कल तो मैं बेगूसराय नगर निगम क्षेत्र के हर गली हर मोहल्ले की बात कर रहा था कि बेगूसराय जिला प्रशासन और नगर निगम के मेयर क्या कर रहें हैं जबकि बेगूसराय नगर निगम पूरा जलमग्न हो चुका है।
रोजी रोटी के बदले जो भाषण देता।
है वही आज सफल चोटी का नेता।।
- आज केन्द्र और बिहार सरकार से एक सवाल।
अरुण शाण्डिल्य (बेगूसराय) केन्द्र सरकार हो,राज्य सरकार हो, विधानसभा के विधायक,लोकसभा से विजयश्री का माला पहनने वाले सांसद (मन्त्री) हों या नगर निगम के मेयर (महापौर) वार्ड प्रतिनिधि या फिर जिला प्रशासन क्या आप लोगों की कोई उत्तरदायित्व नहीं इस तरह नारकीय जीवन जीनेवाले आम जनता के लिए।ये वही आम जनता हैं जो आपको अपना बहुमूल्य वोट देकर आपको उच्चासन प्रदान करते हैं।क्या आपकी नजरों में उनके दुःख-दर्द की कोई अहमियत नहीं?क्या करते हैं आप जब जीत कर जाते हैं?कभी सुध भी लेने की सूझती भी है या नहीं आपकी?शायद नहीं!याद रखिए आप फिर आएंगे दांत निपोड़े,हाथ जोड़े,चरण छूने के लिए की बस एक वोट का सवाल है,आप तो मेरे अपने हैं और आपकी लोमड़ी चाल में ये जनता फिर फँस जाएगी और आपको ही अपना मत देकर विजयश्री का माला पहना देंगी और फिर आप पाँच वर्षों के लिए गायब।पता नहीं कौन सी जादुई छड़ी की झड़ी आपके हाथों में आ जाती है कि मदारी की तरह जानता को बन्दर बनाकर अपने हिसाब से नचाने लगते हैं?शायद यह परिणाम है अज्ञानता की,निरक्षरता की,अनपढ़,मूर्ख और गंवार,जाहिल होने की।अगर यही सब बातें हैं उपर्युक्त परिणामों के लिए तो अच्छा ही है क्यों कि आप जैसे अधकल गगरी छलकल जाय बाली यहीं पर आकर चरितार्थ होती है,की आप अक्षर कटुआ चौथी,पाँचवी या फिर किसी तरह खींचातानी करके मैट्रिक पास मंत्रियों को जब यू०पी०एस०सी०/बी०पी०एस०सी० जैसे कठिन से कठिन परीक्षाओं को पासकर आई०ए०एस,आई०पी०एस०, आई०जी०, डी०आई० जी० आदि बड़े बड़े अधिकारी जब आपके इशारे के मोहताज रहते हैं तो कम से कम उनसे तो बेहतर ये निरीह,बेबस,अनपढ़,गंवार आम जनता ही अपनी हालात को झेलते हुए अपने जी दगी का सफर तय कर लेते हैं जैसे तैसे भी तो यही ठीक हैं,कम से कम इनको ये तो मलाल नहीं ही रहेगा कि मैं उन बड़े बड़े उच्चाधिकारियों की तरह तो किसी मन्त्री संतरी के इशारे की गुलाम नहीं।
आप उच्चाधिकारी जनों से भी एक सवाल।
आप जब सारे कॉम्पीटिशनों को झेलते (फेस) करते हुए जब अपनी मंजिल,मुकाम,कामयाबी पाकर जब शपथ लेते हैं जनता सेवा की,भ्रष्टाचार मिटाने की,कर्तव्य परायणता और ईमानदारी से निष्ठा पूर्वक आम जनता के लिए सेवाभाव से काम करने की तो उसे भूल कैसे जाते हैं,आप कोई रिश्वत के सहारे तो अपनी मंजिल पाते नहीं कड़ी मिहनत और लगन से पढ़ाई करके आप मंजिल पाते हैं तो फिर ऐसा क्यों होता है आपके साथ जी एक अनपढ़ मंत्री जो कि संतरी के लायक भी नहीं उसको सैल्यूट पर सैल्यूट देने की क्या विवसता होती है आपकी?
देश की ये कैसी कानून व्यवस्था।
श्रमिकों का पेंशन योजना बन्द और नेताओं की हर कुर्शीयों का पेंशन लागू?सजा याफ्ता जेल से चुनाव लड़ सकता है और बाहर जो निर्दोष है,गरीब है,ईमानदार है उसको चुनाव लड़ने के लिए कोई पार्टी टिकिट नहीं देती? और चुनावी टिकिट देने में भी खरीद फरोख्त, पाइए लेकर चुनाव लड़ने की अनुमति मिलती हो जहाँ वहाँ की व्यवस्था भलाय क्या हो सकती है,सोचनीय मुद्दा है।
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