हाजीपुर. अपने उपदेश में ईसा मसीह ने कहा है कि बच्चों को मेरे पास आने दो,क्योंकि स्वर्ग का राज इन्हीं बच्चों की तरह के लोगों का है.स्वाभिमान नामक संस्था की कर्ताधर्ता सिस्टर स्मिता परमार ने एक पोषित शिशु को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया है. सिस्टर स्मिता परमार ने बताया कि माता-पिता दिव्यांग हैं. दोनों गाँधी सेतु गंगा पुल के पास चिश्ती गांव में रहते हैं.मां निशा देवी और पिता सुरेन्द्र राम हैं. जूता-चप्पल सीने का काम सुरेंद्र राम करते हैं.वैश्विक कोरोना कहर के कारण कमाई पर असर पड़ा.गर्भावस्था में निशा को पोष्ट्रिक आहार नहीं मिल रहा था. आंगनबाड़ी केन्द्र भी बंद था. पोष्ट्रिक आहार वितरण नहीं किया जा रहा था.तब स्वाभिमान की टीम को सूचना मिली.गर्भावस्था के दौरान निशा की देखभाल कर पौष्ट्रिक आहार दी गयी.प्रसवोपरांत जच्चा- बच्चा की देखभाल की गयी.समय-समय पर बच्चे और मां को पौष्ट्रिक भोजन और दवा उपलब्ध करायी गयी. इस तरह के प्रभावशाली दायित्व निभाने के बाद कुपोषित शिशु को मौत के मुंह में जाने से बचाया गया. जी, ऐसे ही पीड़ित व उपेक्षित बच्चों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.तब जाकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी का बच्चों से लगाव व प्यार सार्थक होगा.यह कटू सत्य है कि विश्व में सबसे अधिक कुपोषित बच्चे बिहार में ही हैं.समाजशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज ने कहा कि बिहार में बच्चों की आबादी का लगभग आधा (48.3 फीसदी) कुपोषित हैं.उन्होंने कहा कि ऐसे 20 से ज्यादा सामाजिक मानक हैं जिनमें बिहार का प्रदर्शन काफी खराब है.बिहार में 40 प्रतिशत से ज्यादा लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती है. टीकाकरण पर उन्होंने कहा कि बीते 10 साल में 33 प्रतिशत से बढ़ कर 62 प्रतिशत हो गया है. लेकिन वैसे बच्चों की संख्या 12 प्रतिशत है जिन्हें कोई टीका नहीं लगता.
सरकार द्वारा बजट में कटौती को बच्चों के विकास के लिए नुकसान दायक बताते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने मध्याह्न योजना में लगभग 36 प्रतिशत की कटौती की है वहीं मध्याह्न भोजन योजना को आधार के साथ लिंक करने को भी उन्होंने खतरनाक बताया. वे बीते दिनों एएन सिन्हा सामाजिक विज्ञान संस्थान के द्वारा बच्चों और महिलाओं पर कुपोषण के प्रभाव और उसके विभिन्न आयामों को समझने के लिए आयोजित विकास संवाद को संबोधित कर रहे थे. संस्थान के सहायक प्राध्यापक डाॅ. नीतू चौधरी एवं डाॅ. अभिजीत घोष द्वारा यूनिसेफ के तकनीकी सहयोग से कुपोषण के प्रभाव पर किए गए सर्वेक्षण की रिर्पोट को भी साझा किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य कुपोषण के जमीनी कारणों और उनके निदान पर एक समझ विकसित करनी है. संगोष्ठी का उद्घाटन ज्यां द्रेज ने महिला विकास निगम की प्रबंध निदेशक एन विजयलक्ष्मी, यूनिसेफ के बिहार प्रमुख असदुर रहमान, एन सिन्हा सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक डाॅ. सुनील रे की उपस्थिति में किया गया. संस्थान द्वारा किए गए सर्वेक्षण से संबंधित बुकलेट का लोकार्पण भी किया गया. समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव वंदना किनी ने कहा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि बिहार में कुपोषण एक गंभीर समस्या है पर इसमें सुधार हुआ है. महिला विकास निगम की प्रबंध निदेशक एन विजयलक्ष्मी ने कहा कि बिहार काफी तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर हैं, इसको पिछले 10 साल के विकास दर के आंकड़े दर्शाते हैं. यूनिसेफ, बिहार के प्रमुख असदुर रहमान ने कहा कि 2011 के जनगणना के आकड़ों के अनुसार, बिहार में 0 से 18 साल के बच्चों की कुल संख्या 5 करोड़ 97 लाख है. संयोजिका डाॅ नीतू चौधरी ने भी अपनी बात रखी. कार्यक्रम को सेंटर फॅार डेवलपमेंट स्टडीज, केरल के प्रोफेसर उदय एस मिश्रा, प्रो रितिका खेड़ा (एसोसिएट प्रोफेसर, आईआईटी, दिल्ली),नीलाचला आर्य (अनुसंधान समन्वयक) एवं सौम्या श्रीवास्तव (अनुसंधान अधिकारी, सेंटर फाॅर बजट एवं गवर्नेंस अकाउंटेबिलिटी, नई दिल्ली),पत्रकार नीरजा चौधरी, रबी एन॰ पार्ही (पोषण विशेषज्ञ, यूनिसेफ, बिहार), बासुदेव गुहा (वरिष्ठ आर्थिक सलाहकार, यूएनडीपी, नेपाल), नेहा रायकर (प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आॅफ इंडिया, नई दिल्ली), व्यासजी (प्रधान सचिव आपदा प्रबंधन विभाग, बिहार सरकार), लोक स्वास्थ्य विशेषज्ञ एवं सामाजिक कार्यकर्ता विनायक सेन, अर्जन डे वाग्ट एवं प्रो.सुनिल रे ने भी संबोधित किया.
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