- लोकसभा के समय का आत्मघाती प्रयोग दुहराया न जाए, तालमेल की पूरी प्रक्रिया का केंद्र पटना को बनाया जाए.
- भाजपा-जदयू सरकार सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ने वाली धारा के बतौर राजद के बाद सबसे बड़ा ब्लॉक वामपंथ है जिसकी अभिव्यक्ति तालमेल में होना चाहिए.
- 16 सितंबर को पटना में आहूत राज्य कमिटी की बैठक से भाकपा माले अपने चुनाव अभियान को निर्णायक स्वरूप प्रदान करेगी.
बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी दलों से वार्ता के लिए गठित भाकपा-माले की वार्ता कमिटी की बैठक विगत 10 सितंबर को पटना में हुई. बैठक में इस बात पर चिंता जाहिर की गई कि परिस्थिति की मांग और जनाकांक्षा के अनुरूप विपक्षी दलों के भीतर तालमेल को लेकर अपेक्षित गति अब तक नहीं आ सकी है, जिसके कारण जनता में गलत संदेश जा रहा है और पूरे बिहार में भाजपा-जदयू सरकार की जनविरोधी नीतियों की असफलताओं के खिलाफ जनता का जनता का चरम आक्रोश होने के बावजूद नीचे के स्तर पर सामाजिक-राजनीतिक-सांगठनिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को गति नहीं मिल रही है.
विपक्षी दलों के बीच तालमेल की अपारदर्शी व गतिरूद्ध प्रक्रिया नुकसानदेह साबित हो सकती है. विगत लोकसभा चुनाव के समय अपनायी गयी विलंबित और जटिल प्रक्रिया का नतीजा हम सबने देखा है. लोकसभा के समय के उस आत्मघाती प्रयोग को कत्तई दुबारा इजाजत नहीं दी जा सकती है. हमारी मांग है कि विपक्षी दलों के बीच तालमेल की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी बनाया जाए, उसमें सभी दलों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए और उसका केंद्र दिल्ली की बजाए पटना को बनाया जाए. बिहार में भाजपा के खिलाफ वैचारिक से लेकर जमीन पर चलने वाली लड़ाइयों में भाकपा-माले और वामपंथी दल अगली कतार में हैं. भाजपा-जदयू सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ने वाली धारा के बतौर राजद के बाद सबसे बड़ा ब्लॉक वामपंथ का है. इसलिए तालमेल की पूरी प्रक्रिया में वामपंथी दलों को शामिल किया जाना चाहिए और सीटों के तालमेल में उसकी अभिव्यक्ति भी होनी चाहिए. आगामी 16 सितंबर को पटना में भाकपा-माले की बिहार राज्य कमिटी की बैठक आयोजित है. इस बैठक से भाकपा माले अपने चुनाव अभियान को निर्णायक स्वरूप प्रदान करेगी. बैठक में भाकपा-माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य भी उपस्थित रहेंगे.
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