मौसम वैज्ञानिक पिता पासवान की आखिरी सलाह पर मजबूती से अमल कर रहे चिराग ने बिहार के महाभारत में अभिमन्यु जैसा समां बांध रखा है.सुशासन बाबू को अभूतपूर्व ढंग से लज्जित करने के लिए दांव पर दांव चले जा रहे हैं. इसपर तेजस्वी व अन्य विरोधियों का मुस्कुराना लाजमी है. विनम्रता को हथियार बना प्रहार कर रहे चिराग के लिए बस यही कहना बाकी रह गया है कि चुनाव परिणाम के साथ ही LJP का BJP में विलय कर दिया जाएगा. बीच रण में चिराग तो नहीं पर जनता दल यू को हराने LJP की टिकट से लड़ रहे बीजेपी के पुराने खुर्राट नेताओं का भाव सब साफ बयां कर रहा है. राजेंद्र सिंह और रामेश्वर चौरसिया जैसे लोग लगातार संकेत दे रहे हैं कि नीतिश से बीजेपी को आजाद कराने के लिए ही चिराग के साथ हैं. मजबूत नरेटिव गढ़ा जा रहा है कि फ़िल्मी दुनिया में रमे चिराग पिता से इस करार के साथ राजनीति में उतरे थे कि वो UPA को गुडबाय कर NDA के साथ रहेंगे.चिराग की शर्त से 2014 में बात इस हद तक पहुँच गई थी कि लोकजनशक्ति पार्टी का बीजेपी में विलय कर लिया जाए. खैर तब एलजेपी NDA में आकर राजनीतिक कारणों से बचा रह गया.
LJP के NDA में आने से मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के हनक में कमी आने लगी. बीजेपी को दबाव में रखने की उनके बड़े भाई वाली नीति शनैः शनैः भेंट चढने लगी. पासवान के कुनबा में आने से परेशान नीतिश ने चुनावी बैतरणी पार करने के लिए 2015 में लालू के साथ जाने का विकल्प आजमाया. बाद में पलटकर बीजेपी के साथ आ गए. बीजेपी के साथ आए नीतिश कुमार ने लोकसभा चुनाव में न सिर्फ पासवान के हाजीपुर का टिकट कटवा दिया बल्कि बिहार से राज्यसभा जाने पर भी ग्रहण लगवा दिया. गज़ब के समाजवादी थे रामविलास पासवान.लेकिन नीतिश कुमार ने शुतुरमुर्गी चाल ने उन्हें सदा परेशान किए रखा. देवगौड़ा की सरकार में पासवान रेल मंत्री बने. रेल भवन में बिहारियों की एंट्री फ्री कर दी.बिहार जाने वाली ट्रेन प्राथमिकता सूची में आ गई. उससे पहले कर्नाटक के सी के जाफर शरीफ और उससे पहले बंगाल के अब्दुल गनी खान चौधरी की रेल मंत्रालय में चलती थी. पासवान ने पूरे शौर्य से बिहार के राजनीतिज्ञों के लिए रेलवे को सबसे आकर्षक मंत्रालय बना दिया.पासवान ने बिहार के लिए ज्यादा किया या ललित नारायण मिश्रा ने आज भी इसकी तुलना होती है. पासवान ने अपने संसदीय सीट हाजीपुर में रेलवे का जोनल हेडक्वार्टर बना हज़ारों नौकरी बाँट दी.
तब रेल मंत्रालय का बीट कवर करता था. प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में NDA की सरकार बनी. बिहार के मुख्यमंत्री बनने की चाहत रखने वाले नीतिश कुमार ने रेल मंत्रालय मांग लिया. रेल मंत्री बनने के साथ पूर्ववर्ती पासवान को भ्रष्ट और लालची साबित करने की कोशिश में लग गए. उनकी लगातार कोशिश पासवान से बड़े और लायक मंत्री साबित होने की रही. दिलचस्प वाकया है.हनक वाले मंत्री पासवान के कमरे तक रेलवे बोर्ड के चेयरमैन से लेकर तमाम आला अधिकारी हाज़िरी लगाते थे. नए मंत्री के तौर पर नीतिश कुमार टहलकर बोर्ड के चेयरमैन के कमरे तक गए. ये ख़बर मुझे लगी तो अपने अख़बार जागरण में खबर कर दी."बदल गई रेल भवन की फ़िज़ा". नए रेल मंत्री ने ख़ुश होकर सुबह मेरे पडोसी मित्र Anami Sharan Babal के लैंड लाइन (पीपी नम्बर) का पता लगवाया और फ़ोन पर बुलाकर धन्यवाद दिया.यह विनम्रता ही उनकी सत्ता शीर्ष पर पहुंचने की सीढ़ी बनी अब शायद ही कभी ऐसा करते हैं. कहते हैं अहंकार किसी के भी अवसान की पहली वज़ह होती है.
-आलोक कुमार के वाल से-
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