हम आदिवासी प्रकृति को पूजते हैं, हम आदिवासियों की ये मान्यता है की प्रकृति है तभी जीवन है और हम आदिवासी सरना धर्म को मानते हैं.....
रांची। देश में हर दस साल बाद जनगणना का काम 1872 से किया जा रहा है। जनगणना 2021 देश की 16 वीं और आजादी के बाद की 8 वीं जनगणना होगी। सुनीता लकड़ा, झारखंड की रहने वाली है, वह सरना धर्म को मानती हैं। हम आदिवासी प्रकृति को पूजते हैं, हम आदिवासियों की ये मान्यता है की प्रकृति है तभी जीवन है और हम आदिवासी सरना धर्म को मानते हैं। वह जब हाई स्कूल की परीक्षा फॉर्म भर रही थी तो धर्म वाले कॉलम में सरना धर्म लिखने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। ये मुश्किलें हमें हर एक जगह पर झेलनी पड़ती हैं, चाहे वह नौकरी हो या शादी का पंजीकरण। आदिवासियों के पास अपना सरना धर्म होते हुए भी सरना धर्म को पहचान सरकार से नहीं मिली है। सरकार ने अभी तक हमें अन्य की वर्ग श्रेणी में रखा है। आज़ादी के 72 साल बाद भी हम आदिवासियों को सरना कोड नहीं मिला है। 2021 में देश की अगली जनगणना होगी। हमारे हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन भाई-बहनों के पास अपना धर्म कोड होगा पर हमारे पास अपना धर्म कोड नहीं है। वह आदिवासियों को बचाने के इस अभियान में आप सबका योगदान मांगती है। कृपया मेरी पेटिशन साइन और शेयर करें ताकि सरकारी दस्तावेजों में सरना कोड को शामिल किया जाये और सरना धर्म को मान्यता मिले। हमारे देश में धर्म का बहुत महत्व होता है, ये हमारी पहचान का हिस्सा होता है, लेकिन हमारे पास सरना धर्म होते हुए भी नहीं है, क्योंकि सरकार ने अभी तक हमें अन्य की वर्ग श्रेणी में रखा है। आज़ादी के 72 साल बाद भी हम आदिवासियों को सरना कोड नहीं मिला है। हम आदिवासी प्रकृति को पूजते हैं, हम आदिवासियों की ये मान्यता है की प्रकृति है तभी जीवन है और हम आदिवासी सरना धर्म को मानते हैं। आदिवासियों के पास अपना सरना धर्म होते हुए भी सरना धर्म को पहचान सरकार से नहीं मिली है।
मैं सुनीता लकड़ा हूँ और झारखंड की रहने वाली हूँ, मैं सरना धर्म को मानती हूँ। मैं जब हाई स्कूल की परीक्षा फॉर्म भर रही थी तो धर्म वाले कॉलम में सरना धर्म लिखने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। ये मुश्किलें हमें हर एक जगह पर झेलनी पड़ती हैं, चाहे वह नौकरी हो या शादी का पंजीकरण। यंहा तक की जनगणना में भी सरना कोड नहीं होने के कारण हमें दूसरे धर्म के कॉलम में भरने को मजबूर किया जाता है जिसके कारण दिन प्रतिदिन सरना आदिवासियों की जनसंख्या का विलय होता जा रहा है। आशंका है की एक दिन सरना लोगों का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा, क्योंकि सरकार ने हम सरना आदिवासियों को सरना लिखने तक का विकल्प दिया ही नहीं हैं। आज भी झारखण्ड के 90 लाख के करीब सरना आदिवासियों के पास अपने धर्म को सरकारी दस्तावेजों में लिखने की कोई जगह नहीं मिला। 2021 में देश की अगली जनगणना होगी, हमारे हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन भाई-बहनों के पास अपना धर्म कोड होगा पर हमारे पास अपना धर्म कोड नहीं है। मैं हमारे झारखंड राज्य के माननीय मुख्यमंत्री जी से अनुरोध करती हूँ कि वो केंद्र सरकार को सरना कोड लागू करने की सिफारिश भेजें । साथ ही मैं विपक्ष और झारखंड के सभी नेताओं से अनुरोध करती हूँ कि वो इस माँग का समर्थन करें। मैं कोई नया मुद्दा नहीं उठा रही हूँ ,इस मुद्दे को लेकर हमारे पूर्वजों ने भी बहुत संघर्ष किया था और हम आज संघर्ष कर रहे हैं। ये मुद्दा धर्म से ज्यादा पहचान का मुद्दा है। मेरी पेटिशन पर हस्ताक्षार कर इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि सरकारी दस्तावेजों में सरना कोड को शामिल किया जाये और सरना धर्म को मान्यता मिले। हम आदिवासियों को बचाने के इस अभियान में आप सबका योगदान मांगती हूँ कृपया मेरी पेटिशन को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि हम आदिवासियों का अस्तित्व बचाया जा सके। अगर आप हमारे इस अभियान को सफल बनायेंगें तो हम आदिवासियों के पास भी 2021में हमारे दूसरे भाई बहनों की तरह एक पहचान होगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें