- बिहार चुनाव के साथ-साथ आगामी पश्चिम बंगाल, असम व अन्य राज्यों के चुनावों पर हो रही चर्चा
- 6 दिसंबर से 11 दिसंबर तक संविधान बचाओ-देश बचाओ अभियान
- किसान आंदोलन के देशव्यापी विस्तार पर भी होगी चर्चा
पटना 3 दिसंबर भाकपा-माले की केंद्रीय कमिटी की दो दिवसीय बैठक आज से पटना में आरंभ हो गई है. यह बैठक जगत नारायण रोड स्थित माले राज्य कार्यालय में हो रही है. बैठक कल 4 दिसंबर तक चलेगी. बैठक में बिहार के काॅमरेडों के अलावा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, दिल्ली, उत्तराखंड, कर्नाटक आदि प्रदेशों के माले के शीर्षस्थ नेता भाग ले रहे हैं. बैठक में मुख्य रूप से पार्टी के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, वरिष्ठ नेता स्वदेश भट्टाचार्य, चर्चित महिला नेत्री कविता कृष्णन, पश्चिम बंगाल से कार्तिक पाल, पार्थो घोष, अभिजीत मजूमदार; असम से विवेक दास व बलीन्द्र साकिया; त्रिपुरा से मृण्मय चक्रवर्ती; कर्नाटक व दक्षिण के अन्य राज्यों से क्लिफंटन डी रोजारियो, वी शंकर, एस बालासुब्रम्नयम, बांगर राव, एन के नटराजन, एन मूर्ति; किसान नेता पुरूषोत्तम शर्मा, उत्तरपद्रेश से रामजी राय, कृष्णा अधिकारी, सुधाकर यादव; झारखंड के बगोदर के विधायक विनोद सिंह, गीता मंडल; दिल्ली से रवि राय, सुचेता डे; पंजाब से सुखदर्शन नट, कंवलजीत सिंह, गुरमीत सिंह; उत्तराखंड से राजा बहुगुणा आदि नेता प्रमुख रूप से शामिल हैं. बिहार के नेताओं में राज्य सचिव कुणाल, धीरेन्द्र झा, मनोज मंजिल, महबूब आलम, अरूण सिंह, राजू यादव, मीना तिवारी, शशि यादव, वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता आदि उपस्थित हैं. वरिष्ठ नेता स्वेदश भट्टाचार्य, बिहार के किसानों के नेता राजाराम सिंह, असम की प्रतिमा इंग्हपी और फूलचंद ढेवा के नेतृत्व में बैठक चल रही है.
बैठक के पहले सत्र में बिहार विधानसभा चुनाव की समीक्षा की गई. समीक्षा में यह बात उभरकर सामने आई कि विधानसभा चुनाव में भाकपा-माले व वामपंथ की उपलब्धियों से न केवल बिहार में बल्कि पूरे देश में एक अच्छा संदेश गया है. देश की लोकतांत्रिक जमात की गहरी नजर बिहार चुनाव पर थी. हालांकि सत्ता परिवर्तन नहीं हो सका लेकिन एक मजबूत विपक्ष को विधानसभा में भेजकर बिहार ने यह पूरे देश को संदेश दिया है कि भाजपा अपनी मनमर्जी नहीं कर सकती. वाम दलों की जीत ने इस बात का विश्वास दिलाया है कि भाजपा के फासीवादी शासन को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकता है. यदि बिहार विधानसभा चुनाव में भाकपा-माले व अन्य वाम दलों को और अधिक सीटें मिलतीं तो चुनाव का परिणाम महागठबंधन के पक्ष में और बेहतर हो सकता था. यह मजबूत विपक्ष का ही दबाव है कि नीतीश कुमार को तीन दिनों के भीतर घोटालों के आरोपित मंत्री मेवालाल चैधरी को पद से हटाना पड़ा. बैठक में यह बात भी उभरकर सामने आई कि चुनाव में पुराना पैटर्न टूटा है, और माले को समाज के विभिन्न तबकों का वोट मिला है. परंपरागत वोट के साथ-साथ हमें नौजवानों के बड़े हिस्से, स्कीम वर्करों, शिक्षकों, किसानों, माइक्रोफायनांस कंपनियों के कर्ज से तबाह महिलाओं आदि तबकों के वोट मिले हैं. अब इन तबकों के भीतर व्यापक पैमाने पर संगठन निर्माण किया जाएगा व सदस्यता अभियान चलाने की कार्ययोजना ली जाएगी. बिहार विधानसभा चुनाव के अनुभवों के आधार पर पश्चिम बंगाल, असम व अन्य प्रदेशों में होने वाले चुनावों में नई ऊर्जा के साथ भागीदारी पर भी बात हुई. यह बात सामने आई कि बिहार में वामपंथ की जीत ने इन प्रदेशों में भी वामपंथ की प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी की है. बैठक में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के चल रहे आंदोलन को देशव्यापी बनाने पर बातचीत हुई. खासकर बिहार के दूर-दराज के गांवों तक इस आंदोलन के विस्तार की संभावनाओं पर चर्चा हुई. किसानों के प्रति मोदी सरकार के दमनात्मक रूख की कड़ी आलोचना की गई, अब तक शहीद तीन किसानों को श्रद्धांजलि दी गई और यह मांग की गई कि मोदी सरकार वार्ता का दिखावा न करे, बल्कि वह किसानों की आवाज सुने और तीनों किसान विरोधी कृषि कानूनों को वापस ले. आने वाले दिनों में बिहार में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान क्रय की गारंटी, 400 रु. प्रति क्विंटल गन्ना खरीद की गारंटी आदि सवालों पर धारावाहिक आंदोलन चलाया जाएगा. बैठक में बाबरी मस्जिद की शहादत 6 दिसंबर से लेकर 11 दिसंबर तक संविधान बचाओ-देश बचाओ अभियान चलाया जाएगा. विदित हो कि 11 दिसंबर को ही संविधान विरोधी नागरिकता संशोधन लागू किया गया था.
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