नयी दिल्ली, 24 दिसंबर, सरकार ने प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों को वार्ता के लिए बृहस्पतिवार को फिर आमंत्रित किया, लेकिन स्पष्ट किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित किसी भी नयी मांग को एजेंडे में शामिल करना ‘‘तार्किक’’ नहीं होगा क्योंकि यह नए कृषि कानूनों के दायरे से परे है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने 40 किसान नेताओं को लिखे तीन पन्नों के पत्र में कहा, ‘‘मैं आपसे फिर आग्रह करता हूं कि प्रदर्शन को समाप्त कराने के लिए सरकार सभी मुद्दों पर खुले मन से और अच्छे इरादे से चर्चा करती रही है तथा ऐसा करती रहेगी। कृपया (अगले दौर की वार्ता के लिए) तारीख और समय बताएं।’’ सरकार और किसान संगठनों के बीच पिछले पांच दौर की वार्ता का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है। दिल्ली की सीमाओं पर लगभग एक महीने से प्रदर्शन कर रहे किसान तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े हैं। अग्रवाल ने किसान यूनियनों के नेताओं से कहा कि वे उन अन्य मुद्दों का भी ब्योरा दें जिनपर वे चर्चा करना चाहते हैं। वार्ता मंत्री स्तर पर नयी दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में होगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर अग्रवाल ने कहा कि कृषि कानूनों का इससे कोई लेना-देना नहीं है और न ही इसका कृषि उत्पादों को तय दर पर खरीदने पर कोई असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यूनियनों को प्रत्येक चर्चा में यह बात कही जाती रही है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि सरकार एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को तैयार है। अग्रवाल ने कहा, ‘‘एमएसपी से संबंधित किसी भी नयी मांग को, जो कृषि कानूनों के दायरे से परे है, वार्ता में शामिल करना तार्किक नहीं है। जैसा कि पूर्व में सूचित किया जा चुका है, सरकार किसान यूनियनों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है।’’ उनका पत्र संयुक्त किसान मोर्चे के 23 दिसंबर के उस पत्र के जवाब में आया है जिसमें कहा गया है कि यदि सरकार संशोधन संबंधी खारिज किए जा चुके बेकार के प्रस्तावों को दोहराने की जगह लिखित में कोई ठोस प्रस्ताव लाती है तो किसान संगठन वार्ता के लिए तैयार हैं। सरकार ने अपने नए पत्र में संकल्प व्यक्त किया है कि वह किसान यूनियनों द्वारा उठाए गए मुद्दों का ‘‘तार्किक समाधान’’ खोजने के लिए तैयार है। अग्रवाल ने कहा कि सरकार के लिए वार्ता के सभी दरवाजे खोलकर रखना महत्वपूर्ण है। किसान संगठनों की बात सुनना सरकार का दायित्व है तथा किसान और सरकार इससे इनकार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चे के तहत आने वाले किसान संगठनों से सरकार खुले मन से कई दौर की वार्ता कर चुकी है। अग्रवाल ने आग्रह किया कि किसान संगठन अपनी सुविधा के हिसाब से अगले दौर की वार्ता के लिए तारीख और समय बताएं। नए कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान लगभग एक महीने से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से हैं।अग्रवाल ने अपने पत्र में दोहराया है कि सरकार प्रदर्शनकारी किसान संगठनों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों का ‘‘तार्किक रूप से समाधान’’ करने के लिए उत्सुक है।उन्होंने कहा कि सरकार ने 20 दिसंबर के अपने पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि वह किसान यूनियनों द्वारा मौखिक और लिखित रूप से उठाए गए सभी मुद्दों पर चर्चा करने को तैयार है।अग्रवाल ने यह स्पष्ट करने के लिए किसान यूनियनों का धन्यवाद भी व्यक्त किया कि क्रांतिकारी किसान यूनियन पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष दर्शन पाल ने 20 दिसंबर के सरकार के पत्र के जवाब में प्रदर्शनकारी सभी किसान संगठनों की ओर से पत्र लिखा था।उन्होंने किसान नेताओं के नाम अपने पत्र में लिखा है, ‘‘आपने रेखांकित किया है कि सरकार ने आवश्यक वस्तु संशोधन कानून के संबंध में प्रस्ताव नहीं भेजा है। पूर्व के पत्र में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि लिखित प्रस्ताव उन मुद्दों पर दिया जाएगा जिनपर तीन दिसंबर को चर्चा की गई थी। फिर भी, सरकार ने 20 दिसंबर के अपने पत्र में कहा कि वह अन्य उन मुद्दों पर भी चर्चा करने के लिए तैयार है जिन्हें किसान यूनियन उठाना चाहेंगी।विद्युत संशोधन विधेयक और पराली जलाने से संबंधित कानून के संबंध में सरकार ने कहा कि तीन दिसंबर की चर्चा के आधार पर दिए गए मसौदा प्रस्ताव के अतिरिक्त यदि किसानों का कोई अन्य मुद्दा है तो सरकार चर्चा करने के लिए तैयार है।
गुरुवार, 24 दिसंबर 2020
सरकार ने किसान यूनियनों को वार्ता के लिए फिर आमंत्रित किया
Tags
# देश
Share This
About आर्यावर्त डेस्क
देश
Labels:
देश
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Author Details
सम्पादकीय डेस्क --- खबर के लिये ईमेल -- editor@liveaaryaavart.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें