- आज भी प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से उनके आत्मा का हनन होगा। कल उन्हें सजा सुनाने की संभावना है।भागलपुर कोर्ट मे प्रशांत भूषण के पक्ष मे जत्था निकाला और वकील एकता का संकल्प लिया गया...
पटना,24 अगस्त। लोकतान्त्रिक जन पहल, बिहार के संयोजक सत्य नारायण मदन ने कहा है कि ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता पूर्व एटॉर्नी जेनरल और जूरिस्ट श्री सोली सोराबजी ने कुछेक अखबारों में छपे अपने बयान के हवाले से कहा है कि प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में प्रदत्त धारा 129 के तहत दी गई अंतर्निहित अधिकार का दुरुपयोग किया है। उन्होंने कहा है कि अवमानना के मामले को शुरू करने से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के अंतर्निहित अधिकार की निश्चित सीमाएं हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की यह राय कि अवमानना के स्वत: संज्ञान को शुरू करने के पहले एटर्नी जेनरल की सहमति लेना अनिवार्य नहीं है, उचित नहीं है।श्री सोराबजी ने कहा कि एटर्नी जेनरल सुप्रीम कोर्ट का प्रथम लॉ अधिकारी होता है। वह उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता है। उल्लेखनीय है कि प्रशांत भूषण के मामले में मोजूदा एटर्नी जेनरल की पूरी तरह उपेक्षा की गई है। प्रशांत भूषण को कितनी सजा दी जाय इस मुद्दे पर गत 20 अगस्त को सुनवाई के दौरान जब एटॉर्नी जनरल श्री के के वेनुगोपाल ने हस्तक्षेप किया, तो कोर्ट ने उनको सुनने से इन्कार कर दिया।
उन्होंने ने कहा कि कि अवमानना के मामले में भी अभियुक्त अगर अपनी बात को प्रमाणित करने का अवसर चाहता है, तो उसे दिया जाना चाहिए, आप उसे कैसे रोक सकते हैैं। उन्होंने ने कहा कि किसी को सज़ा तभी दी जा सकती है जब उसका आरोप ग़लत साबित हो जाय। श्री सोराबजी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को प्रशांत भूषण को सज़ा नहीं देना चाहिए।सवाल उठता है कि प्रशांत भूषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जल्दीबाजी और एटॉर्नी जनरल की उपेक्षा क्यों की? क्या इसे सुप्रीम कोर्ट की महज भूल मानी जाय अथवा यह किसी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। हमारा मानना है कि यह सुप्रीम कोर्ट की अनजाने में हुई भूल नहीं है।अगर ऐसा होता, तो अनेक पूर्व न्यायाधीशों व विधिवेत्ताओं और एटॉर्नी जनरल की राय पर वह विचार करता। हमारा मानना है कि जबसे मोदी सरकार आयी है लोकतान्त्रिक संस्थाओं को अंदर-बाहर से कमजोर करने और उसे सत्ता के हथियार के रुप में इस्तेमाल किया जा रहा है। उसकी स्वायतता खत्म की जा रही है। गैर भाजपा सरकारों में भी सांठगांठ की घटनाएं होती थीं लेकिन उसका स्वरुप निजी संबंधों पर आधारित था। नरेन्द्र मोदी सरकार में व्यवस्थित हमला लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर जारी है। वरना यह कैसे संभव हुआ की मोदीराज में एटॉर्नी जनरल की असंवैधानिक तरीके से उपेक्षा की गयी। मेरी राय में बिना शीर्ष के इशारे के यह संभव नहीं है।
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