सीतामढ़ी। एस.एल.के.कॉलेज,सीतामढ़ी के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर एवं प्रभारी प्राचार्य हैं डॉ.आनंद किशोर।इनका कहना है कि केन्द्र सरकार द्वारा लाया गया तीनो कृषि विधेयक लोकसभा से पास हो चुका है अब राज्य सभा मे भेजने की तैयारी है।किसानों द्वारा पूरे देश से विरोध जारी है। यह विधेयक कोई नया नही है 1990मे कृषि पर बनी भानूप्रताप सिंह कमेटी, कृषि संबंधी स्थायी संसदीय समिति तथा 10वी पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज में भी इस विधेयक के एजेन्डे की चर्चा है परन्तु पूर्ववर्ती सरकारो ने इसे लागू नही किया मोदी सरकार ने इसे ठंढे बक्शे से निकाला है। आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन )विधेयक 2020 मे अनाज, दलहन ,तिलहन, खाद्य तेल ,आलू, प्याज जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया गया है।निजी कंपनियों को सीधे किसानों से खरीद की छूट के साथ जमा की सीमा पर रोक नही होगी।इससे जमाखोरी को बढाबा मिलेगा,मंहगाई बढेगी।किसान तथा उपभोक्ता दोनो का शोषण होगा।विचौलियो को लाभ होगा, जमाखोर होगे निरंकुश क्योंकि सरकार आपात स्थिति या युद्ध की स्थिति मे ही प्रतिबंध लगाने की बात कहती है।
कृषि उपज व्यापार वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा)विधेयक 2020 मे किसान अपनी उपज कही भी किसी के साथ बेच सकेगे।तीन दिनों मे होगा भुगतान।मंडियों मे बेचने की बाध्यता होगी समाप्त।व्यापारिक विवाद का 30दिनों मे निपटारा होगा।वन नेशन वन मार्केट बनाने की पहल।सरकार कहती है एमएसपी तथा मंडी व्यवस्था लागू रहेगी।मनचाहे दाम तलाश कर बेचने की होगी आजादी।भारत केअधिकाश किसानों की हैशियत गावों से बाहर जाकर बेचने की भी नही है फिर दूसरे राज्यों मे जाना भारी बात है।देश मे छोटे किसानों की संख्या 86% है जो खेती की उपज होते ही पिछला कर्ज भुगतान के लिए तत्छण उपज बेच लेते है।इसमे निजी कारपोरेट सेक्टर की मनमानी बढेगी।जरूरत है एमएसपी को मजबूत कर सरकारी खरीदगी की दायरा को बढानेकी।।सरकारी आकडो मे देश मे 6%ही सरकारी खरीद होती है।सरकार का एमएसपी तथा सरकारी खरीद से पल्ला झाडने संबधी शांता कुमार कमेटी रिपोर्ट तथा अन्य अनुशंसा को लागू करने का हिडेन एजेन्डा है।बिहार मे 15वर्ष पूर्व कृषि उत्पाद विपणन समिति को समाप्त कर किया गया नया प्रयोग कोई लाभ नही दे सका।उल्टे एफसीआई से कृषि उत्पादों की खरीद बंद कर दी गई।पैक्स से भगवान भरोसे खरीद होती है सरकार लापरबाह है।विधेयक मे यह भी प्रावधान है कि किसी विवाद का निपटान सिविल कोर्ट मे नही होकर एसडीएम तथा डीएम स्तर से ही होगा।हम समझ सकते है ये किसकी नुमाइंदगीरी करेंगे । कृषि (सशक्तिकरण व संरक्षण)कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 मे फसल बोने के पूर्व ही तय कीमत पर बेचने का अनुबंध करेगा, शोध तथा विकास ,प्रोसेसर्स,थोक विक्रेता से जुड़ने जैसे सपने दिखाये गये है। किसानों को पश्चिम का यह नकल यहाँ के सामाजिक ढांचे के प्रतिकूल लगता है ।कंपनियों की ठेके की खेती की व्यवस्था मे किसान अपने ही खेत मे मजदूर बन जायेंगे ।कंपनियां, खाद,बीज कीटनाशकों के नाम पर ऋण बोझ डालकर फिर उपज की खरीद मे गुणबता तथा और बहाने बनाकर खरीद नही करेगी तथा विवाद का निपटारा भी कंपनियों के ही पछ मे होगा,सभी बातों मे कंपनी का हस्तक्षेप होगा।किसान आत्महत्या करेंगे, जमीन छोडकर मजदूर बनेगे। अमेरिका का यह नकल अमेरिका मे फेल है इन सभी प्रावधानों का वहां विरोध हो रहा है फिर हम खेती को कारपोरेट के हाथों सौपने का खेल क्यो खेल रहे हैं। भारत के गरीब, कमजोर किसानों के अनुकूल नही है ये टेढा प्रावधान । सरकार के पास विधेयक लाने कानून बनाने की कितनी जल्दीबाजी थी कि सरकार भूल गई कि कृषि राज्य का विषय है राज्यों की भी राय ले ली जाए।बहुमत के दंभ मे लोकसभा से भी पास करा लिया।अपने सहयोगी दल, विपछ तथा किसानों के राष्ट्रव्यापी विरोध की भी सुध नही ली। विजय कुमार पांडेय कहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर अगर कोई व्यापारी अनाज खरीदता तो वह कानूनी दायरे में होगा इसका प्रावधान विधेयक होना चाहिए । नरेन्द्र कुशवाहा का मानना है अमीर परस्त किसान विरोधी सरकार हर हाल में किसानों को बन्धुआ बनाने की शर्मनाक कोशिश में सफल होती नजर आ रही है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें