को हमने उनके लिए ’घर बापिसी’ का यथा-समय, यथोचित, समुचित सफल प्रयास नहीं किए। क्या यह सच नहीं है कि हिन्दू पूर्वजों से कन्वर्टेड हुए मुसलमान को नकारा गया था, और इसका दोष हमारे तत्समय के कुछ धर्माचार्यों पर भी है कि उन्होंने मुसलमान को अछूत बना दिया था। उन्हे घर बापिसी के रास्ते नहीं दिखाए और प्रेरित भी नहीं किया गया व मुस्लिम कट्टरता के वशीभूत भय से उन्हे हमने सुरक्षा की गारण्टी नहीं दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि कन्वर्टेड मुसलमान कट्टर बनता गया, वे हिन्दू-बिरोधी बन गए, उन्हे मुसलमानियत मे अपनी सुरक्षा, स्वार्थ व राजनीतिक संरक्षण दिखा। तथाकथित मुल्ला मौलवियों और मुसलमानों के राजनीतिक ठेकेदारों ने भी उन्हे खूब डराया है और वे अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहै हैं। आज भी मुसलमान की अहमियत वोट-बैंक होने तक सीमित कर रखी है। राजनीतिक क्षेत्र मे इनके मुल्ला, मौलवी, मुफ्ती इस प्रदर्शन की होड़ मे लगे रहते हैं कि उनके खाते मे मुस्लिम वोट-बैंक है। लेकिन इन्होने मानसिक रूप से मुसलमानों को स्वतन्त्र चिन्तक नहीे होने दिया, शिक्षित नहीं होने दिया और योजनाबद्ध तरीके से अभी भी मुस्लिम युवाओं को भ्रमित किया जा रहा है। डाॅ. शंकर शरण के अनुसार पाकिस्तान मे लगभग 28 हजार मुलहिद हैं व ईरान मे और उसके बाहर रहने वाले ईरानी मूल के मुस्लिमों मे, अमेरिका मे मुलहिदों की बड़ी संख्या है। उनके अनुसार पकिस्तान मे 40 लाख, तुर्की मे 48 लाख, मलेशिया मे 18 लाख लोग नास्तिक हैं। मुलहिद का तात्पर्य है, जो पूर्व मे मुस्लिम थे और बाद मे खुल कर मुस्लिम होना स्वीकार नहीं करते हैं। इसी सन्दर्भ मे आॅस्ट्रªेलियाई लेखक की चार्चित पुस्तक ’दि कर्स आॅफ गाॅड: भाई आई लेफ्ट इस्लाम’ उल्लेखनीय है। पूरी दुनिया के देश विकासशील व विकसित होने की प्रतिस्पर्धा मे हैं। विकास के लिए प्राथमिक है, भेदभावरहित होना। सभी के प्रति एक-समान व्यवहार होना। लेकिन मुस्लिमों की यह धारंणा कि इस पृथ्वी पर काफिर नहीं रह सकते हैं और सिर्फ इस्लाम को मानने वाले ही रह सकते हैं, ऐसा तालिवानी सोच दुनिया के किसी भी विकासशील देश मे स्वीकार्य नहीे हो सकता। इस प्रकार का चिन्तन सामाजिक, शैक्षणिंक, सांस्कृतिक, आर्थिक, प्रत्येक दृष्टिकोंण से पिछड़ेपन व विश्व-समुदाय से मुसलमानों को पृथक करने का कारक है। मूलतः ऐसे ही सोच के लोग गुण्डागर्दी, आतंक को बढ़ावा देते हैं। कोई भी चिन्तन आतंक के आधार पर शास्वत नहीं हो सकता।
मेरे परिचित दो भाई, मोहम्मद व रसूल रहे हैं। वे पिछले 60-70 वर्षों से मेरे परिवार से जुड़े रहे हैं। मोहम्मद का व्यवसाय समारोहों में ’’लक्ष्मी शामियाना हाऊस’’ के नाम से शामियाना लगाने का रहा है। एक दिन मैंने उनसे पूंछा, ’’लक्ष्मी शामियाना हाऊस’’ के नाम से आपका शामियाना क्यों विख्यात है ? इस पर मोहम्मद ने जो जबाव दिया, उसे सुनकर मैं दंग रह गया, वह बोला, ’’लक्ष्मी मेरी परदादी की अजिया सास का नाम रहा है। हमारे पूर्वजों को मुसलमान बना दिया गया था, लेकिन हमारे खून में तो हिन्दू का ही खून है, इसलिये हम ’’लक्ष्मी शामियाना हाऊस’’ के नाम से उनका नाम जीवित बनाए हुये हैं।’’ दीपावली पर अनेकों मुसलमानों के घरों में पुताई, सफाई होते देखी जा सकती है और कदाचित छिप कर पूजन भी होता हो। देवी माता के मन्दिरों में मुस्लिम महिलाओं को दर्शन करते देखा जा सकता है। विवाह कार्यक्रम में बुन्देलखंण्ड की परम्परा के अनुसार हरदौल के चबूतरा पर हिन्दू महिलाएं जाकर पूजन की परम्परा का निर्वाह करतीं हैं और इस पराम्परा का निर्वाह मुस्लिम महिलाओं के द्वारा भी होते हुए देखा जा सकता है। हिन्दुओं को भी दरगाह पर माथा टेकते देखा जा सकता है। मैने स्वयं बचपन मे मोहर्रम के समय सम्मान प्रदर्शित करते हुए ताजियों के नीचे से निकलने का कार्य किया है। इसका मुख्य कारण यह है कि हिन्दू सभी धर्मो का सम्मान करता है। लेकिन धर्म के आधार पर आतंक, आगजनी, हत्याएं करना विश्व के किसी भी देश मे मान्यता नहीं दी जा सकती। यही वह सूत्र है जिसे समझना है और समझाना भी है।
अतः इतिहास की सत्यता को बताते हुये प्रमाणिकता के आधार पर सार्वजनिक रुप से प्रिन्ट मीडिया, टी.वी. चैनलों, फिल्मों, लेखों के माध्यम से यह सत्यता बताना होगी और प्रचारित करना होगा कि भारत व पाकिस्तान के मुसलमानों के पूर्वज मूलतः हमारे हिन्दू भाई थे तथा उन्हें आतंक, बलात्कार, हत्याएं, अत्याचार से भयभीत करते हुए कन्वर्टेड मुसलमान बनाया गया था। इन सभी की रगो मे हिन्दू खून ही है। यद्यपि यह कहना अनुचित नहीं होगा कि हिन्दुओं ने अपनी ओर से हमेशा यह प्रयास किया है और मुस्लिमों को आभास भी कराया है कि वे इस देश मे ’वसुदेव कुटुम्बकम्’ की धारणा के साथ शान्तिपूर्वक व प्रेम से रहैं। मन से व चिन्तन से दूसरों को काफिर समझने का सोच खत्म करें। लेकिन मुस्लिम कट्टरपन्थी ऐसा होने नहीं देते हैं। ध्यान करना होगा कि ऐसा सोच, कि पृथ्वी पर काफिरों को रहने का अधिकार नहीं है, दुनिया के किसी भी देश मे स्वीकार्य नहीं किया जा सकता। यूनाईटेड अरब अमीरात के देश अबूधाबी, दुबई, शारजांह आदि मे बड़ी संख्या मे भारतीय निवास कर रहै हैं। भारत मे भी हिन्दुओं को अपने व्यवहार से यह प्रमाणित करना होगा कि ये हमारे भाई ही हैं और भ्रमित हो गए हैं। इससे उन्हें और उनकी नई पीढ़ी को सत्यता व असलियत समझ में आएगी। दोनो ओर यदि नफरत बढ़ती रही तो इससे कोई भी शास्वत सुधार नहीं हो सकता व शान्ति स्थापित नहीे हो सकती। दोनो ओर से एक-दूसरे के प्रति लगााव, भाईचारा और प्रेम प्रदर्शित करना होगा। तब फिर उनकी इच्छानुसार ’घर-बापिसी’ का कार्यक्रम होना चाहिए। घर-बापिसी के कार्यक्रम में हिन्दूओं को भी सकारात्मक सोच बनाना होगी। मुस्लिम कट्टरपन्थियों के आतंक व कट्टरता से इन्हे सुरक्षा देनी होगी। मुस्लिम लड़कों व लड़कियों के विवाह हिन्दूओं में होने की व उनकी सुरक्षा की गारन्टी देने पर ही घर-बापिसी की योजना सार्थक हो सकेगी। नफरत और प्रेम, दोनों एक साथ नहीं चल सकते। कट्टरपन्थी मुस्लिमों का ऐसा सोच कभी सफल नहीं हो सकता कि वे तलवार और आतंक के आधार, धोखा या लालच के आधार पर अथवा लव-जेहाद के आधार पर गैरमुस्लिमों का धर्म परिवर्तन कराएंगे। जितनी हिंसा व कट्टरता पनपेगी तो उसकी प्रतिक्रिया मे हिंसा व कट्टरता ही होगी। प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन ने गति के तीसरे सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि ’’प्रत्येक क्रिष की विपरीत व बराबर प्रतिक्रिया होती है।’’ लेकिन न्यूटन का उक्त सिद्धान्त व्यक्ति के आम व्यवहारिक जीवन के सोच, व्यवहार और चिन्तन पर भी लागू हो रहा है। लोगों का यह भ्रम है कि हिंसा व कट्टरता एकतरफा या एकपक्षीय होती रहै।
राजेन्द्र तिवारी, अभिभाषक
दतिया म.प्र.
फोन- 07522-238333, 9425116738
rajendra.rt.tiwari@gmail.com
नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आध्यात्मिक विषयों के चिन्तक व समालोचक हैं।
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