- वार्ता का दिखावा न करे सरकार, तीनों काले कृषि कानून वापस ले
- न्यूतनम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की गारंटी करे नीतीश सरकार
पटना 5 दिसंब, तीनों काले कृषि कानूनों की वापसी सहित सात सूत्री मांगांे पर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर आगामी 8 दिसंबर के भारत बंद को वाम दलों ने सक्रिय समर्थन देने का निर्णय किया है. सीपीआई, सीपीआई (एम), भाकपा-माले, फारवर्ड ब्लाॅक व आरएसपी की राष्ट्रीय स्तर पर हुई बैठक के आलोक में आज इन पार्टियों के राज्य स्तर के नेताओं ने संयुक्त बयान जारी करके यह जानकारी दी. भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, सीपीआई के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय, सीपीआई (एम) के राज्य सचिव अवधेश कुमार व फारवर्ड ब्लाॅक के अमीरक महतो व आरएसपी वीरेन्द्र ठाकुर ने बयान जारी करके कहा है कि पहले तो मोदी सरकार ने दमन अभियान चलाकर किसानों को डराना चाहा, फिर तरह-तरह का दुष्प्रचार अभियान चलाया गया और अब वार्ता का दिखावा किया जा रहा है. सरकार के दमननात्क व नकारात्मक रूख के कारण अब तक तीन किसानों की मौत हो चुकी है. दो दौर की हुई वार्ता असफल हो चुकी है क्योंकि सरकार कानूनों को वापस लेने की मांग पर तैयार नहीं है. ये कानून पूरी तरह से खेती-किसानी को चैपट कर देने वाले तथा खेती को काॅरपोरेट घरानों के हवाले कर देने वाले हैं. देश के किसान इन कानूनों को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे. पंजाब से आरंभ हुआ आंदोलन अब देश के दूसरे हिस्सों में भी फैल रहा है. सरकार को यह असंवैधानिक कानून रद्द करना ही होगा. वाम नेताओं ने कहा कि भारत बंद में तीनों काले कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ-साथ प्रस्तावित बिजली बिल की वापसी , न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी दर पर फसल खरीद की गारंटी, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की भी मांग प्रमुखता से उठाई जाएगी. बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने 2006 से ही मंडियों को खत्म कर दिया और राज्य की खेती को बर्बादी के रास्ते धकेल दिया. आज बिहार में कहीं भी धान खरीद नहीं हो रही है. किसानों की फसलें बर्बाद हो रही हैं, लेकिन नीतीश कुमार ने विगत 15 वर्षों में कभी भी इसकी चिंता नहीं की. हमारी मांग है कि सरकार तत्काल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सभी किसानों के धान खरीद की गारंटी करे. वाम नेताओं ने बिहार की जनता से अपील की है कि कृषि प्रधान देश में यदि किसान ही नहीं बचेंगे, तो देश कैसे बचेगा? इसलिए समाज के सभी लोग इस आंदोलन का समर्थन करें और इसका विस्तार दूर-दराज के गांवों तक करें.
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