नयी दिल्ली 06 नवम्बर, सेनाओं में पेंशन में कमी करने और सेवा निवृति की उम्र बढाने से संबंधित सरकार के प्रस्ताव के कारण सेवारत तथा भूतपूर्व सैनिकों में मची खलबली के बीच सरकार ने आज कहा कि सैनिकों के कल्याण के प्रति अपनी वचनबद्धता को पूरा करने के लिए पांच वर्ष पहले एक रैंक एक पेंशन का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया था। चीफ ऑफ डिफेंस जनरल बिपिन रावत के नेतृत्व में काम करने वाले सैन्य मामलों के विभाग ने पेंशन के बढते बोझ को देखते हुए सैनिकों की पेंशन में भारी कमी करने और जवानों तथा अधिकारियों की सेवा निवृत्ति की उम्र बढाने का प्रस्ताव तैयार किया है। हाल ही में सार्वजनिक हुए इस प्रस्ताव का सेनाओं में भारी विरोध हो रहा है और सैनिक इसे अदालत में चुनौती देने की रणनीति बना रहे हैं। इसी बीच रक्षा मंत्रालय ने आज एक वक्तव्य जारी कर कहा कि सरकार ने आज से ठीक पांच वर्ष पहले सात नवम्बर 2015 को एक रैंक एक पेंशन (ओआरओपी) की 45 वर्ष पुरानी मांग को पूरा करने के लिए ऐतिहासिक निर्णय लिया था। सरकार ने कहा है कि सैनिकों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए इसके कारण पड़ने वाले वित्तीय बोझ को नजरंदाज कर यह निर्णय लिया गया था। सरकार का कहना है कि संबंधित आदेश जारी करने से पहले विशेषज्ञों तथा भूतपूर्व सैनिकों के साथ बहुत अधिक विस्तार से चर्चा की गयी थी। ओआरओपी में समान रैंक के लिए समान पेंशन का प्रावधान किया गया था। ओआरओपी के तहत 20 लाख 60 हजार 220 पेंशनधारियों को 10795.4 करोड रूपये की राशि वितरीत की गयी। ओआरओपी पर हर वर्ष 7123. 38 करोड़ रूपया खर्च हुआ है जो अब तक 42740.28 करोड़ के बराबर है। इसमें नेपाल में रहने वाले सैनिकों को दी जाने वाली पेंशन की राशि शामिल नहीं है।
शुक्रवार, 6 नवंबर 2020
OROP सैनिकों के कल्याण के लिए ऐतिहासिक फैसला : सरकार
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