- मंडियों को बहाल करे, रजिस्ट्रेशन करवाने का प्रावधान वापस ले.
- धान खरीद की व्यवस्था की स्थिति में बिहार में सबसे खराब
- पैक्स को बोरे तक उपलब्ध नहीं करवाती सरकार.
पटना 11 दिसंबर, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि नीतीश सरकार द्वारा किसानों के खरीद की अधिकतम सीमा में बढ़ोतरी छलावा के अलावा कुछ नहीं है. आखिर सरकार धान खरीद में सीमा का निर्धारण क्यों कर रही है? देशव्यापी किसान आंदोलनों के दबाव में सरकार झुकी तो है लेकिन धान खरीद की सीमा निर्धारण और रजिस्ट्रेशन का नियम लाकर वह मामले को लटकाना चाहती है. बिहार सरकार ने 2006 में ही मंडियों की व्यवस्था खत्म कर, जिसे अब पूरे देश में लागू किया जा रहा है, बिहार के किसानों को बर्बादी के रास्ते पर धकेलने का काम किया है. बिहार में धान व अन्य फसलों की खरीद की व्यवस्था की स्थिति सबसे खराब है. हमारी मांग है कि बिना किसी भेदभाव और बिना रजिस्ट्रेशन के सरकार बटाईदार किसानों सहित सभी किसानों का, जो अपना धान बेचना चाहते हैं, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसकी खरीद की गारंटी करे. यह बेहद चिंताजनक है लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की मांग हो रही है, लेकिन सरकार इसपर तनिक भी गंभीर नहीं है. पंजाब-हरियाणा के लोग 800-900 रु. प्रति क्विंटल के भाव से बिहार के किसानों का धान खरीदते हैं और फिर उसे अपने प्रदेशों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचते हैं. सरकार यह बताए कि बिहार के किसानों का धान वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्यों नहीं खरीद रही है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें