- · विश्व की तीस से अधिक भाषाओं में अनूदित और चर्चित बेस्टसेलर किताब।
- · दुनिया-भर के असन्तुष्टों को प्रेरित करने वाली और तानाशाहों को टक्कर देने वाली एक पुस्तक।
- · पुस्तक प्री बुकिंग में, 30% से अधिक छूट 31 अक्टूबर तक उपलब्ध है।
नई दिल्ली : अमेरिकी लेखक जीन शार्प की नब्बे की दशक की बहुचर्चित किताब ‘फ्रॉम डीक्टेटरशिप टू डेमोक्रेसी’ का हिंदी अनुवाद ‘तानाशाही से लोकशाही’ अब राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। यह किताब मूल रूप से 1993 में अहिंसक संघर्ष के मार्गदर्शन के लिए लिखी गई थी। धीरे-धीरे यह पुस्तक दुनिया-भर के तमाम राजनीतिक असंतुष्टों के बीच पहुँच गयी। सर्बिया, तिब्बत, बर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया, ईरान, नेपाल, चीन जैसे कई देशों के लोकतंत्रवादियों के अहिंसक संघर्ष को इस किताब ने प्रभावित किया है। यह किताब इक्कीसवीं सदी के अहिंसावादी क्रांतिकारियों के लिए “कैसे-करें” की पथप्रदर्शक बन चुकी है। अहिंसक विरोध प्रदर्शन और रक्तहीन क्रान्ति के सुझाव और व्यावहारिक नियम बताने वाली यह किताब क्रान्ति या बदलाव के झूठे सपने या कोई अकल्पनीय रास्ते नहीं बताती बल्कि लोगों को परिवर्तन के वास्तविक पहलू से परिचय कराती है। अब तक इसका 30 से अधिक भाषाओँ में अनुवाद हो चुका है। इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद अनिल यादव ‘जयहिन्द’ ने किया है। इस पुस्तक के अनुवादक अनिल यादव ‘जयहिन्द’ ने अपने विचार रखते हुए कहा, “प्रस्तुत पुस्तक मूल रूप से तानाशाहों और तानाशाही व्यवस्थाओं को अहिंसक तरीके से, कम से कम जानो माल के नुकसान के, अपदस्थ करने के लिए लिखी गई है । महात्मा गाँधी से प्रेरित, राजनीतिक वैज्ञानिक जीन शार्प के दशकों के शोध पर अधारित, सत्याग्रह और अवमानना के सिद्धांत किसी भी तानाशाही संस्थान और अधिकारी पर भी उतनें ही कारगर हैं । तानाशाही प्रवृति के विरुद्ध संघर्ष करने वाले समाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए भी यह पुस्तक अति उपयोगी साबित होगी ।”
लेखक के बारे मे-
जीन शार्प
जीन शार्प (21 जनवरी, 1928–28 जनवरी, 2018) एक अमेरिकी राजनीति विज्ञानी थे। वे अल्बर्ट आइंस्टीन इंस्टीट्यूशन के संस्थापक थे, जो एक ग़ैर-लाभकारी संगठन है और अहिंसक कार्रवाई के अध्ययन को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है। उन्हें अहिंसक संघर्ष पर व्यापक लेखन के लिए जाना जाता है, जिन्होंने दुनिया-भर में कई सरकार विरोधी आन्दोलनों को प्रभावित किया। शार्प को 2015 में नोबेल शान्ति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था, और इससे पहले तीन बार 2009, 2012 और 2013 में नामांकित किया गया था। 2012 के पुरस्कार के लिए शार्प को व्यापक रूप से पसन्दीदा माना गया था। 2011 में उन्हें एल-हिबरी शान्ति शिक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2012 में अहिंसक प्रतिरोध के मूल सिद्धान्तों और रणनीतियों को विकसित करने तथा दुनिया-भर में संघर्ष क्षेत्रों में व्यावहारिक कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिए राइट लाइवलीहुड अवार्ड प्राप्त हुआ, साथ ही साथ विशिष्ट लाइफ़टाइम डेमोक्रेसी अवार्ड भी। उन्होंने ऑहियो स्टेट विश्वविद्यालय और ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई की तथा यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेसाचुसेट्स डार्टमाउथ व हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन किया।
अनुवादक : अनिल यादव ‘जयहिन्द’
अनिल यादव ‘जयहिंद’ पेशे से एक चिकित्सक एवं अस्पताल प्रशासक हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज से एम.बी.बी.एस. और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से पी.जी.डी.एच.एच.एम.। कामगारों के लिए ई.एस.आई. कॉरपोरेशन के अस्पतालों और योजनाओं के सुधार के लिए वाजपेयी सरकार में श्रम मंत्रालय द्वारा बनी समिति के सदस्य रहे। नेताजी सुभाष का आह्वान पुस्तक के लेखक और राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अरुंधति रॉय की पुस्तक एक था डॉक्टर, एक था संत के अनुवादक हैं। वर्तमान में सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हैं।
क्या खास है किताब में :
· दुनिया-भर के असन्तुष्टों को प्रेरित किया। तानाशाहों को टक्कर देनेवाली एक पुस्तक।
—द न्यू यॉर्क टाइम्स
· जो ऐतिहासिक महत्त्व कार्ल मार्क्स की कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो और माओ त्से-तुंग की लिटिल रेड बुक का है वही दर्ज़ा इस पुस्तक ने प्राप्त कर लिया है आन्दोलनकारियों के लिए यह एक टूलबॉक्स है। —द सन्डे टाइम्स
·जीन शार्प ने शायद ही कभी यह सोचा होगा कि उम्र के नौंवें दशक में, महात्मा गाँधी और मार्टिन लूथर किंग के साथ, एक ही वाक्य में उनका नाम लिखा जायेगा। —बीबीसी न्यूज़
· विश्व की तीस से अधिक भाषाओं में अनूदित और चर्चित बेस्टसेलर किताब।
· भारत में अहिंसक और असहयोग आन्दोलनों का लंबा इतिहास रहा है। हिन्दी में इस किताब का प्रकाशित होना इस इतिहास को और समृद्ध करेगा।
· अनुवादक ने किताब का अनुवाद करते हुए भाषा की सहजता का ध्यान रखा है। राजनीति, क्रान्ति और आन्दोलनों से जुड़ी शब्दावलियों को भी आसानी से समझने में मदद मिलती है। यह आम और ख़ास हर तरह के उन पाठकों के लिए एक जरूरी किताब है जो बदलाव और अहिंसा के सम्बन्ध को आज के वैश्विक संदर्भों में समझना चाहते हैं। जिन्हें लोकतंत्र की परवाह है।
आईएसबीएन पीबी : 978-93-89598-71-1
पुस्तक : तानाशाही से लोकशाही
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
लेखक : जीन शार्प
अनुवादक : अनिल यादव ‘जयहिन्द’
भाषा : हिंदी
मूल भाषा : अंग्रेजी
मूल्य : 199/- (पेपरबैक)
पृष्ठ : 176
प्रकाशन वर्ष : अक्टूबर, 2020
केटेगरी : नॉन –फिक्शन
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