नयी दिल्ली 04 दिसंबर, हिंदी के अमर कथाकार मुंशी प्रेमचंद की पहली हिंदी कहानी ‘सौत’ 1915 में छपी थी और इसी शीर्षक से उनकी पत्नी शिवरानी देवी ने भी कहानी लिखी थी। प्रेमचंद की एक और चर्चित कहानी ‘बूढ़ी काकी’ है और शिवरानी देवी ने भी इसी शीर्षक से एक कहानी ‘बूढ़ी काकी’ लिखी थी। इस तरह शिवरानी देवी ने पांच ऐसी कहानियां लिखी थी जिनके शीर्षक प्रेमचंद की कहानियों से मिलते जुलते थे लेकिन शिवरानी देवी की कहानियां प्रेमचंद की कहानियों के बहुत बाद लिखी गई और उनका विषय वस्तु भी उनसे बहुत अलग था। उनका प्रेमचन्द की कहानियों से कोई लेना देना नहीं था , भले ही शीर्षक एक समान हों। यह रहस्योद्घटन पहली बार शिवरानी देवी पर हाल ही में प्रकाशित पुस्तक में किया गया है। शिवरानी देवी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर हिंदी में छपी यह पहली किताब है। नयी किताब द्वारा प्रकाशित ‘ विस्मृत कथाकार शिवरानी देवी ’ के लेखक डॉ क्षमाशंकर पण्डेय ने यूनीवार्ता को एक भेंटवार्ता में बताया कि शिवरानी देवी प्रेमचन्द से उम्र में पांच साल छोटी थी । शिवरानी जी का जन्म 1889 में हुआ था लेकिन उनके जन्म की तारीख का आज तक पता नहीं चल पाया है। वह बाल विधवा थी और पढ़ी-लिखी नहीं थी लेकिन 1905 में प्रेमचन्द से विवाह होने के बाद प्रेमचन्द ने उन्हें पढ़ाया-लिखाया । वह भी कहानियां लिखने लगी तथा उन्होंने अपने जीवन काल मे 46 कहानियां लिखी । उनके दो कहानी संग्रह ‘नारी हृदय’ (1933 ) और ‘कौमुदी’ (1937 ) में छपे जिनमें 16-16 कहानियां हैं। इसके अलावा उनकी दस ऐसी कहानियां है जो असंकलित हैं। उस ज़माने की पत्र पत्रिकाओं में शिवरानी देवी की और रचनाएं मिल सकती है लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि शिवरानी देवी ने पांच ऐसी कहानियां लिखी जिनके शीर्षक प्रेमचन्द की कहानियों के शीर्षक थे । इनमें ‘सौत’ और ‘बूढ़ी काकी’ के अलावा ‘पछतावा’ , ‘बलिदान’ और ‘विमाता’ भी है । प्रेमचन्द ने भी इसी शीर्षक से कहानियां लिखी हैं। तुलसी दास उग्र और मुक्तिबोध पर पुस्तक लिखने वाले डॉ पांडेय ने बताया कि इन पांच कहानियों के संबंध में आज तक इस तथ्य की ओर किसी का ध्यान नहीं गया था कि प्रेमचन्द दम्पति की इन कहानियों का शीर्षक एक क्यों है क्योंकि उनके कहानी संग्रह अनुपलब्ध थे । उनकी कहानियों की किताब ‘कौमुदी’ करीब 70 साल के बाद दुबारा छपी है और ‘नारी हृदय’ तो अभी तक अनुपलब्ध है। उन्होंने कहा , “ शिवरानी देवी पर आज तक एक भी किताब नहीं लिखी गई थी। उन पर किताब लिखते हुए इस तथ्य को मैंने खोजा तो पाया कि वह एक बेबाक और साहसी लेखिका है और उनका व्यक्तित्व भी बहुत महान हैं। वह कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी भी थी। वह आज़ादी की लड़ाई में 11 नवम्बर 1931 को जेल भी गई थी।” उन्होंने कहा कि वह कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता थीं और प्रेमचन्द से छिपाकर बैठकों में जाती थीं लेकिन उनको हिंदी साहित्य ने भुला दिया गया। दरअसल शिवरानी देवी का एक कहानीकार के रूप में आज तक मूल्यांकन ही नहीं किया गया। उन्हें केवल प्रेमचन्द की पत्नी बताकर एक तरह से सहित्य से खारिज किया गया जबकि वह उस दौर की महत्वपूर्ण कथाकार थी और प्रेमचन्द के शब्दों में दबंग तथा साहसी महिला थी। डॉ पाण्डेय ने बताया कि शिवरानी देवी की पहली कहानी 1924 में ‘चाँद’ पत्रिका में छपी थी जिसका शीर्षक ही ‘साहस’ था। तब शिवरानी की उम्र 35 वर्ष थी। शिवरानी देवी की कहानियों के स्त्री पात्र प्रेमचन्द की स्त्री पात्रों से अधिक बोल्ड साहसी और बेबाक हैं । उन्होंने बताया कि प्रेमचन्द के निधन के बाद उनकी दस कहानियां छपी जो किसी किताब में संकलित नहीं हुई। इनमें ‘बलिदान’ (1937) और ‘पछतावा’ (1941) भी शामिल है जिसके शीर्षक प्रेमचन्द की ‘बलिदान’ और ‘पछतावा’ की तरह हैं। ये सभी 10 कहानियां ‘चाँद’ में छपी थी। शिवरानी देवी ने 1924 से 1944 तक लेखन में रही। उनका निधन पांच दिसम्बर 1976 में हुआ , लेकिन क्या 1944 के बाद उन्होंने कुछ नहीं लिखा यह शोध का विषय है। प्रेमचन्द के निधन के बाद उन्होंने ‘हंस’ भी निकाला । उसके सम्पादकीय भी असंकलित हैं। अगर उस दौर की पत्रिकाओं को खंगाला जाए तो शिवरानी देवी के लेखकीय व्यक्तित्व की और जानकारी मिल सकती है।
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020
शिवरानी देवी की कल 44 वीं पुण्यतिथि पर विशेष
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