1885 में स्थापित देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में दो दिनों से उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं द्वारा लिखे चिठ्ठी से धमाल मचा हुआ था। 135 वर्षों का इतिहास समेटे आज़ादी के बाद से 54 वर्षों तक देश की सत्ता में ठसक रखने वाली कांग्रेस अपने ही पार्टी के 23 नेताओं के चिठ्ठी से डगमगाती क्यों नजर आयी ? और डगमगाहट भी कुछ ऐसी कि स्वयं पार्टी के शीर्ष नेता व पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को यह कहना पड़ा कि उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता भाजपा के संपर्क में हैं। वरिष्ठों ने भी चूक नहीं की। कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आज़ाद तो तुरंत ट्वीट और बयानों से यह कह कर नाराज़गी जताने से नहीं चुके कि राहुल गाँधी उनकी निष्ठा पर शक कर रहे हैं। चलिए ,फिर तो वही होना था ,जो अक्सर इन मामलों में होता आया है। गिले शिकवे ,निष्ठा प्रतिष्ठा ,तोड़ मोड़ बयान ,लोकतंत्र,पारदर्शिता आदि का हवाला देते हुए सब 'एक' हो गए। इंकार और इस्तीफे की पेशकश के बावजूद पुनः छह महीने के लिए या पूर्णकालिक अध्यक्ष की नियुक्ति होने तक श्रीमती सोनिया गाँधी को पुनः अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी गयी। यहाँ तक चलिए मान लेते हैं लेकिन सवाल यह कि इतनी बड़ी ,इतनी पुरानी पार्टी जिसने देश पर आधी शताब्दी से अधिक शासन किया हो ,वह इतनी विचलित क्यों है ? कहाँ कमी है ?
अगर गाँधी परिवार की बात करें तो जिस परिवार ने आज़ादी के बाद से प्रत्यक्ष रूप से 36 वर्षों तक देश में शासन की बागडोर संभाली है ,उसे अब क्या खोने का डर है या क्या पाने की चिंता है ? ऐसा क्या है जिसे वे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं ? लोकतंत्र में सरकारें बदलती रहती हैं लेकिन यदि विपक्ष मजबूत हो तो प्रजातंत्र की खूबसूरती बढ़ जाती है। सत्य को स्वीकार कर अगर कांग्रेस सत्ता के लक्ष्य को भूलकर एक ताकतवर विपक्ष की भूमिका के लिए पूर्णतः तैयार हो तो उसका वजूद कभी कम नहीं होता और शायद इससे अच्छा समय कांग्रेस को अपने अतीत के गौरव को पाने का और नहीं मिलेगा क्योंकि आज कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है ,जो भी प्रयास होगा वह जनता को मजबूत विपक्ष की अवधारणा के नाते आपके पास ही लाएगा। 1952 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 498 में से 364 सीटें मिली थीं वहीँ 1984 में 533 में से 404 सीटें प्राप्त हुईं। 2004 से 2014 तक कांग्रेस सत्ता में रही इसके बावजूद 2014 के चुनाव में 19.3 प्रतिशत वोटों के साथ 545 में 44 और 2019 में 9.6 प्रतिशत वोटों के साथ 542 में से मात्र 52 सीटों पर ही कांग्रेस सिमट गयी। मंथन, चिठ्ठी और लोकतंत्र की बातें तो गिरते वोटों के प्रतिशत पर होनी चाहिए। जिस सत्ता पक्ष (भाजपा )से कांग्रेस दो दो हाथ करना चाहती है उसके मतों में 2014 के 31 प्रतिशत से बढ़कर 2019 के 55.9 प्रतिशत पर मंथन करना चाहिए था कि कैसे उन्होंने जीत का मार्ग प्रशस्त किया I कांग्रेस विशेषकर राहुल गाँधी की लड़ाई और विरोध देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है। लेकिन राहुल गाँधी को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिन नरेंद्र मोदी की हर बात ,हर नीति का विरोध करना उनकी आदत बन चुकी है उनसे लड़ने के लिए कांग्रेस के पास कोई रणनीति नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ देश ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी अति लोकप्रिय हैं और तमाम विरोधों के बावजूद उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं हुई है। कांग्रेस और राहुल गाँधी को यह सत्य स्वीकारना होगा कि आपदा को अवसर में बदलने का हुनर रखने वाले नरेंद्र मोदी के समकक्ष इस वक्त देश में कोई दूसरा नेता नहीं है और फिलहाल तो मोदी को पराजित करने की ताकत सिर्फ और सिर्फ स्वयं मोदी में ही है। फिर जब इतने वज़नदार विरोधी से राहुल गाँधी भिड़ने को आतुर हैं तो खुद के लोगों पर पहले विश्वास करना उन्हें सीखना होगा और अगर सीखने का जज्बा नहीं है तो एक एक कर लोग ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह साथ छोड़ते चले जायेंगें और आप सिर्फ जयचंद जयचंद का भजन करते रह जायेंगें। अगर जीतना है तो विरोधी की अच्छाईयों की तरफ ध्यान दीजिये ,जीत के मंत्र पर गौर कीजिये। यदि कांग्रेस और विशेषकर उसके युवराज राहुल गाँधी को कांग्रेस की खोयी प्रतिष्ठा वापस दिलानी है ,जनता के बीच अपने खोते जनाधार को बचाना है तो यही समय है आंकलन का ,आत्मचिंतन का। आखिर क्या वजह थी कि आज़ादी के बाद 16 वर्षों तक जवाहरलाल नेहरू सत्ता के शीर्ष पर रहे, इंदिरा गाँधी ने 15 वर्षों तक देश पर शासन किया ,अनेक कारणों के बीच एक प्रमुख कारण मिलेगा -' उनकी लोकप्रियता'। जाहिर है व्यापक लोकप्रियता के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने होंगें। सिर्फ विरोध के नाम पर कुछ भी बोलना नहीं चलेगा। अपने लोगों पर विश्वास की कमी आत्मघाती सिद्ध हो सकता है।
संत कबीर ने कहा है - " निंदक नियरे राखिये ,आँगन कुटी छवाय। बिन पानी ,साबुन बिना ,निर्मल करे सुभाय।" ये पंक्तियाँ हमेशा जीवंत और चरितार्थ रहीं हैं। राजा के इर्द गिर्द चापलूस तो बहुत जमा हो जाते हैं लेकिन कमियों को बताने वाले ही असली शुभचिंतक माने जाते है ,हालाँकि कमियां सुनना या विरोध के स्वर सुनना आज अप्रत्याशित ही होता जा रहा है। कांग्रेस को खोए मान को वापस पाने के लिए अपने भीतर ही विरोध के स्वर सुनने होंगें ,कमियों को उजागर करने वालों को पुरस्कृत भी करना होगा अगर उसका लक्ष्य सच में जनहित का है तो। वर्ना वोमेश चंद्र बनर्जी,लाला लाजपत राय,अबुल कलम आज़ाद ,सरोजिनी नायडू , दादाभाई नौरोजी ,गोपाल कृष्ण गोखले ,सुभाष चंद्र बोस ,महात्मा गाँधी ,मोतीलाल नेहरू ,जवाहरलाल नेहरू ,सरदार बल्लभ भाई पटेल ,डॉ राजेंद्र प्रसाद ,पुरुषोत्तम दस टंडन ,इंदिरा गाँधी ,जे.बी.कृपलानी ,फिरोज़ शाह मेहता जैसी शख्सियतों से सिंचित पार्टी का राम ही भला करेंगें।
--विजय सिंह--
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