दिल्ली जाने वाले 21 बिहारी श्रमिक गाना गाने लगे हैं..हम तो ठहरे परदेशी साथ क्या निभाएंगे, 27 को सुबह वाली फ्लाइट से दिल्ली चले जाएंगे.....
समस्तीपुर,25 अगस्त। बिहार में भी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित है। यह ग्रामीण लोगों के आजीविका की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए है। एक वित्तीय वर्ष में एक ग्रामीण घर की गारंटी देने के वयस्क सदस्य को मजदूर को सौ दिनों के लिए रोजगार दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों के श्रमिकों को पलायन से रोकने में मनरेगा अक्षम है। जिसके कारण बिहार से 21 श्रमिक दिल्ली पलायन हो होने वाले है। दिल्ली जाने वाले 21 बिहारी श्रमिक गाना गाने लगे हैं..हम तो ठहरे परदेशी साथ क्या निभाएंगे, 27 को सुबह वाली फ्लाइट से दिल्ली चले जाएंगे। श्रमिकों ने कहा कि बाहरी दिल्ली के बख्तावरपुर इलाके के तिगीपुर गांव के किसान पप्पन सिंह गहलोत ने एक बार फिर दरियादिली दिखाई है। उन्होंने 21 मजदूरों को बिहार से वापस आने के लिए हवाई जहाज की टिकट बुक कराई है।
बिहार से जाने वाले सभी मजदूर समस्तीपुर जिले के खानपुर ब्लॉक के श्रीगाहरपुर गांव के निवासी हैं, जो फ्लाइट से 27 अगस्त की सुबह दिल्ली पहुंच जाएंगे। पप्पन ने इनके लिए गांव से पटना हवाई अड्डे तक पहुंचने के लिए गाड़ियों का भी प्रबंध किया है, ताकि वह समय पर उड़ान भर सकें। इससे पहले उन्होंने मई माह में लॉकडाउन में फंसे 10 मजदूरों को हवाई जहाज के जरिये बिहार स्थित उनके गांव भेजा था। दरअसल पप्पन सिंह गहलोत मशरूम की खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि मशरूम की खेती की प्रक्रिया सितंबर शुरू होकर मार्च के अंत तक चलती है। ऐसे में खेतों में काम करने के लिए पिछले 25 सालों से बिहार के समस्तीपुर जिले के खानपुर के मजदूर आते रहे हैं और खेती समाप्त होने के बाद वापस चले जाते रहे हैं। चूंकि अब यह खेती शुरू होने वाली है, ऐसे में गत सालों की भांति मजूदर को यहां आना है। लेकिन मजदूरों ने बताया कि अगले डेढ़ माह तक ट्रेनों में टिकट नहीं है तो उन्होंने 21 मजदूरों के लिए अपने खर्च से टिकट बुक कराई है। प्रत्येक मजदूर की टिकट पर करीब 52 सौ रुपये का खर्च आया है। पप्पन ने बताया कि मजूदर तो और आते, लेकिन इस बार कोविड-19 के चलते तीन एकड़ की जगह दो एकड़ में ही मशरूम की खेती करेंगे, इसलिए 21 मजदूरों को ही बुलाया है। उन्होंने बताया कि गत साल भी इसी समय मजदूर पहुंचे थे, लेकिन खेती समाप्त होने के बाद इस साल मई में लॉकडाउन के चलते दस मजदूर फंस गए थे, जो वापस अपने गांव नहीं जा पा रहे थे तो उन्हें हवाई जहाज से उनके घर भेजा था। उन्होंने कहा कि बिहार के ये लोग अब उनके लिए केवल खेतों में काम करने वाले मजदूर भर नहीं है, बल्कि वर्षों से उनके साथ मिलकर खेती करने के कारण उनसे एक भावनात्मक रिश्ता भी बन गया है। इन लोगों के वह हर सुख-दुख के साथी हैं। ऐसे में उनकी जीविका की चिंता भी रहती है। इससे पहले मई महीने में दिल्ली से बिहार भेजे जाने पर मजदूरों ने कहा था कि जब उन्होंने अपने स्वजनों को बताया कि वह हवाई जहाज से आ रहे हैं तो उन्हें सहज विश्वास ही नहीं हुआ। वहीं, पप्पन सिंह ने कहा था कि वह अपने मजदूरों को तीन -तीन हजार रुपये बतौर बख्शीश भी दे रहे हैं और साथ ही यदि कोई भी दिक्कत इन्हें बिहार में होती है तो ये इन्हें वहां और भी पैसे भेज देंगे क्योंकि पिछले 25 सालों में इन लोगों के साथ घर परिवार का रिश्ता बन गया है।
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