नीतीश के नेतृत्व से परहेज या शीर्ष कुर्सी पर नजर हैः
बिहार की राजनीति पर पूरे देश की नजरें टिकी होती हैं। क्योंकि यहां कि राजनीति शून्य से शिखर तक की होती है। अगर भाजपा नीतीश कुमार को अपना नेता मानने को तैयार है, तो इसके पीछे चिराग को भी गणित को समझना चाहिए। क्योंकि राजनीति भावावेश में उठाया गया कदम नहीं बल्कि सधे कदमों से उचित कदम बढ़ाकर ही मंजिल को प्राप्त की जा सकती है। अगर चिराग पासवान को विश्वास है तब तो ठीक है वर्ना अतिविश्वास में राजनीति हमेशा औंधे मूंह गिरने पर विवश करती है।
जेपी के तीन चेलेः रामविलास-लालू और नीतीशः
सन 74 के आंदोलन यानी जेपी आंदोलन से सभी वाकिफ हैं। इसमें कहीं दो मत नहीं की जेपी के इन शिष्यों ने राजनीति में अपनी-अपनी जगह को बनाया और अपने कार्यशैली से खुद को स्थापित किया। एक तरफ बिहार में अगड़ों के नेतृत्व से बाहर निकालकर लालू सत्ता पर काबिज हुए आज से 30 साल पहले उसकी बागडोर उन्होंने 15 वर्षों तक संभाले रखा। इतना ही नहीं लालू ने केंद्रीय राजनीति में उस जमाने में धमक बरकरार रखी। वीपी सिंह, देवेगौड़ा, गुजराल को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया तो मुलायम के सपने को साथ रहकर तोड़ दिया। जब चारा घोटाले में लालू का नाम आया तो लालू ने अपनी पत्नी राबड़ी को सत्ता के शीर्ष पर बैठा दिया।
राजनीति के माहिर खिलाड़ी नीतीशः
समय बदला, लोगों ने लालू को सत्ता से बेदखल कर दिया। नीतीश कुमार को नेतृत्व दिया और इस कुर्सी तक पहुंचने में नीतीश के लिए भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी और अरुण जेटली वरदान साबित हुए। 15 वर्षों के शासन से लालू को बेदखल कर नीतीश सत्ता पर काबिज हुए। बिहार को विकास की पटरी पर दौड़ाया। बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य को फोकस करते हुए इसकी समस्या से निजात दिलाने का काम किया। यही वजह है कि तीन टर्म के बाद चौथे टर्म के लिए भाजपा फिर से इन्हें अपना नेता बिहार में मानने को विवश है। हलांकि राजनीति के माहिर खिलाड़ी नीतीश 2015 के चुनाव में राजद के साथ मिलकर सत्ता पर काबिज हुए। उनके साथ 20 माह तक सफर रहा लेकिन कुछ अड़चनों से फिर से रिश्ता टूट गया और भाजपा के साथ नीतीश ने फिर से सत्ता को हासिल कर लिया। इस बात को भाजपा बाखूबी समझ भी रही है।
बिहार की सत्ता से वंचित रहे पासवानः
रही बात रामविलास पासवान की, तो ये शुरुआती दौर से ही केंद्रीय राजनीति में खुद को फीट बैठाने में माहिर रहे। चाहे सरकार किसी की भी बने केंद्रीय नेतृत्व में खुद के लिए जगह को बनाते रहे। लेकिन एक बात वो भूल गए कि उन्हें कभी बिहार का नेतृत्व करने का मौका नहीं मिला। इस बात की खलिश लिए उनके पुत्र सांसद चिराग पासवान अपने पिता से इतर राजनीति करते हुए बिहार में नीतीश कुमार का नेतृत्व मानने से इंकार कर दिया और लोजपा बिहार में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ेगी।
लोजपा का निर्णय या भाजपा के इशारेः
लोजपा की संसदीय दल की बैठक में कई अहम फैसले लिए गए, जिसमें नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ने का फ़ैसला लिया गया। साथ ही लोजपा भाजपा सरकार का प्रस्ताव पारित किया गया है। कोरोना व ऑपरेशन के कारण पशुपती पारस व कैसर वी॰सी॰ के माध्यम से जुड़े। लोजपा के सभी विधायक पीएम मोदी को और मज़बूत करेंगे। एक साल से बिहार फर्स्ट बिहारी के माध्यम से उठाए गए मुद्दों पर लोजपा अपने मुद्दे से हटने को तैयार नहीं है। इस संदर्भ में सूत्रों की मानें तो लोजपा 143 पर चुनावी मैदान में उतरने की तरफ आगे बढ़ रही है। तो कई सीटों पर एनडीए में फ्रेंडली फाइट होने की संभावना जतायी जा रही है। इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि चुनाव जीतने के बाद लोजपा के सभी विधायक भाजपा को समर्थन देंगे। अब ऐसे में बिहार में एनडीए से लोजपा से कितना असर पड़ेगा या फिर क्या होगी आगे की रणनीति ये तीनों पार्टियों के शीर्ष ही जानें। मगर इस तरह हो रही उठा पटक से यह साबित हो गया है कि बिहार की सियासत में कोई नया गुल खिलेगा या फिर नीतीश के सधे कदम सबको मात देने में कामयाब होंगे।
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
पटना
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