1995 और 2015 के बीच 12 लाख किसानों ने आत्महत्या की है और 52 प्रतिशत किसान कर्जग्रस्त हैं. 75 प्रतिशत किसानों के पास 1 हेक्टेयर से कम खेत है. 95 प्रतिशत किसान परिवार असहनीय दरिद्रता में जी रहे हैं. खेतिहर मज़दूरी पर निर्भर स्त्री-पुरुषों की व्यथा का कोई समाधान नहीं हो रहा है.....
नयी दिल्ली. आज से जोरदार ढंग से किसान विरोधी बिल का विरोध शुरू हो गया है.किसान विरोधी बिल के खिलाफ राज्य सभा सांसद संजय सिंह साथी सांसदों के साथ संसद भवन में धरने पर बैठ गये हैं, उनका कहना है कि यहाँ से जाऊंगा नही,यही गांधी प्रतिमा के नीचे घास पर सो जाऊंगा। सभी दलों के सांसदों का साथ मिल रहा है. इस किसान विरोधी सरकार को बेनकाब करके रहूंगा । अडानी अम्बानी को किसानों के खेत का मालिक बनाना चाहती है मोदी सरकार। लोकतंत्र की हत्या करके कानून को पास कराया है सरकार ने. मोदी जी को किसानों के हित मे काम करना था तो न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अधिकार क्यों नही बनाया ? यह सच है कि पूरे भारत में सिर्फ़ खेती और किसान लगातार समस्याग्रस्त रहते हैं. ग्रामीण जीवन अभावग्रस्त रखा जाता है और खेती घाटे का धंधा है. 1995 और 2015 के बीच 12 लाख किसानों ने आत्महत्या की है और 52 प्रतिशत किसान कर्जग्रस्त हैं. 75 प्रतिशत किसानों के पास 1 हेक्टेयर से कम खेत है. 95 प्रतिशत किसान परिवार असहनीय दरिद्रता में जी रहे हैं. खेतिहर मज़दूरी पर निर्भर स्त्री-पुरुषों की व्यथा का कोई समाधान नहीं हो रहा है. ऐसे माहौल में केंद्र सरकार ने कृषि उपज की क़ीमत और व्यापार के बार में तीन विधेयक पारित करके ग्रामीण भारत के घावों पर नमक छिड़कने का अपराध किया है. यह कदम उठाने के पहले केंद्रीय सरकार ने सिर्फ़ देशी-विदेशी कंपनियों से मशविरा किया. किसान संगठनों से कोई संवाद नहीं हुआ. सहयोगी दलों की भी सलाह नहीं माँगी. क्यों?
1. खेती उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, और 3 . मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक के पारित होते ही किसानों में आक्रोश की लहर फैल गयी है. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हज़ारों किसान रैलियाँ कर रहे हैं. इससे पैदा दबाव के कारण सत्तारूढ़ गठबंधन के एक मुख्य सहयोगी अकाली दल की हरसिमरत कौर ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया है. 200 से अधिक किसान संगठनों के राष्ट्रीय समन्वय मंच ने तीनों विधेयकों को विदेशी-देशी कंपनियों का किसानों पर हमला करार देते हुए 25 सितंबर के पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों का ऐलान किया है. संसद में असाधारण विरोध प्रदर्शन हो चुका है. सरकार इन विधेयकों को ‘एक देश-एक मंडी’ बनाकर किसानों को बिचौलियों और आढ़तियों से बचाने वाला सुधार बता रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे एक क्रांतिकारी पहल बताते हुए विरोधी दलों के बहकावे में न आने की अपील की है. लेकिन कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सरकार का यह कदम एक तरफ विश्वव्यापी कंपनियों की भारत की खेती पर पकड़ को बढ़ाएगा और दूसरी तरफ़ न्यूनतम क़ीमत की सरकारी गारंटी की व्यवस्था बेकार हो जाएगी. 86 प्रतिशत मंझोले और छोटे किसानों की लाचारी बढ़ेगी. ज़िले स्तर की मंडी समितियों की जगह देशभर में अड़ानी - अंबानी जैसे सरकारी संरक्षण से लैस कंपनियों का बोलबाला होगा. इससे तीन लाख मंडी मज़दूर और तीस लाख खेतिहर मज़दूर की आजीविका ख़तरे में पड़ सकती है. कृषि क्षेत्र से पैदा ज़रूरी खाद्यान्न और तिलहन से लेकर आलू-प्याज की जमाख़ोरी से नगरीय परिवारों से जादा दाम वसूलने का भी रास्ता खुल जाएगा. यह किसान और गाँव पर कारपोरेट पूँजी का सरकार की मदद से खुला हमला है. न किसान की आमदनी बचेगी न खेती में क्रांति होगी. बेकारी फैलेगी. लाचारी बढ़ेगी. किसान कंपनियों के हाथों की कठपुतली हो जाएगा. शहरी जनसाधारण को महंगाई से जूझना पड़ेगा. नौजवानों पर बेरोज़गारी का पहाड़ टूट पड़ेगा. इसलिए किसान एकता के ज़रिए इन खेती विरोधी क़ानूनों को रद्द कराने की लड़ाई शुरू हो गयी है. इस पहल का समर्थन हमारा कर्तव्य है.
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