विशेष : क्या होगा बिहार में - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

विशेष : क्या होगा बिहार में

bihar-election-2020
तीस साल से बिहार की राजनीति एक चक्र में फंसी है. सोशल इंजीनियरिंग आधारित हर चुनाव लालू,पासवान और नीतिश के इर्द गिर्द घूम रहा है.राजनीति में अभूतपूर्व ऊंचाई हासिल करने वाले दिवंगत पासवान कभी बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन सके. लेकिन बिहार की राजनीति  लगातार उनके दवाब में रही.  एक दूसरे को फर्जी पुरोधा बताने वाले नीतिश और लालू पिछली बार कुर्सी बचाने के लिए साथ हो लिए. इसबार फिर अलग अलग हैं.चचा से लालू के वो लाडले मुकाबिल हैं जिनको नीतिश कुमार ने पहली बार  उपमुख्यमंत्री बनाकर परिवारवाद का झंडा लहराया था. चिराग पासवान इसी परिवारवाद के पोषण की मिसाल हैं जिनसे जाते जाते पिता पासवान ने बड़े चमत्कार की उम्मीद बांध ली. लिहाजा बिहार में चुनाव में जो दिख रहा है चुनाव पर्यंत वही होगा इसकी उम्मीद कम से कमतर है. फिर भी चुनाव है, तो बिहार में बहार है.  टिकट बंट रहे है.टिकट बिक रहे है. गठबंधन और चुनावी गुणाभाग से कई दिग्गज खेत हो रहे हैं. चार बड़े गठबंधनों के बावजूद चुनाव टिकट को लेकर रोचक परिघटनाएें घट रही है. टिकट कटने और बिकने के आरोप पर लालू के लाडलों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज़ हुआ.केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के लाडले को दोबारा विधायक की टिकट नहीं मिली.

भागलपुर के पूर्व सांसद शाहनवाज़ हुसैन स्टार प्रचारक नहीं बन पाए, तो तलाकशुदा समधी चंद्रिका राय को सारण से हराने वाले सांसद और मंत्री रहे पायलट राजीव प्रताप रूड़ी को बीजेपी ने नज़र से उतार रखा है.झारखण्ड के दो पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी  और रघुवर दास बिहार में बीजेपी के स्टार प्रचारक बनाए गए, तालमेल में कांग्रेस की 70 सीटों के साथ लालू की लालटेन को मंहगा मददगार मिला. कांग्रेस के स्टार प्रचारक शत्रुघ्न सिन्हा पुराने दोस्त सुशासन बाबू के खिलाफ खड़े हैं. बिहारी बाबू पहली बार लालू के लाडलों के लिए वोट मांगते नज़र आएंगे,तो धनपति मल्लाह मुकेश साहनी 11 सीट लेकर यूपीए छोड़ बीजेपी के संग हो लिए हैं. पप्पू यादव का असर चंद सीटों पर सिमटा नज़र आ रहा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को मायावती और ओवैसी ने मिलकर मुख्यमंत्री का कैंडिडेट बना रखा है तो दिवंगत पासवान की आखिरी सियासी दाव के सहारे  पुत्र चिराग मैदान में हैं. खुद नहीं बीजेपी का मुख्यमंत्री बनाने के लिए चचा नीतिश कुमार के खिलाफ खड़े हैं.चिराग के ख्वाबों के बंगले को सजाने के लिए आरएसएस के कई  दिग्गज एलजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, तो बीजेपी की उम्मीद पर ग्रहण के लिए पुष्पम प्रिया चौधरी के पॉपुलर्स ने मोर्चा थामने की ठानी है.  लिहाज़ा,कोई रो रहा है,तो कोई ठठाकर हंस रहा है. सबके अपने अपने कारण हैं.तमाम ताल तिकड़म से नेताजी को जनता के बीच नए रैपर में पेश किया जा रहा है.बारात निकली है.डोली सजी है.कहार खड़े हैं.देखना दिलचस्प होगा कि जीत की दुल्हन किसे अपना हार पहनाती है.

एकओर अस्पतालों की हालत ख़राब है.मरीज मर रहे हैं. लेकिन चुनाव ने आबोहवा से covid 19 का भय काफूर कर दिया है. चुनाव हर्ड एम्यून बन गया है, यह आज के बिहार की बानगी है.  पहले दौर का नामांकन चल रहा है.चुनाव रोचक चरण में प्रवेश कर गया है. दस नवंबर को नतीजा है. तबतक बिहार में जश्न है. बिहारियों को बहलाने वाली राजनीति उफान पर है.प्रदेश का कोना कोना बहस मुहासिब में फंसा है. चौक चौरहा, गली-मोहल्ला, समाज-परिवार, जात-पात, घर -दुआर सगरो एक ही काम यानि सब चुनावी विवेचना में लगा है. बस ये ही सवाल-कौन जीतेगा? किसकी बनेगी सरकार? क्या खिचड़ी पक रही है? लालू के लाल कहां खड़े हैं? नीतिश का चुनाव पर्यंत क्या होगा? अलग अलग मोर्चाबंदी का किसे मिलेगा लाभ? सिम्पैथी लहर से क्या चिराग करेंगे कोई चमत्कार? महीने भर पहले तक ड्राइंग रूम की महीन चाल से एकदूसरे को काटते रहे नेता अब  जनता के बीच तांडव अवतार में हैं.



-आलोक कुमार -

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