सी वोटर-टाइम्स नाऊ का सर्वे आगे कहता है कि जदयू के वोट का पारा गिरेगा, लेकिन सीटें नहीं घटेंगी। आपको एक बात याद दिला दूं कि विगत चुनाव में 71 सीटें पाने वाली जदयू को एक बार फिर 70 सीटें मिलती दिखाई जा रही हैं। गठबंधन में भाजपा 110 सीटों पर जदयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। सोचने वाली बात ये है कि 9 फीसदी अधिक वोट हासिल करने के बावजूद भाजपा की सीटों में केवल 32 सीटों का ही फायदा होगा। जबकि सी वोटर-टाइम्स नाऊ का सर्वे यह भी कह रहा है कि लोजपा को 5 सीटें मिलेंगी और वोट 6.7 फीसदी हासिल होगा। ऐसा तब है जब वह एनडीए से बाहर निकलकर चुनाव लड़ रही है। एनडीए में रहकर अगर लोजपा को 2015 में एक भी सीट नहीं मिली थी। मगर उस समय 4.8 फीसदी वोट जरुर मिले थे। एनडीए सरकार से संतुष्ट केवल 25.46 फीसदी वोटर हैं और नीतीश कुमार को सीएम देखने वाले लोगों की तादाद भी महज 32 फीसदी रह गयी है। ऐसे में ये तथ्य एनडीए सरकार के खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी का प्रमाण हैं। एनडीए के लिए 44.8 फीसदी और यूपीए के लिए 33.4 फीसदी वोट दिखाया था। दूसरे सर्वे में वह गठबंधन के बजाए दलीय आधार पर समर्थन दिखाने लगा। सितंबर के सर्वे में 56.7 फीसदी लोगों में एनडीए सरकार को लेकर गुस्सा था और वे बदलाव चाहते थे। सितंबर के सर्वे में 25.1 फीसदी लोगों के लिए चुनाव का मुद्दा बेरोजगारी और प्रवासी मजदूर थे, तो अक्टूबर आते-आते 49 प्रतिशत लोग सर्वे में मानने लगे कि बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। सर्वे में वोट शेयर और सीटों के साथ-साथ मुद्दे और सरकार से नाराज़गी जैसे तमाम पहलुओं पर अगर गौर किया जाए तो सर्वे की अगर बातें सत्य साबित होती हैं, तो एनडीए को बड़ा फायदा हो सकता है। हलांकि 2015 में इसी सी-वोटर के सर्वे ने एनडीए को कांटे की टक्कर में दिखाया था जबकि नतीजे बिल्कुल उलट आए थे और महागठबंधन को दो तिहाई सीटें हासिल हुई थीं। अब दूसरी तरफ कांग्रेस की बात करें तो 2015 में कांग्रेस को 6.7 फीसदी वोट मिले थे और ताजा सर्वे में यह प्रतिशत बढ़कर 11 हो गया है। मगर 2015 में मिली 27 सीटों के मुकाबले कांग्रेस को महज 15 सीटें मिलती बतायी जा रही हैं। राजद को 2015 में 18.5 फीसदी वोट मिले थे। इस बार ताजा सर्वे के मुताबिक उसे 24.3 प्रतिशत वोट मिलने जा रहा है। यानी 5.8 फीसदी वोटों का इजाफा। मगर, सीटें 80 से घटकर 56 होती दिखाई जा रही है। अब ऐसे में इनके सर्वे और आंकड़ों के खेल में किसको कितना फायदा होगा और किसको कितना घाटा होगा यह तो चुनावी नतीजे आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।
-मुरली मनोहर श्रीवास्तव-
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